Tuesday, 14 January 2025

मकर-संक्रांति की अग्रिम शुभ कामनायें ---

 मकर-संक्रांति की अग्रिम शुभ कामनायें ---

कल १४ जनवरी को मकर संक्रांति है, आप सभी को अग्रिम शुभ कामनायें।
खगोल शास्त्रियों के अनुसार उत्तरायण तो २२ दिसंबर २०२४ को ही आरंभ हो गया था, लेकिन ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार सूर्य का मकर-राशि में प्रवेश १४ जनवरी को है।
.
गुरुकृपा से मेरे उत्तरायण व दक्षिणायण -- मेरी हरेक साँस में हैं। मेरी हरेक साँस में ही मकर-संक्रांति और कर्क-संक्रांति भी हैं। मेरी सूक्ष्म देह का सहस्त्रारचक्र -- उत्तर दिशा है, भ्रू-मध्य -- पूर्व दिशा है, मेरु-शीर्ष (Medulla) -- पश्चिम दिशा है, और मूलाधारचक्र -- दक्षिण दिशा है।
.
ध्यान-साधना के समय जब भी मैं साँस अंदर लेता हूँ तो घनीभूत प्राण-चेतना (कुंडलिनी) एक शीत लहर के रूप में ऊर्ध्वमुखी हो मूलाधारचक्र से जागृत होकर सब चक्रों को भेदते हुए सहस्त्रारचक्र की ओर प्रवाहित होने लगती है। यह मेरा आंतरिक उत्तरायण है।
जब भी साँस छोड़ता हूँ तब वह प्राण-चेतना एक उष्ण लहर के रूप में अधोमुखी होकर मूलाधारचक्र की ओर प्रवाहित होने लगती है, यह मेरा दक्षिणायण है।
.
अब कहीं बाहर नहीं, मेरे इस शरीर में ही ध्यान-साधना के समय हरेक साँस के साथ उत्तरायण और दक्षिणायण -- यानि मकर व कर्क संक्रांतियाँ घटित हो रही हैं। सुषुम्ना की ब्रह्मउपनाड़ी मेरा परिक्रमा पथ है। मेरा मेरुदण्ड ही पूजा की वेदी है। इसमें मेरा कोई यश नहीं है। सारा यश परमशिव परमात्मा, भगवती और गुरु महाराज को है। परमशिव ही एकमात्र कर्ता हैं। मैं तो एक निमित्त साक्षीमात्र हूँ। इन का रहस्य परम गोपनीय हैं।
.
मैं ही वह आकाश हूँ, जहाँ मैं विचरण करता हूँ। चारों ओर छाई हुई शांति का साम्राज्य भी मैं स्वयं ही हूँ। आप में और मुझ में कोई अंतर नहीं है। जो आप हैं, वही मैं हूँ। जब तक हमारे पैरों में लोहे की जंजीरें बंधी हुई हैं तब तक हम असहाय हैं। सर्वोपरी आवश्यकता उन सब बंधनों से मुक्त होने की है जिन्होंने हमें असहाय बना रखा है।
ॐ तत्सत् !! ॐ गुरु !! जय गुरु !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२५

No comments:

Post a Comment