Friday 20 August 2021

प्रत्यभिज्ञा --- (संशोधित व पुनर्प्रेषित लेख)

 

प्रत्यभिज्ञा --- (संशोधित व पुनर्प्रेषित लेख)
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अपने समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग ईश्वर-प्रदत्त विवेक के प्रकाश में करें। आग लगने पर कुआँ नहीं खोदा जा सकता, कुएँ को तो पहिले से ही खोद कर रखना पड़ता है। जिस भौतिक विश्व में हम रहते हैं, उससे भी बहुत अधिक बड़ा एक सूक्ष्म जगत हमारे चारों ओर है, जिसमें नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की सत्ताएँ हैं।
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जितना हम अपनी दिव्यता की ओर बढ़ते हैं, ये नकारात्मक शक्तियां उतनी ही प्रबलता से हम पर अधिकार करने का प्रयास करती हैं। हम जीवन में कई बार न चाहते हुए भी अनेक क्षुद्रताओं से बंधे हुए एक पशु की तरह आचरण करने लगते हैं, और चाह कर भी बच नहीं पाते व गहरे से गहरे गड्ढों में गिरते रहते हैं। ऐसी परिस्थिति में हमें क्या करना चाहिए?
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वर्षों पहले युवावस्था में एक पुस्तक पढ़ी थी जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध के एक युद्धक वायुयान चालक (Pilot) के अनुभव थे। वह वायुयान अपने लक्ष्य की ओर जा रहा था कि पायलट ने देखा कि एक चूहा एक बिजली के तार को काट रहा था| यदि चूहा उस तार को काटने में सफल हो जाता तो यान की विद्युत प्रणाली बंद हो जाती और विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाता। पायलट उस चूहे को किसी भी तरह से भगाने में असमर्थ था। समय बहुत कम और कीमती था। चालक ने भगवान को स्मरण किया, और विमान को उस अधिकतम ऊंचाई तक ले गया जहाँ तक जाना संभव था। वहाँ वायु का दबाव कम हो गया जिसे चूहा सहन नहीं कर पाया और बेहोश हो कर गिर गया। पायलट अपना कार्य पूरा कर सुरक्षित बापस आ गया। उस की रक्षा ऊँचाई के कारण हुई।
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बाज पक्षी कई बार ऐसे पशु का मांस खा जाते हैं जिसे कौवे खाना चाहते हैं। बाज के आगे कौवे असहाय होते हैं पर वे हिम्मत नहीं हारते। कौवा बाज़ की पीठ पर बैठ जाता है, और उसकी गर्दन पर अपनी चोंच से घातक प्रहार करता है, और काटता है। बाज भी ऐसी स्थिति में कौवे के आगे असहाय हो जाते हैं। बाज अपना समय नष्ट नहीं करते, और अपने पंख खोलकर आकाश में बहुत अधिक ऊँचाई पर चले जाते हैं। ऊँचाई पर वायु का दबाव कम होने से कौवा बेहोश होकर नीचे गिर जाता है। यहाँ भी बाज की रक्षा ऊँचाई से होती है।
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लोभ, कामुकता, अहंकार, क्रोध, प्रमाद व दीर्घसूत्रता जैसी वासनायें हमें नीचे गड्ढों में गिराती हैं, जिन से बचने के किए हमें अपनी चेतना को अधिक से अधिक ऊँचाई पर रखनी चाहिए, यानि अपने विचारों व चिंतन का स्तर ऊँचे से ऊँचा रखना चाहिए। अपनी चेतना को उत्तरा-सुषुम्ना (आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य) में रखने का अभ्यास करना चाहिए। वासनायें ... चूहों व कौवों की तरह हैं, जिन पर अपना समय नष्ट न करें। स्वयं भाव-जगत की ऊँचाइयों पर परमशिव की चेतना में रहें, ये क्षुद्रतायें अपने आप ही नष्ट हो जायेंगी।
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शिवोहम् शिवोहम् अहम् ब्रह्मास्मि !! ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
ॐ नमः शिवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० अगस्त २०२१
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("प्रत्यभिज्ञा" शब्द कश्मीर शैव दर्शन का है। इसका अर्थ है -- जाने हुए विषय को पुनः विशेष रूप से जानना। "प्रत्यभिज्ञा-दर्शन" भी कश्मीर शैव मत की एक शाखा है)

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