Monday, 2 January 2017

जीवन में गुरु का अवतरण ........

जीवन में गुरु का अवतरण ........
---------------------------------
जीवन में सद्गुरु कहीं ढूँढने से नहीं मिलते| जब पात्रता होती है तब सद्गुरु स्वयं ही जीवन में अवतरित हो जाते हैं| कोई आवश्यक नहीं है कि सद्गुरु वर्तमान में भौतिक देह में ही हो| अपने प्रारब्ध के अनुसार सूक्ष्म जगत की आत्माएँ भी गुरु रूप में आ जाती हैं, जिनसे व्यक्ति का किसी पूर्व जन्म में सम्बन्ध रहा हो| मैं इस बारे में सब कुछ अपने निजी अनुभवों से कह रहा हूँ, अन्य लोगों की धारणाओं का मेरे इस लेख से कोई सम्बन्ध नहीं है| गुरु कभी स्वयं को गुरु नहीं कहता पर जीवन में उसका आविर्भाव होते ही पता चल जाता है|
.
मुझे गुरुलाभ भी समुद्र में ही हुआ और गुरु से जो भी आरम्भिक प्रेरणाएँ और ज्ञान मिला वह भी समुद्रों में ही मिला| फरवरी सन १९७९ ई. की बात है, मैं एक जलयान में लम्बी यात्रा कर रहा था| मेरे पास बहुत समय से 'Autobiography of a Yogi' नाम की एक पुस्तक पड़ी थी जिसे मैंने कभी नहीं पढ़ा था| उस दिन सायंकाल में उस पुस्तक को मैनें कौतूहलवश ही पढना आरम्भ किया तो वह पुस्तक इतनी अच्छी लगी कि रात भर सोया नहीं, वह पुस्तक ही पढ़ता रहा| जब अगले दिन प्रातःकाल में वह पुस्तक समाप्त हुई तब मैनें अपने कमरे (Cabin) की खिड़की (Port hole) खोली और बाहर नीरव शांत समुद्र में छाई हुई चाँदनी का आनंद लेने लगा और उस पुस्तक की दिव्यता के बारे में सोचता रहा| अचानक ही मुझे ऐसे लगा जैसे हज़ारों लाखों वोल्ट की विद्युत् मेरे सिर से पैर तक गुज़र गयी हो| यह अनुभव बड़ा आनंददायक था| इससे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि शक्तिपात के बारे में एक अन्य पुस्तक में पढ़ चुका था| अगले चार-पांच दिन बड़े गहन आनंद में निकले| इस अनुभव से पता चला कि पूर्व जन्म के गुरु ही अब इस जन्म में भी हैं और उन्होंने सम्भाल लिया है| गुरु का साथ शाश्वत है|
.
सन १९८१ की बात है| एक समुद्री यात्रा में ही ध्यान करते करते अचानक एक ऐसी अवस्था में पहुँच गया जो न तो जागृत थी और न ही सुप्त| सूक्ष्म देह में गुरु की अनुभूति हुई और बहुत कुछ उन्होंने बता दिया और दीक्षित भी कर दिया| यह पूरी प्रक्रिया कुछ मिनटों में ही समाप्त हो गयी| फिर धीरे धीरे समय समय पर कई रहस्य खुलते गये और अनेक बार बड़ी दुर्घटनाओं से रक्षा भी हुई| चमत्कारों का जीवन में कोई महत्व नहीं है, चमत्कार तो सामान्य घटनाएँ हैं|
.
जीवन में कई दुःखों, कष्टों और यंत्रणाओं से निकला हूँ और अभी भी निकल रहा हूँ, पर मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि ये सब मेरे प्रारब्ध का भाग है| जीवन में जितनी यंत्रणाएं झेली हैं उनसे कई गुना अधिक तो आनंद प्राप्त किया है|
.
सन १९८५ के आसपास का समय तो ऐसा प्रेममय था जो काश अब भी होता| रात्रि को जब सोता तब ऐसे लगता था जैसे जगन्माता की गोद में निश्चिन्त होकर सो रहा हूँ| हर समय परमात्मा की अनुभूतियाँ रहती| पर वह एक अलग ही समय था| बहुत अधिक वैराग्य हो गया था पर प्रारब्ध में बहुत कुछ अन्य ही भोगना बाकी था|
.
गुरु भी एक ऐसे तट पर छोड़ देते हैं जहाँ से आगे का मार्ग परमात्मा की कृपा से स्वयं ही तय करना पड़ता है| हालाँकि गुरु का आशीर्वाद, अदृश्य साथ और सतत मार्गदर्शन बना रहता है|
.
जीवन में बहुत अधिक बड़ी बड़ी भूलें भी की हैं ..... हिमालय से भी बड़ी भूलें और गलतियाँ| पर करुणामयी जगन्माता का प्रेमसिन्धु इतना विराट है कि वे हिमालय सी भूलें भी वहाँ कंकर-पत्थर से अधिक नहीं हैं| सांसारिक माता ही अपने पुत्र के कई अपराध क्षमा कर देती हैं तो जगन्माता का ह्रदय तो बहुत अधिक उदार है|
.
प्रेममयी जगन्माता कृपा करके सभी बन्धनों से मुक्त करेंगी और अपनी पूर्णता से एकाकार भी अवश्य करेंगी| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
.
कृपा शंकर
पौष कृ.८, वि.सं.२०७२ // २ जनवरी २०१६

No comments:

Post a Comment