अज्ञानता का नाश कैसे हो ? ......
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परमात्मा का ज्ञान न होना ही वास्तविक अज्ञान है| यह अज्ञान ही सब बुराइयों कि जड़ है| इस अज्ञान के कारण ही मनुष्य में कामनाएँ, लोभ और क्रोध का जन्म होता है| ये तीनों ही महादोष हैं जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने नर्क का द्वार कहा है ....
"त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः| कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्रयं त्यजेत्||"
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क्रोध का कारण ... कामना और लोभ की पूर्ति का न होना है| अब प्रश्न यह उठता है कि कामना और लोभ से कैसे मुक्त हुआ जाए| ये दोनों ही सब समस्याओं कि जड़ हैं|
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अगला प्रश्न यह उठता है कि नर्क और स्वर्ग क्या हैं? इसका उत्तर अति कठिन है| हरेक व्यक्ति अपनी अपनी सामर्थ्यानुसार ही इसे समझता है| सबकी अपनी अपनी समझ है, अतः इस विषय पर चर्चा नहीं करूँगा| मुख्य प्रश्न है ..... अज्ञानता का नाश कैसे हो?
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इस पर विचार और इसका निर्णय भी मैं प्रबुद्ध पाठकों पर छोड़ता हूँ| आप सब से अनुरोध है कि इस पर विचार अवश्य करें और किसी ना किसी निर्णय पर अवश्य पहुंचें|
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एक बार ब्रह्मा जी के पास देवता, दानव और मनुष्य गये और उपदेश देने कि प्रार्थना की|
ब्रह्मा जी ने तीनों को कहा .... " द द द " | तीनों प्रसन्न होकर चले गये|
देवताओं ने इसका अर्थ लगाया कि हम भोगी लोगों को 'दमन' यानि इन्द्रियों और मन का दमन करना चाहिए|
दानवों ने इसका अर्थ लगाया कि हम क्रूर लोगों को 'दया' करनी चाहिए|
मनुष्यों ने इसका अर्थ लगाया कि हम लोभी लोगों को 'दान' करना चाहिए|
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मनुष्यों में ही देव, दानव और मानव इन तीनों कि वृत्तियाँ हैं| जिस अवगुण से हम छुटकारा पाना चाहते हैं, उससे विपरीत गुणों का हमें निरंतर चिंतन करना पडेगा| विरोधी धर्मोँ का अभ्यास करने से ही ये अवगुण छूटते हैं| इसके लिए साधना करनी पडती है| जब इसका बोध हो जाएगा कि हम यह देह नहीं अपितु शाश्वत आत्मा हैं तब देह के सुख की कामना और लोभ नहीं रहेगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ मार्च २०१६
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परमात्मा का ज्ञान न होना ही वास्तविक अज्ञान है| यह अज्ञान ही सब बुराइयों कि जड़ है| इस अज्ञान के कारण ही मनुष्य में कामनाएँ, लोभ और क्रोध का जन्म होता है| ये तीनों ही महादोष हैं जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने नर्क का द्वार कहा है ....
"त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः| कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्रयं त्यजेत्||"
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क्रोध का कारण ... कामना और लोभ की पूर्ति का न होना है| अब प्रश्न यह उठता है कि कामना और लोभ से कैसे मुक्त हुआ जाए| ये दोनों ही सब समस्याओं कि जड़ हैं|
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अगला प्रश्न यह उठता है कि नर्क और स्वर्ग क्या हैं? इसका उत्तर अति कठिन है| हरेक व्यक्ति अपनी अपनी सामर्थ्यानुसार ही इसे समझता है| सबकी अपनी अपनी समझ है, अतः इस विषय पर चर्चा नहीं करूँगा| मुख्य प्रश्न है ..... अज्ञानता का नाश कैसे हो?
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इस पर विचार और इसका निर्णय भी मैं प्रबुद्ध पाठकों पर छोड़ता हूँ| आप सब से अनुरोध है कि इस पर विचार अवश्य करें और किसी ना किसी निर्णय पर अवश्य पहुंचें|
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एक बार ब्रह्मा जी के पास देवता, दानव और मनुष्य गये और उपदेश देने कि प्रार्थना की|
ब्रह्मा जी ने तीनों को कहा .... " द द द " | तीनों प्रसन्न होकर चले गये|
देवताओं ने इसका अर्थ लगाया कि हम भोगी लोगों को 'दमन' यानि इन्द्रियों और मन का दमन करना चाहिए|
दानवों ने इसका अर्थ लगाया कि हम क्रूर लोगों को 'दया' करनी चाहिए|
मनुष्यों ने इसका अर्थ लगाया कि हम लोभी लोगों को 'दान' करना चाहिए|
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मनुष्यों में ही देव, दानव और मानव इन तीनों कि वृत्तियाँ हैं| जिस अवगुण से हम छुटकारा पाना चाहते हैं, उससे विपरीत गुणों का हमें निरंतर चिंतन करना पडेगा| विरोधी धर्मोँ का अभ्यास करने से ही ये अवगुण छूटते हैं| इसके लिए साधना करनी पडती है| जब इसका बोध हो जाएगा कि हम यह देह नहीं अपितु शाश्वत आत्मा हैं तब देह के सुख की कामना और लोभ नहीं रहेगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ मार्च २०१६
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