Wednesday 14 March 2018

स्वर्ग में जाने की कामना .... एक धोखा और महा विनाश कारक कल्पना मात्र है .....

स्वर्ग में जाने की कामना .... एक धोखा और महा विनाश कारक कल्पना मात्र है .....
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हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है| हमारा हर विचार और हर भाव हमारा कर्म है जिसकी प्रतिक्रिया स्वरुप उसका परिणाम भी हमें भुगतना ही पड़ता है| यही कर्मफलों का स्वयंसिद्ध सिद्धांत है| स्वर्ग और नर्क हमारे मन की कल्पनाएँ मात्र हैं जिनका निर्माण अपने लिए हम स्वयं करते हैं| ये हमारे स्वयं के द्वारा निर्मित मनोलोक हैं|
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मनुष्य जाति के इतिहास में सबसे बड़ा अनर्थ, शोषण, अत्याचार, विनाश और क्रूरतम नरसंहार यदि किसी ने किया है तो वह है ..... स्वर्ग में जाने की कामना ने| इस कामना ने इस पृथ्वी पर अनगिनत सभ्यताओं को नष्ट किया है, एक-दो करोड़ नहीं बल्कि सैंकड़ों करोड़ मनुष्यों की निर्मम हत्याएँ की हैं, और करोड़ों महिलाओं पर बलात्कार कर के उन्हें अपना गुलाम बनाया है| यह स्वर्ग और नर्क की अवधारणा और स्वर्ग को पाने का लोभ सबसे बड़ा झूठ और धोखा है|
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आरम्भ में तो स्वर्ग और नर्क की परिकल्पना इसलिए एक भय और लालच देकर की गयी थी कि मनुष्य का आचरण सही हो| पर कुछ अति चतुर लोगों ने अपने सामाजिक/राजनीतिक साम्राज्य और अपनी विचारधारा के विस्तार के लिए स्वर्ग/नर्क की झूठी और भ्रमित करने वाली कल्पनाओं को धर्म का रूप दे दिया|
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जहाँ तक मैं समझता हूँ, हमारे जीवन का लक्ष्य नर्क से बचकर स्वर्ग में जाना नहीं, बल्कि परमात्मा को प्राप्त करना है| परमात्मा की चेतना में रहना ही स्वर्ग, और परमात्मा को विस्मृत करना ही नर्क है|
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उर्दू भाषा के शायरों (कवियों) ने जन्नत (स्वर्ग) के तसव्वुर (कल्पना) के ऊपर बहुत कुछ लिखा है| मनुष्य की कल्पना की उड़ान जो कुछ भी अच्छा देख सकती है और अपने दामन में समेटना चाहती है वह सब जन्नत में मौजूद, और जो नहीं चाहिए वह सब ज़हन्नुम (नर्क) में मौजूद है| अब ज़न्नत के नज़ारे प्रस्तुत हैं ...


अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
कूचा-ए-यार में चल देख ले जन्नत मेरी (फ़ानी बदायुनी)

गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिद
यहीं कहीं तेरी जन्नत भी पाई जाती है (जिगर मुरादाबादी)

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है (मिर्ज़ा ग़ालिब)

जन्नत मिली झूटों को अगर झूट के बदले
सच्चों को सज़ा में है जहन्नम भी गवारा (अहमद नदीम क़ासमी)

जिस में लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई (दाग़ देहलवी)

कहते हैं जिस को जन्नत वो इक झलक है तेरी
सब वाइज़ों की बाक़ी रंगीं-बयानियाँ हैं (अल्ताफ़ हुसैन हाली)

मैं समझता हूँ कि है जन्नत ओ दोज़ख़ क्या चीज़
एक है वस्ल तेरा एक है फ़ुर्क़त तेरी (जलील मानिकपूरी)

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ (अल्लामा इक़बाल)

हम सोते ही न रह जाएँ ऐ शोरे-क़यामत !
इस राह से निकले तो हमको भी जगा देना (मीर तकी मीर)
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! यदि मेरी किसी बात से आप आहत हुए हैं तो मुझे क्षमा कर देना| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ मार्च २०१८

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