Thursday 6 January 2022

श्रद्धा और विश्वास ही इस भव सागर से तार देंगे ---

 श्रद्धा और विश्वास ही इस भव सागर से तार देंगे। भगवान पर श्रद्धापूर्वक विश्वास करते हुए उनका निरंतर स्मरण कीजिये। उनके ये शाश्वत वचन है ---

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"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥१८:५८॥"
अर्थात् -- मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे; और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे॥
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अब क्या करना होगा? इसका उत्तर भगवान देते हैं --
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
यह गीता का चरम श्लोक है। भगवान कहते हैं -- समस्त धर्मों (सभी सिद्धांतों, नियमों व हर तरह के साधन विधानों का) परित्याग कर एकमात्र मेरी शरण में आजा ; मैं तुम्हें समस्त पापों और दोषों से मुक्त कर दूंगा --- शोक मत कर।
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भगवान कहाँ हैं? भगवान यहीं पर, इसी समय, सर्वदा और सर्वत्र है। भगवान कहते हैं --
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
अर्थात् - जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता॥
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भगवान कहते हैं --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
अर्थात् - इसलिए हे अर्जुन! तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा॥
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रामचरितमानस की वंदना में ही संत तुलसीदास जी कहते हैं --
"भवानी-शंकरौ वन्दे श्रद्धा-विश्वास रूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम्॥"
अर्थात् -- भवानी और शंकर ही श्रद्धा और विश्वास हैं। बिना श्रद्धा और विश्वास के सिद्धों को भी ईश्वर के दर्शन नहीं होते।
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अब और क्या चाहिए? सब कुछ तो भगवान ने बता दिया। नारायण नारायण !!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
४ जनवरी २०२२

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