Saturday 28 August 2021

साधना ---

 

साधना ---
शिवनेत्र होकर यानि दोनों आँखों की पुतलियों को भ्रूमध्य के समीप लाकर, भ्रूमध्य में प्रणव यानि ॐकार से लिपटी हुई दिव्य ज्योतिर्मय सर्वव्यापी आत्मा का चिंतन करते-करते, एक दिन ध्यान में विद्युत् आभा सदृश्य देदीप्यमान ब्रह्मज्योति प्रकट होती है। यह ब्रहमज्योति -- इस सृष्टि का बीज, और परमात्मा का द्वार है। इसे 'कूटस्थ' कहते हैं। इस अविनाशी ब्रह्मज्योति और उसके साथ सुनाई देने वाले प्रणवनाद में लय रहना 'कूटस्थ चैतन्य' है। यह सर्वव्यापी, निरंतर गतिशील, ज्योति और नाद - 'कूटस्थ ब्रह्म' हैं।
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इस की स्थिति भी परिवर्तनशील ऊर्ध्वगामी है। कूटस्थ चैतन्य में प्रयासपूर्वक निरंतर स्थिति 'योग-साधना' है। शनैः शनैः बड़ी शान से एक राजकुमारी की भाँति भगवती कुंडलिनी महाशक्ति जागृत होती है जो स्वयं जागृत होकर हमें भी जगाती है। साधना करते करते सुषुम्ना की ब्रह्मनाड़ी में स्थित सभी चक्रों को भेदते हुये, सभी अनंत आकाशों से परे 'परमशिव' में इसका विलीन होना परमसिद्धि है। यही योगसाधना का लक्ष्य है। फिर हम परमशिव के साथ एक होकर स्वयं परमशिव हो जाते हैं। कहीं कोई भेद नहीं रहता।
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परमात्मा की कृपा ही हमें पार लगाती है। परमात्मा अपरिछिन्न हैं। परिछिन्नता का बोध हमें चंचल मन के कारण होता है। मन के शांत होने पर अपरिछिन्नता का पता चलता है। कूटस्थ में ध्यान -श्रीगुरु चरणों का ध्यान है। कूटस्थ में स्थिति - श्रीगुरु चरणों में आश्रय है। कूटस्थ ही पारब्रह्म परमात्मा है। कूटस्थ ज्योति - साक्षात सद्गुरु है। कूटस्थ प्रणव-नाद -- गुरु-वाक्य है। शिव शिव शिव शिव शिव॥
ॐ तत्सत् !! गुरु ॐ !! जय गुरु !!
कृपा शंकर
२७ अगस्त २०२१

1 comment:

  1. श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः --- वास्तव में सत्यनिष्ठा से देखा जाये तो इस संसार में सबसे अधिक सुंदर और सबसे अधिक प्रिय कुछ है तो वे गुरु-महाराज के चरण-कमल हैं। एक बार उनके दर्शन हो जायें तो अन्य कुछ देखने का मन नहीं करता। यह एक अति गूढ और गोपनीय आध्यात्मिक विषय है जिस पर कुछ भी लिखने के लिए बहुत अधिक समय चाहिए। भगवान से प्रेरणा मिलेगी तो फुर्सत से इस विषय पर लिखूंगा।
    चिदाकाश (चित्त रूपी आकाश) में स्वयं की अनंतता का ध्यान करो। वह अनंतता ही हमारा वास्तविक रूप है। हमारे गुरु हम से पृथक नहीं हो सकते, वे हमारे साथ एक हैं। वे हमारा सारा अज्ञान धीरे धीरे हर लेंगे, वे हरिः हैं, वे ही मुक्ति के द्वार हैं।
    हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
    कृपा शंकर
    ३ सितंबर २०२१

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