Wednesday 9 February 2022

सृष्टिकर्ता परमात्मा, और उनकी समस्त सृष्टि के साथ हम एक हैं; सारी सृष्टि और सृष्टिकर्ता परमात्मा - स्वयं ही स्वयं की उपासना कर रहे हैं ---

सृष्टिकर्ता परमात्मा, और उनकी समस्त सृष्टि के साथ हम एक हैं; सारी सृष्टि और सृष्टिकर्ता परमात्मा - स्वयं ही स्वयं की उपासना कर रहे हैं ---

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ॐ गं गणाधिपतये नमः !! पंचप्राण रूपी गणों के ओंकार रूप में अधिपति भगवान श्रीगणेश को नमन !! घनीभूत प्राणतत्व के रूप में - सूक्ष्मदेह की ब्रहमनाड़ी में; और कारणदेह में - अनंताकाश और दहराकाश से भी परे परमशिव तक विचरण कर रही भगवती कुल-कुण्डलिनी को नमन !! सारी शक्तियाँ उन्हीं की अभिव्यक्ति हैं।
विश्वरूप में सर्वत्र व्याप्त श्रीमन्नारायण पुरुषोत्तम भगवान विष्णु को नमन !! वे ही पालनकर्ता है, वे ही परमशिव हैं, जिनके समक्ष जब से सिर झुकाया था, तब से झुका हुआ ही है, कभी भी नहीं उठा है। अपनी ऊर्जा और संकल्प से स्वयं को ही उन्होनें इस सम्पूर्ण सृष्टि के रूप में निर्मित कर के व्यक्त किया है।
सारी सृष्टि को जीवंत करते हुए, जगन्माता स्वयं को प्राण-तत्व के रूप में व्यक्त कर रही हैं। वे ही सारी सृष्टि की प्राण हैं। पञ्च-प्राणों के पाँच सौम्य, और पाँच उग्र रूप -- दस महाविद्याएँ हैं। प्राण की जगन्माता के रूप में साधना -- दसों महाविद्याओं की साधना है। हर जीवात्मा में प्राण-तत्व के रूप में व्यक्त कुंडलिनी का परमशिव से मिलन ही 'योग-साधना' का उद्देश्य है।
यह अनुभूति का विषय है, बुद्धि का नहीं, जो किसी श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध सद्गुरु के सान्निध्य में साधना करने से ही समझ में आ सकता है।
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कई दिनों के पश्चात आज मैं इस सामाजिक मंच पर लौटा हूँ। आप सब मेरी ही निजात्मा हैं, मुझसे पृथक नहीं हैं, इसलिए मैं आप सब में स्वयं को ही नमन करता हूँ। मनुष्य जीवन की एक बहुत ही दुर्लभ और अति उच्च उपलब्धि वर्षों पूर्व मुझे प्राप्त हुई थी, जिसे मैं बिल्कुल ही भूल गया था। गुरुकृपा से वह पुनश्च: स्मृति में आ रही है। जब भी एक साधक होने का, या उपदेश देने का भाव मन में आता है, तब हमारा पतन होने लगता है। उस समय परमात्मा में समर्पण ही हमारी रक्षा करता है।
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संसार के किसी भी व्यक्ति या घटक को मैं नहीं सुधार सकता। जब मैं स्वयं को ही कभी भी किसी भी तरह का मार्गदर्शन नहीं दे सका तो अन्य किसी को तो क्या दूँगा? परमात्मा की परम कृपा ही हमारा कल्याण कर सकती है। हम उन की कृपा के पात्र बनें, तभी हमारा कल्याण होगा।
मेरा एकमात्र कार्य और रुचि -- जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति है। मेरे लिए वे ही एकमात्र साध्य, साधन, साधक, संबंधी, और मित्र हैं।
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जिन के हृदय में परमात्मा, भारत और सनातन-धर्म के लिए प्रेम है, उन सब का मैं यहाँ स्वागत करता हूँ। अन्य सब से क्षमायाचना है कि मेरे पास उनके लिए समय नहीं है, वे मेरा समय नष्ट न करें। श्रीअरविंद के शब्दों में भारत ही सनातन धर्म है, और सनातन धर्म ही भारत है। सनातन धर्म एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है, जो जीवन में भगवत्-प्राप्ति का मार्ग बताकर हमें भगवान के साथ एक करती है।
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सारी सृष्टि हमारे साथ एक है। जब हम साँस लेते और छोड़ते हैं, तो सारी सृष्टि हमारे साथ साँस लेती और छोड़ती है। सृष्टि की विराटता का अनुमान हम इस से ही लगा सकते हैं कि रात्री में एकमात्र स्थिर ध्रुव तारे को हम जब देखते हैं, तब याद रहे कि वह ध्रुव तारा वहाँ ३९० वर्ष पूर्व था। उसके प्रकाश को हमारे तक पहुँचने में ३९० वर्ष लगे हैं। हमारी आकाशगंगा इतनी विराट है कि उसके एक छोर से दूसरे छोर तक प्रकाश की गति से पहुँचने में एक लाख वर्ष लग जाएँगे। इस तरह की करोड़ों आकाश-गंगाएँ इस सृष्टि में हैं। हमारा सूर्य हमारी आकाशगंगा के करोड़ों सूर्यों में से एक सूर्य है, जिसका हमारी पृथ्वी एक छोटा सा ग्रह मात्र है। सृष्टि की अनंत विराटता को समझें और उसके साथ उपासना/साधना के द्वारा एक हों। यह ही आत्म-साक्षात्कार, और परमात्मा की प्राप्ति है। यही मोक्ष का हेतु है।
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"ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः॥
पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः।
अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च।"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
९ फरवरी २०२२

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