Monday 12 March 2018

पुरुषार्थ .....

पुरुषार्थ .....
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सामान्यतः हम परिश्रमपूर्वक किये गए किसी कार्य को पुरुषार्थ कहते हैं| हमारे शास्त्रों में .... धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष .... ये चार पुरुषार्थ बताये गए हैं|
पर जहाँ तक मेरी समझ में आया है ....पुरुष शब्द का अर्थ है ... जो पुर यानि हम सब के अन्तस्थ में स्थित है (या शयन कर रहा है) .... यानि परमात्मा|
परमात्मा हम सब के भीतर है अतः परमात्मा ही एकमात्र पुरुष है, और उसको पाने का पूर्ण प्रयास ही पुरुषार्थ है, जिसकी सिद्धि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के रूप में होती है|
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शास्त्रों में पुरुषार्थ से भ्रष्ट हो जाने वाले को .... आत्महंता ... कहा गया है| आत्मा को पुरुषार्थ की ओर प्रवृत्त न करना आत्मा का हनन है यानि आत्मा की ह्त्या है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ मार्च २०१६

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