परमात्मा के समक्ष प्रकाश ही प्रकाश है| हम उस प्रकाश में ही रहते हुए उसका विस्तार करें| परमात्मा के पीछे की ओर अंधकार है, जो हमारे भीतर है| यह भीतर का ही अंधकार है जो बाहर व्यक्त हो रहा है| हम परमात्मा के प्रकाश के विस्तार के माध्यम बनें| परमात्मा के उस प्रकाश का ही विस्तार करना हमारा सर्वोपरी धर्म है|
हम ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करें जिस के बारे श्रुति भगवती कहती हैं ---
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः।
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ॥"
भावार्थ :-- वहां न सूर्य प्रकाशित होता है और चन्द्र आभाहीन हो जाता है तथा तारे बुझ जाते हैं; वहां ये विद्युत् भी नहीं चमकतीं, तब यह पार्थिव अग्नि भी कैसे जल पायेगी? जो कुछ भी चमकता है, वह उसकी आभा से अनुभासित होता है, यह सम्पूर्ण विश्व उसी के प्रकाश से प्रकाशित एवं भासित हो रहा है।
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गीता में भगवान कहते हैं ---
"न तद भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः| यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम||"
अर्थात् उसे न सूर्य प्रकाशित कर सकता है और न चन्द्रमा और न अग्नि। जिसे प्राप्त कर मनुष्य पुन: (संसार को) नहीं लौटते हैं, वह मेरा परम धाम है।।
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जो भगवान का धाम है, वही हमारा भी धाम है| ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० फरवरी २०२१
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