Wednesday, 20 November 2024

जो हम स्वयं हैं, वही सबसे बड़ी भेंट है जो हम किसी को दे सकते हैं ---

 जो हम स्वयं हैं, वही सबसे बड़ी भेंट है जो हम किसी को दे सकते हैं ---

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हमारे पास जो है वही हम दूसरों को दे सकते हैं। जो हमारे पास नहीं है वह हम किसी को भी नहीं दे सकते। जब तक हम स्वयं अशांत हैं, तब तक हम अपने घर-परिवार में भी शांति नहीं ला सकते। हम विश्व को प्रेम नहीं दे सकते यदि हम स्वयं प्रेममय नहीं हैं। पहले हम स्वयं परमात्मा को प्राप्त करें। तभी हमें दूसरों को ब्रह्मज्ञान और भक्ति के उपदेश दे सकते हैं।
प्रातःकाल ४ बजे से पहिले ही उठकर लघुशंका आदि से निवृत होकर तुरंत डेढ़-दो घंटों तक निरंतर भगवन्नामजप, ध्यान आदि कर लेने चाहिएँ।
घर वालों से पहिले ही उठें। देरी से उठने पर संसार पकड़ लेता है। सन्ध्याकर्म -- (गायत्री जप आदि) स्नान के बाद कर सकते हैं। वृद्ध और रुग्ण लोगों को छूट है। संसार की पकड़ होने के बाद कुछ नहीं कर सकते।
ॐ तत्सत् ! शिवोहं शिवोहं शिवोहं ! ॐ ॐ ॐ !! कृपा शंकर २१ नवंबर २०२२

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