Tuesday, 3 December 2024

अपने आराध्य इष्ट देव की छवि को आत्म-भाव से कूटस्थ में सदा अपने समक्ष रखें ---

अपने आराध्य इष्ट देव की छवि को आत्म-भाव से कूटस्थ में सदा अपने समक्ष रखें। जब भूल जायें तब याद आते ही पुनश्च उनका स्मरण और आंतरिक दर्शन प्रारम्भ कर दें।

पुरुषोत्तम भगवान वासुदेव की छवि मेरे समक्ष कूटस्थ सूर्य-मण्डल में निरंतर बनी रहती है। उनका जपमंत्र भी निरंतर स्वतः ही चलता रहता है। वे ही परमशिव हैं, वे ही जगन्माता हैं, व वे ही श्रीराम और श्रीकृष्ण हैं।
मैं तो एक निमित्त साक्षी मात्र हूँ। भगवान आपनी साधना स्वयं कर रहे हैं। गीता में बताये हुये भक्तियोग को समझने और उसका पालन करने से -- कर्मयोग और ज्ञानयोग बहुत आसानी से समझ में आ जाता है। गीता का भक्तियोग बहुत व्यापक, स्पष्ट, विलक्षण और समझने में थोड़ा कठिन है। यह इतना सरल नहीं है। इसको सीखने के लिए परमप्रेम, एकाग्रता, उत्साह, लगन और खूब साधना चाहिए। ४ दिसंबर २०२२

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