April 22, 2014 at 9:35pm ·
संकल्पवान की सदा विजय होती है .....
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लाखों में से एक आत्मा निश्चय पूर्वक दृढ़ संकल्प करता है कि मैं अज्ञान के तिमिर को भेदते हुए आगे बढूँगा और परमात्मा को उपलब्ध होऊँगा | सत्य का अनुसंधान सब के लिए संभव नहीं है, पर जो उसके लिए प्राणों की बाज़ी लगा कर सब बाधाओं को पार करता हुआ अनवरत चलता रहता है वह ही उस पार पहुँच पाता है |
दो ही चीजें काम आती है ---- एक तो परम प्रेम और दूसरा पूर्ण समर्पण| इनके होने पर गुरु कृपा स्वतः ही होती है| फिर गुरु सब भूलों का शोधन कर देते हैं|
योगियों के लिए सुषुम्ना -- स्वर्ग का मार्ग है, और कूटस्थ -- स्वर्ग का द्वार है|
पानी का एक बुलबुला सागर से दूर होकर अत्यंत असहाय, अकेला और अकिंचन है|
उस क्षणभंगुर बुलबुले से छोटा और कौन हो सकता है?
पर वही बुलबुला जब सागर में मिल जाता है तो एक विकराल, विराट और प्रचंड रूप धारण कर लेता है|
वैसे ही मनुष्य है|
जितना वह परमात्मा से दूर है उतना ही छोटा है|
परमात्मा से जुड़ कर ही मनुष्य महान बनता है|
मनुष्य जितना परमात्मा से समीप है उतना ही महान है|
जितना वह परमात्मा से दूर है उतना ही छोटा है|
जितना आप परमात्मा से समीप हैं उसी अनुपात में प्रकृति की प्रत्येक शक्ति आपका सहयोग करने को बाध्य है|
जितना आप परमात्मा से दूर जायेंगे प्रकृति की प्रत्येक शक्ति उसी अनुपात में आप से विपरीत जाने को बाध्य होगी |
ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२२ अप्रेल २०१४
संकल्पवान की सदा विजय होती है .....
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लाखों में से एक आत्मा निश्चय पूर्वक दृढ़ संकल्प करता है कि मैं अज्ञान के तिमिर को भेदते हुए आगे बढूँगा और परमात्मा को उपलब्ध होऊँगा | सत्य का अनुसंधान सब के लिए संभव नहीं है, पर जो उसके लिए प्राणों की बाज़ी लगा कर सब बाधाओं को पार करता हुआ अनवरत चलता रहता है वह ही उस पार पहुँच पाता है |
दो ही चीजें काम आती है ---- एक तो परम प्रेम और दूसरा पूर्ण समर्पण| इनके होने पर गुरु कृपा स्वतः ही होती है| फिर गुरु सब भूलों का शोधन कर देते हैं|
योगियों के लिए सुषुम्ना -- स्वर्ग का मार्ग है, और कूटस्थ -- स्वर्ग का द्वार है|
पानी का एक बुलबुला सागर से दूर होकर अत्यंत असहाय, अकेला और अकिंचन है|
उस क्षणभंगुर बुलबुले से छोटा और कौन हो सकता है?
पर वही बुलबुला जब सागर में मिल जाता है तो एक विकराल, विराट और प्रचंड रूप धारण कर लेता है|
वैसे ही मनुष्य है|
जितना वह परमात्मा से दूर है उतना ही छोटा है|
परमात्मा से जुड़ कर ही मनुष्य महान बनता है|
मनुष्य जितना परमात्मा से समीप है उतना ही महान है|
जितना वह परमात्मा से दूर है उतना ही छोटा है|
जितना आप परमात्मा से समीप हैं उसी अनुपात में प्रकृति की प्रत्येक शक्ति आपका सहयोग करने को बाध्य है|
जितना आप परमात्मा से दूर जायेंगे प्रकृति की प्रत्येक शक्ति उसी अनुपात में आप से विपरीत जाने को बाध्य होगी |
ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२२ अप्रेल २०१४
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