भगवान से परमप्रेम (भक्ति) जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। जब भी भगवान की याद आये वह क्षण सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है। जिस समय दोनों
नासिकाओं से साँस चल रही हो, वह ध्यान करने का सर्वश्रेष्ठ समय है। भगवान
से अधिक सुलभ कोई अन्य नहीं है। हम अपने स्वार्थ के लिए उन्हें याद करते
हैं तो वे नहीं आते, अन्यथा तो वे निरंतर समक्ष हैं। जब चारों ओर घोर
अन्धकार हो, जीवन की विपरीततम परिस्थितियाँ हों, कहीं कोई आशा की कोई किरण
दिखाई न दे, तब सदगुरु रूप में भगवान ही हैं जो हमारा साथ नहीं छोड़ते। हम
ही उन्हें भुला सकते हैं पर वे हमें नहीं भुलाते। उनसे मित्रता बनाकर रखें।
वे इस जन्म से पूर्व भी हमारे साथ थे, और इस जन्म के पश्चात भी सभी
जन्मों में हमारे साथ शाश्वत रूप से रहेंगे। अपनी सारी पीड़ाएँ, सारे दु:ख,
सारे कष्ट उन्हें सौंप दो। वे ही हैं जो हमारे माध्यम से दुखी हैं। वे ही
कष्ट बन कर आये हैं, और वे ही समाधान बन कर आयेंगे। उन्हें मत भूलो, वे भी
हमें नहीं भूलेंगे। निरंतर उनका स्मरण करो। जब भूल जाओ, तब याद आते ही फिर
उन्हें स्मरण करना आरम्भ कर दो। हमारे सुख दुःख सभी में वे हमारे ही साथ
रहेंगे.
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अपने
ह्रदय का समस्त प्रेम उन्हें बिना किसी शर्त के दो। यह उन्हीं का प्रेम
था, जो हमें माँ बाप, भाई-बहिनों, सगे-सम्बन्धियों और मित्रों व
परिचितों-अपरिचितों के माध्यम से मिला। उन्हीं के प्रेम से हमें वह शक्ति
मिली है, जिससे हम वर्तमान में चैतन्य हैं। वे ही हमारे हृदय में धड़क रहे
हैं, फेफड़ों से सांस ले रहे हैं, आँखों से देख रहे हैं, पैरों से चल रहें
हैं, और अन्तःकरण की समस्त क्रियाओं को सम्पन्न कर रहे हैं। उन्होंने स्वयं
को छिपा रखा है पर हर समय हमारे साथ हैं। मैं उनके प्रति पूर्णतः समर्पित
हूँ। ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ अगस्त २०२१
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