Wednesday 14 March 2018

चीन के जनमानस पर अभी भी सर्वाधिक प्रभाव कन्फ्यूशियस (कुंग फूत्से) का है .....

चीन के जनमानस पर अभी भी सर्वाधिक प्रभाव कन्फ्यूशियस (कुंग फूत्से) का है .....
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चीन में चाहे कितनी भी उथल-पुथल रही हो .... अंग्रेजों का शासन, जापानियों का अधिकार और नरसंहार, मार्क्सवादी शासन, माओवाद, आदि आदि आदि| पर चीन के जनमानस पर अभी भी कन्फ्यूशियस का प्रभाव सबसे अधिक गहरा है| कन्फ्यूशियस का जन्म ईसा से ५५० वर्ष पूर्व हुआ था| जिस जमाने में भारत में बुद्ध और महावीर अपने विचारों का प्रचार कर रहे थे, उस समय चीन में एक मसीहा के रूप में महात्मा कन्फ्यूशियस का जन्म हुआ|
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कन्फ्यूशियस के जन्म से पूर्व ही चीन में बहुत से राज्य स्थापित हो गए थे जो सदा आपस में लड़ते रहते थे| प्रजा बहुत अधिक कष्ट झेल रही थी| ऐसे विकट समय में अपनी युवावस्था में महात्मा कन्फ्यूशियस ने पहले तो कुछ समय के लिए एक राजा की नौकरी की और फिर नौकरी छोड़कर घर पर ही एक विद्यालय खोल कर बच्चों को पढ़ाने लगे| जन्मजात प्रतिभा और प्रज्ञा उन में थी अतः काव्य, इतिहास , संगीत, और नीतिशास्त्र पर अनेक ग्रंथों की रचना की| ५३ वर्ष की आयु में वे एक राज्य में मंत्री पद पर नियुक्त हुए| मंत्री होने के नाते इन्होंने दंड के बदले मनुष्य के चरित्र सुधार पर बल दिया| अपने शिष्यों को वे सत्य, प्रेम, न्याय और अच्छा आचरण सिखाते थे| उनके दिव्य प्रभाव से लोग विनयी, परोपकारी, गुणी और चरित्रवान बनने लगे| वे लोगों को अपनों से बड़ों एवं पूर्वजों को आदर-सम्मान देने के लिए कहते थे| वे कहते थे कि दूसरों के साथ वैसा वर्ताव न करो जैसा तुम स्वयं अपने साथ नहीं चाहते हो|
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कन्फ्यूशियस एक सुधारक थे, धर्म प्रचारक नहीं| उन्होने ईश्वर के बारे में कोई उपदेश नहीं दिया| उन के उपदेशों के कारण चीनी समाज में एक स्थिरता आई| कन्फ्यूशियस का दर्शन शास्त्र आज भी चीनी समाज के लिए एक पथ प्रदर्शक है| उनके जीवन काल में ही उनके विद्यार्थियों की संख्या तीन हज़ार के लगभग थी जिनमें से कई तो अति उच्च प्रतिभाशाली विद्वान् हुए| उनके उपदेश मुख्यतः शासन व्यवस्था और कर्त्तव्य पालन पर होते थे|
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मेरे विचार से चीनी जनमानस अभी भी एक कोरे पन्ने की तरह है जिस पर सिर्फ कन्फ्यूशियस की ही शिक्षाएँ लिखी जा सकती हैं| आगे का भविष्य तो परमात्मा के हाथ में है| देखिये क्या होता है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ मार्च २०१८

1 comment:

  1. Arun Upadhyay भारतीय इतिहास का कालक्रम अंग्रेजों द्वारा नष्ट करने के कारण समझने में कठिनाई होती है। जिस समय कन्फ्यूशियस हुए थे, उसी समय आदि शंकराचार्य भी हुए थे। कुमारिल भट्ट (५५७-४९३ ईपू) ने वेदों का उद्धार आरम्भ किया। शंकराचार्य (५०९-४७६ ईपू) तथा मण्डन मिश्र (५४८-४६० ईपू) ने उसे पूरा किया। चीन तथा भारत-दोनों ने बौद्ध विचारों में एक साथ संशोधन किया। प्रायः उसी समय लाओत्से भी हुए।
    ७८८-८२० ई में शंकराचार्य को मानने पर इतिहास समझना सम्भव नहीं है। जब ७१२ ई में सिन्ध पर मुस्लिम अधिकार हो चुका था तो शंकराचार्य बौद्धों का विरोध क्यों कर रहे थे तथा सिन्ध और कश्मीर में किसके साथ शास्त्रार्थ कर रहे थे? इतिहास में शंकराचार्य का यह काल पढ़ने वाले हिन्दी या अन्य भारतीय भाषा की पुस्तक में पढ़ते हैं कि आठवीं सदी में गोरखनाथ के शिष्यों ने राष्ट्रीय भावना के प्रचार के लिए लोक भाषा में साहित्य आरम्भ किया था जबकि शंकराचार्य संस्कृत में शास्त्रार्थ कर रहे थे। उनकी प्रेरणा से बप्पा रावल तथा नागभट प्रतिहार का संघ बना और अगले ४८० वर्ष तक मुस्लिम भारत में नहीँ घुस पाये।

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