Saturday 28 August 2021

हमारा पुनर्जन्म भगवान की इच्छा से नहीं, हमारी स्वयं की इच्छा से होता है ---

 

हमारा पुनर्जन्म भगवान की इच्छा से नहीं, हमारी स्वयं की इच्छा से होता है ---
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हम पहले से ही नित्यमुक्त और मोक्ष को प्राप्त हैं। यह हमारा अंतिम जन्म है, लेकिन इसे हम नहीं जानते। इसे हम जान सकते हैं, यदि उपासना द्वारा यह समझ लें --
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७:१९॥" (गीता)
अर्थात् "बहुत जन्मों के अन्त में (किसी एक जन्म विशेष में) ज्ञान को प्राप्त होकर कि 'यह सब वासुदेव है' ज्ञानी भक्त मुझे प्राप्त होता है; ऐसा महात्मा अति दुर्लभ है॥"
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भगवान की ओर से तो यह अंतिम जन्म है, लेकिन हम अनेक कामनाओं को पाल कर कर्मानुसार पुनर्जन्म को बाध्य हो जाते हैं। भगवान की कृपा कोई साधारण नहीं होती। भगवान ने हमें निष्काम होने का उपदेश देकर मुक्ति का अवसर दिया, लेकिन हम उसका लाभ नहीं उठा पाते। गीता का स्वाध्याय करें, सब समझ में आ जायेगा। ॐ तत्सत् !!
२७ अगस्त २०२१
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पुनश्च: --- हमारे हृदय की बात वे ही समझ सकते हैं, क्योंकि उनका निवास हमारे हृदय में है। हमारा हृदय सर्वत्र और सर्वव्यापी है जिसका केंद्र सर्वत्र है, लेकिन परिधि कहीं भी नहीं।

1 comment:

  1. सत्यनिष्ठा, भक्ति और समर्पण के संस्कारों के साथ, किशोरावस्था से ही Opposite sex के प्रति आकर्षण की दिशा, किसी में यदि परमात्मा की ओर मोड़ दी जाये, तो वह इस जन्म में ही परमात्मा को प्राप्त कर सकता है.
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    पुनश्च: --- विषय-वासनाओं के चिंतन के स्थान पर हरिःचिंतन करें. यदि वेदान्त-वासना जागृत हो जाये तो अन्य कुछ चाहिये भी नहीं.
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    हमारा पुनर्जन्म होगा या नहीं ? इसे जानने का एक सीधा सा तरीका है।
    यदि किसी भी व्यक्ति में भौतिक मृत्यु के समय कुछ कामना हो जैसे -- opposite sex के प्रति आकर्षण, किसी से बदला लेने की भावना, या कुछ सांसारिक लाभ प्राप्त करने की इच्छा आदि, --- तो उसका पुनर्जन्म निश्चित है।
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    जब तक भगवत् प्राप्ति नहीं होती तब तक कर्मफलों को भोगने के लिए किसी न किसी रूप में पुनर्जन्म होता ही रहेगा। इसे कोई नहीं रोक सकता।
    🌹🙏🕉🙏🌹

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