Tuesday, 7 September 2021

तपस्या क्या है? ---

 

तपस्या क्या है?
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निज भौतिक-स्वार्थ के लिए कार्य न कर के समष्टि के कल्याण के लिए साधना ही तपस्या है| भगवान ने स्वयं को समष्टि के रूप में व्यक्त किया है, इसीलिए हम भगवान की अनंतता पर ध्यान करते हैं| यही तप है| तप में सब तरह की कामनाएँ नष्ट हो जाती हैं| जो हम चाहते थे, वह तो हम स्वयं हैं| हम यह देह नहीं, परमात्मा के साथ एक हैं| सारा ब्रह्मांड ही अपनी देह है| पूरी सृष्टि में जो कुछ भी है, वह हम स्वयं हैं| इसी भाव से अजपा-जप की साधना होती है, जिसे हंसयोग, शिवयोग आदि का नाम भी दिया गया है| यह भाव ही सारी साधनाओं का आधार है, और यही तप है| हमारे माध्यम से स्वयं परमात्मा ही सारे कर्म करते हैं| हमारा एकमात्र कर्म तो उनके प्रति समर्पित होकर उनकी चेतना में रहना है|
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परमात्मा के पास सब कुछ है, उनका कोई कर्तव्य नहीं है, फिर भी वे निरंतर कर्मशील हैं| एक माइक्रो सेकंड (एक क्षण का दस लाखवाँ भाग) के लिए भी वे निष्क्रिय नहीं हैं| उनका कोई भी काम खुद के लिए नहीं है, अपनी सृष्टि के लिए वे निरंतर कार्य कर रहे हैं| यही हमारा परम आदर्श है| हम कर्ताभाव को त्याग कर, पूर्णत: समर्पित होकर उन्हें अपने माध्यम से कार्य करने दें, इस से बड़ा अन्य कोई तप नहीं है| स्वयं के लिए न कर के जो भी काम हम समष्टि यानी परमात्मा के लिए करते हैं, वही तप है, वही सबसे बड़ी तपस्या है, और यह तपस्या ही हमारी सबसे बड़ी निधि है| कर्ताभाव का कण मात्र भी न हो| तप तो भगवान स्वयं ही हमारे माध्यम से कर रहे हैं, हम सिर्फ साक्षी हो सकते हैं| कर्ताभाव अज्ञान है| हमारे माध्यम से समष्टि के कल्याण हेतु संपन्न कर्म ही "तप" है| वही परमात्मा की प्रसन्नता है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ सितम्बर २०२०
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पुनश्च: --- तप --- प्रश्न है कि तप क्या है? किशोरावस्था में हम समझते थे कि साधु लोग धूणा जलाकर बैठते हैं, और आग से तपते हैं, उसी को तप और तपस्या कहते हैं। बाद में समझ में आया कि आध्यात्मिक साधना के लिए किया गया परिश्रम ही तप है। कुछ लोग समझते हैं कि अपने स्वार्थ के लिए कार्य न करके, दूसरों के कल्याण के लिए कार्य करना - तप है। किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया गया परिश्रम भी तप है। >हमारे माध्यम से समष्टि के कल्याण हेतु संपन्न कर्म ही "तप" है। वही परमात्मा की प्रसन्नता और हमारी एकमात्र निधि है। <
 
पुनश्च :-- गीता के १७वें अध्याय "श्रद्धा त्रय विभाग योग" में श्लोक क्रमांक १४ से २० तक में अनेक प्रकार के तप बताए गए हैं। वहीं इन का स्वाध्याय अधिक अच्छा रहेगा।

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