Saturday 6 July 2019

भगवान के लिए ही सारे कार्य करना .....

भगवान के लिए ही सारे कार्य करना .....
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मत्कर्मपरायणता यानी भगवान के लिए ही सारे कार्य करना, अपने आप में एक बहुत बड़ी साधना है| गीता में भगवान कहते हैं .....
"अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव| मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि||१२:१०||"
अर्थात् यदि तूँ अभ्यासमें भी असमर्थ है तो मेरे लिये कर्म करने में तत्पर हो| अभ्यासके बिना केवल मेरे लिये कर्म करता हुआ भी तूँ परमसिद्धि प्राप्त कर लेगा|
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यदि कोई अभ्यास में भी असमर्थ हो तो मत्कर्म परायण बन कर यानि भगवान के लिये ही सारे कर्म करे|
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पर इस से भी बहुत अधिक ऊँची एक स्थिति है जहाँ साधक स्वयं निमित्तमात्र बनकर यानि भगवान का एक उपकरण बन कर भगवान को ही अपने माध्यम से कार्य करने दे| भगवान कहते हैं .....
"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्वजित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ||११:३३||"
अर्थात् .... इसलिए तुम उठ खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो, शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य को भोगो| ये सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं| हे सव्यसाचिन् तुम केवल निमित्त ही बनो||
(दोनों हाथों से धनुष चलाने में निष्णात होने के कारण अर्जुन सव्यसाची कहलाता है)

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जुलाई २०१९

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