Wednesday, 20 November 2024

सर्वदा परमशिवभाव में यानि परमशिव की चेतना में रहें ---

 सर्वदा परमशिवभाव में यानि परमशिव की चेतना में रहें। हम यह नश्वर मनुष्य देह नहीं, स्वयं साक्षात परमशिव हैं।

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यदि सामर्थ्य है तो पूरे दिन में चार बार संध्या करें। मध्य रात्रि की तुरीय-संध्या सबसे उत्तम है। मध्य रात्री में जब घर के सब लोग सो जाते हैं, तब अपने आसन पर मेरुदण्ड को उन्नत रखते हुए, सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर पूर्वाभिमुख होकर संध्या करें। सबसे अच्छा और गहरा ध्यान ही मध्य रात्रि में होता है।
गायत्री जप सप्त व्याहृतियों के साथ करने से अधिक लाभ होता है। इसे सावित्री मंत्र भी कहते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता के सांख्य-योग में भगवान कहते हैं --
"या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥२:६९॥"
अर्थात् -- सब प्राणियों के लिए जो रात्रि है, उसमें संयमी पुरुष जागता है, और जहाँ सब प्राणी जागते हैं, वह (तत्त्व को) देखने वाले मुनि के लिए रात्रि है॥
The saint is awake when the world sleeps, and he ignores that for which the world lives.
(इस विषय पर आचार्य शंकर के भाष्य को उद्धृत करना था, लेकिन थोड़ा लंबा होने के कारण इस लेख में प्रस्तुत करना असंभव है। उसका स्वाध्याय आप स्वयं करें। अन्य भी अनेक महान भाष्यकारों के भाष्य हैं, जिनका स्वाध्याय आप अपनी श्रद्धानुसार कर सकते हैं।)
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यदि इसी जीवन में परमात्मा को प्राप्त करना है तो हर सांस पर संध्या करें। दो साँसों के संधिकाल को भी संध्या कहते हैं। हर सांस पर भगवान का स्मरण होना चाहिए जो वास्तव में ये सांसें ले रहे हैं। ये सांसें भगवान ही ले रहे हैं, हम नहीं। यदि आप ले रहे हैं तो रोक कर दिखाइये।
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प्राणायाम के लिए बाह्य कुंभक के समय मणिपुरचक्र, और भीतरी कुंभक के समय नाभि पर ओंकार का जप कीजिये। यह बहुत ही श्रेष्ठ प्राणायाम है। यदि उचित लगे तो तीनों बंध (मूलबंध, उड्डीयानबंध, और जालंधरबंध) भी समय समय पर लगाइये। इन से ध्यान में गहराई आती है। ध्यान साधना से पूर्व कम से कम तीन बार या अधिक महामुद्रा का अभ्यास कीजिये। इसकी विधि शिव-संहिता में दी हुई है। योनिमुद्रा का अभ्यास भी करना चाहिए। अजपा-जप और ओंकार श्रवण भी खूब करें। इनकी विधियाँ ग्रन्थों में दी हुई हैं। किसी योगी से भी सीख सकते हैं। सहस्त्रार चक्र में स्थित होकर मानसिक रूप से कभी कभी झाँक कर सुषुम्ना के भीतर में भी सभी चक्रों को देखिये।
क्रियायोग की साधना गुरु द्वारा शिष्य की पात्रता देखकर ही सिखाई जाती है। हठयोग के तीन प्रामाणिक ग्रंथ हैं -- "घेरण्ड संहिता", "शिव-संहिता" और "हठयोग प्रदीपिका"। इनमें योग संबंधी सारी जानकारी मिल जाएगी। ये सभी ग्रंथ बाजार में पुस्तकों की बड़ी दुकानों पर भी मिल जाएँगे और ऑन लाइन भी उपलब्ध हैं।
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योगाभ्यास करते समय परमशिव या भगवान श्रीकृष्ण की चेतना में ही रहें। कर्ता वे ही हैं, हम नहीं। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ नवंबर २०२३

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