मुक्ति व सेवा का राजमार्ग .....
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अपनी बुराई-भलाई, बुरे-अच्छे सभी प्रारब्ध-संचित कर्म, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार रूपी अपना सम्पूर्ण अस्तित्व बापस परमात्मा को सौंप दो और उन्हीं के हो जाओ ..... बस यही मुक्ति का एकमात्र मार्ग है व यही सबसे बड़ी सेवा है जो हम किसी के लिए कर सकते हैं| जब परमात्मा के प्रति प्रेम जागृत होगा और पात्रता आएगी तब स्वतः ही मार्गदर्शन भी भगवान स्वयं करते हैं|
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अपने समाज का और भारतवर्ष का पतन और बिखराव हुआ, इसका कारण कलि के प्रभाव से षड़रिपु .... काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और अहंकार रूपी अज्ञानता का समाज में वर्चस्व होना था| इसी कारण से सद् गुण विकृतियाँ आईं| अन्य कोई कारण नहीं था|
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अपनी बुराई-भलाई, बुरे-अच्छे सभी प्रारब्ध-संचित कर्म, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार रूपी अपना सम्पूर्ण अस्तित्व बापस परमात्मा को सौंप दो और उन्हीं के हो जाओ ..... बस यही मुक्ति का एकमात्र मार्ग है व यही सबसे बड़ी सेवा है जो हम किसी के लिए कर सकते हैं| जब परमात्मा के प्रति प्रेम जागृत होगा और पात्रता आएगी तब स्वतः ही मार्गदर्शन भी भगवान स्वयं करते हैं|
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अपने समाज का और भारतवर्ष का पतन और बिखराव हुआ, इसका कारण कलि के प्रभाव से षड़रिपु .... काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और अहंकार रूपी अज्ञानता का समाज में वर्चस्व होना था| इसी कारण से सद् गुण विकृतियाँ आईं| अन्य कोई कारण नहीं था|
इस स्थिति को सबसे
पहिले समझा आचार्य चाणक्य ने| उनके प्रयासों से भारत में सांस्कृतिक और
राजनीतिक एकता स्थापित हुई| शताब्दियों तक भारत की ओर बुरी दृष्टी से आँख
उठाकर देखने का किसी में साहस नहीं हुआ|
भारत का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पतन और बिखराव समय के प्रभाव से फिर हुआ| इस तामसिक प्रभाव को समझ कर दूर किया आचार्य शंकर के प्रयासों ने|
समय के प्रभाव से भारत फिर पदाक्रांत हुआ और अभारतीय कुटिल, क्रूर, निर्दय व दुर्दांत सांस्कृतिक व राजनीतिक सत्ताएँ भारत में छा गईं| भारत ने कभी उनको स्वीकार नहीं किया, सदा प्रतिकार किया और उनके विरुद्ध संघर्ष जारी रखा|
उनके विरुद्ध भारत में अनेकानेक भक्तों व संत-महात्माओं ने जन्म लिया और अपने प्रयासों से भारत की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक एकता बनाए रखी| हम सदा कृतज्ञ और आभारी रहेंगे उनका|
भारत के भीतर एक अभारत के रूप में पाकिस्तान का जन्म हुआ और भारत की सत्ता पर प्रभाव भी विदेशियों के मानसपुत्रों व अभारतीय विचारधारा के लोगों का हुआ| यहाँ भी भारत की आत्मा ने अपना प्रतिकार जारी रखा| इस बात को श्रीअरविन्द, वीर सावरकर व डा.हेडगेवार जैसे लोग तो बहुत पहिले ही समझ गए थे, फिर डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी और पं.दीनदयाल उपाध्याय जैसों ने समझा| उन्होंने अपने प्रयासों से भारतीयता के लिए संघर्ष जारी रखा|
सौभाग्य से आज भी भारत में अनेक अज्ञात साधू-संत-महात्मा हैं जो भारत की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक एकता और भारत की आत्मा की रक्षा के लिए साधना और संघर्ष कर रहे हैं|
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भारतीयता की रक्षा तभी होगी जब हम अपने निज जीवन में स्वधर्म को समझेंगे और उसका पालन करेंगे| धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा करता है, अन्य कोई साधन या मार्ग नहीं है| जो धर्म की रक्षा करेगा, धर्म भी उसकी रक्षा करेगा|
इस के लिए हमें अपने निज जीवन में इन षड़रिपुओं ..... काम. क्रोध, लोभ. मोह, मद व मत्सर्य का प्रभाव कम से कम करना होगा, और निज जीवन में ही परमात्मा को अवतरित करना होगा|
सभी को पूर्ण ह्रदय से शुभ कामनाएँ और अहैतुकी प्रेम|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
भारत का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पतन और बिखराव समय के प्रभाव से फिर हुआ| इस तामसिक प्रभाव को समझ कर दूर किया आचार्य शंकर के प्रयासों ने|
समय के प्रभाव से भारत फिर पदाक्रांत हुआ और अभारतीय कुटिल, क्रूर, निर्दय व दुर्दांत सांस्कृतिक व राजनीतिक सत्ताएँ भारत में छा गईं| भारत ने कभी उनको स्वीकार नहीं किया, सदा प्रतिकार किया और उनके विरुद्ध संघर्ष जारी रखा|
उनके विरुद्ध भारत में अनेकानेक भक्तों व संत-महात्माओं ने जन्म लिया और अपने प्रयासों से भारत की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक एकता बनाए रखी| हम सदा कृतज्ञ और आभारी रहेंगे उनका|
भारत के भीतर एक अभारत के रूप में पाकिस्तान का जन्म हुआ और भारत की सत्ता पर प्रभाव भी विदेशियों के मानसपुत्रों व अभारतीय विचारधारा के लोगों का हुआ| यहाँ भी भारत की आत्मा ने अपना प्रतिकार जारी रखा| इस बात को श्रीअरविन्द, वीर सावरकर व डा.हेडगेवार जैसे लोग तो बहुत पहिले ही समझ गए थे, फिर डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी और पं.दीनदयाल उपाध्याय जैसों ने समझा| उन्होंने अपने प्रयासों से भारतीयता के लिए संघर्ष जारी रखा|
सौभाग्य से आज भी भारत में अनेक अज्ञात साधू-संत-महात्मा हैं जो भारत की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक एकता और भारत की आत्मा की रक्षा के लिए साधना और संघर्ष कर रहे हैं|
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भारतीयता की रक्षा तभी होगी जब हम अपने निज जीवन में स्वधर्म को समझेंगे और उसका पालन करेंगे| धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा करता है, अन्य कोई साधन या मार्ग नहीं है| जो धर्म की रक्षा करेगा, धर्म भी उसकी रक्षा करेगा|
इस के लिए हमें अपने निज जीवन में इन षड़रिपुओं ..... काम. क्रोध, लोभ. मोह, मद व मत्सर्य का प्रभाव कम से कम करना होगा, और निज जीवन में ही परमात्मा को अवतरित करना होगा|
सभी को पूर्ण ह्रदय से शुभ कामनाएँ और अहैतुकी प्रेम|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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