Thursday, 4 May 2017

भगवान शिव के शीश पर गंगा क्यों बहती है ? --

भगवान शिव के शीश पर गंगा क्यों बहती है ? ---------
--------------------------------------------------
यह प्रश्न मेरे मस्तिष्क में किशोरावस्था से ही था| मैंने महाभारत की एक उपकथा में भागीरथ और गंगावतरण के बारे में पढ़ा था, तभी से यह उत्सुकता थी| अनेक विद्वानों ने अपने लेखों में इस की अनेक तरह से व्याख्याएँ की हैं पर वे मुझे जँची नहीं| अंततः यह कथा मुझे प्रतीकात्मक ही लगने लगी| पर फिर भी लगता था इसके पीछे कोई ना कोई आध्यात्मिक सत्य अवश्य है|
अब मैं निश्चित तौर से यह कह सकता हूँ कि भगवान शिव भी सत्य है और उनके सिर पर बहने वाली गंगा भी सत्य है| यह बात बौद्धिक रूप से नहीं समझाई जा सकती पर गहन ध्यान में अनुभूत की जा सकती है|
.
गहन ध्यान में साधक को अपने शिवस्वरूप यानि शिव तत्व की अनुभूति तब होती है जब गुरु कृपा से उसकी घनीभूत प्राण चेतना (जिसे तन्त्र में कुण्डलिनी कहते हैं) उसे जागृत कर सुषुम्ना मार्ग (मूलाधार से आज्ञा चक्र) को पार कर उत्तरा सुषुम्ना (आज्ञा चक्र से सहस्त्रार) में विचरण करते हुए शनेः शनेः सहस्त्रार से भी परे की अनुभूतियाँ करने लगती है| तब साधक और भी अधिक गहन साधना द्वारा गुरुकृपा से अपनी देह की चेतना से मुक्त होकर समष्टि यानि ईश्वर की सर्वव्यापकता से एकाकार होने लगता है| तब उसे शिव तत्व और ज्ञान रुपी गंगा का प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है| यह सिर्फ गुरु की परम कृपा से ही सम्भव है| ऐसी स्थिति में साधक अपनी थोड़ी बहुत चेतना आज्ञा चक्र में रखता है अन्यथा देह का साथ छूट जाता है|
.
गंगा का अर्थ है --- ज्ञान|
हमारे पंचकोषात्मक (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय) देह के मस्तिष्क में ज्ञान गंगा नित्य विराजमान है|
.
भगवान शिव तो परम चैतन्य के प्रतीक ही नहीं स्वयं परम चैतन्य हैं| समस्त सृष्टि के उद्भव और संहार यानि सर्जन-विसर्जन की क्रिया उनका नृत्य है| परमात्मा की ऊँची से ऊँची परिकल्पना जो एक विराट से विराट मनुष्य का मस्तिष्क कर सकता है वह भगवान शिव का स्वरुप है| उनके माथे पर चन्द्रमा कूटस्थ चैतन्य, गले में सर्प कुण्डलिनी, उनकी दिगंबरता सर्वव्यापकता, और देह पर भभूत वैराग्य के प्रतीक हैं|
ऐसे ही उनके माथे पर गंगा जी समस्त ज्ञान का प्रतीक है जो निरंतर प्रवाहित हो रही है|
.
जिस तरह मनुष्य के मस्तिष्क में ज्ञान और बुद्धिमता का भंडार भरा पड़ा है वैसे ही सर्व व्यापक भगवान शिव के माथे पर समस्त चैतन्य और ज्ञान की आधार माँ गंगाजी नित्य विराजमान हैं|
.
ॐ नमः शिवाय | ॐ शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२ मई २०१३

No comments:

Post a Comment