Tuesday, 3 December 2024

जिनमें भक्ति विकसित नहीं हुई है इसमें उनका दोष नहीं है, उन्हें कुछ जन्मों तक और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ----

जिनमें भक्ति विकसित नहीं हुई है इसमें उनका दोष नहीं है, उन्हें कुछ जन्मों तक और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। तब तक वे अच्छे कर्म करें। जब अनेक जन्मों के अच्छे कर्म फलीभूत होंगे तब भक्ति पल्लवित होगी। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता, वह सदा गतिशील है।

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समाज के जो लोग बिना किसी अपराध के मुझे निंदा और गालियों से विभूषित करते हैं, जो मेरे साथ छल करते हैं, उनका भी कल्याण हो। मेरा किसी से कोई द्वेष नहीं है। मेरा जीवन भगवान को पूर्णतः समर्पित है। मेरा कर्मयोग भगवान का प्रकाश निरंतर फैलाना है। मुझे अपना उपकरण बनाकर भगवान स्वयं यह कार्य कर रहे हैं। गीता में वे कहते हैं --
"ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते॥१२:६॥"
"तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्॥१२:७॥"
"मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः॥१२:८॥"
"अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम्।
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय॥१२:९॥"
"अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव।
मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि॥१२:१०॥"
अर्थात् -- परन्तु जो भक्तजन मुझे ही परम लक्ष्य समझते हुए सब कर्मों को मुझे अर्पण करके अनन्ययोग के द्वारा मेरा (सगुण का) ही ध्यान करते हैं॥
हे पार्थ ! जिनका चित्त मुझमें ही स्थिर हुआ है ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्युरूप संसार सागर से उद्धार करने वाला होता हूँ॥
तुम अपने मन और बुद्धि को मुझमें ही स्थिर करो, तदुपरान्त तुम मुझमें ही निवास करोगे, इसमें कोई संशय नहीं है॥
हे धनंजय ! यदि तुम अपने मन को मुझमें स्थिर करने में समर्थ नहीं हो, तो अभ्यासयोग के द्वारा तुम मुझे प्राप्त करने की इच्छा (अर्थात् प्रयत्न) करो॥
यदि तुम अभ्यास में भी असमर्थ हो तो मत्कर्म परायण बनो; इस प्रकार मेरे लिए कर्मों को करते हुए भी तुम सिद्धि को प्राप्त करोगे॥
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मनन और निदिध्यासन के साथ साथ भगवान से उनके अनुग्रह के लिए प्रार्थना भी करें। आइये कुछ देर भगवान का ध्यान करते हैं --
"ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥"
"वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात्। पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात्। कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने॥"
"वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनं, देवकी परमानन्दं कृष्णम वन्दे जगतगुरुम्॥"
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हमारे मोहल्ले की अनेक भक्तिमती माताएँ प्रातः ५.१५ बजे से हरिःकीर्तन करती हुई एक घंटे तक प्रभात-फेरी निकालती है। उनकी प्रभात-फेरी अभी अभी समाप्त हो रही है। उन सब माताओं को मैं प्रणाम करता हूँ।
अंत में परमशिव को नमन करता हूँ, जिन्होंने इस आयु (७५ वर्ष) में भी मुझे अपनी भक्ति से वंचित नहीं किया है, और मेरा मन अपने में लगा रखा है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ दिसंबर २०२२

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