Wednesday 9 February 2022

'दु:ख' शब्द की सुंदरतम व्युत्पत्ति ---

किसी बस की सब से पीछे की सीट पर बैठ कर जब हम यात्रा करते हैं, तब सब से अधिक झटके लगते हैं, जब कि बस की गति भी वही है और चालक भी वही है। जितना हम चालक के समीप बैठते हैं, उतने ही कम झटके लगते हैं।

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वैसे ही हमारी इस जीवन-यात्रा में हम जितना परमात्मा के समीप रहते हैं, उतनी ही हमारी यह जीवन-यात्रा सुखद रहती है। बाकी हमारा विवेक है, अपने निर्णय लेने को हम स्वतंत्र हैं। श्रुति भगवती कहती हैं -- "ॐ खं ब्रह्म॥" 'ख' का अर्थ परमात्मा भी है, और आकाश-तत्व भी। 'ख' से समीपता 'सुख' है और दूरी 'दुःख' है। आकाश-तत्व हमें परमात्मा का बोध कराता है।
"ॐ अच्युताय नमः, ॐ गोविंदाय नमः, ॐ अनंताय नमः॥"
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