Wednesday 28 July 2021

मेरे उपास्य भगवान परमशिव को नमन ---

मेरे उपास्य भगवान परमशिव को नमन ---
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"पीठं यस्या धरित्री जलधरकलशं लिङ्गमाकाशमूर्तिम् ,
नक्षत्रं पुष्पमाल्यं ग्रहगणकुसुमं चन्द्रवह्न्यर्कनेत्रम्।
कुक्षिः सप्तसमुद्रं भुजगिरिशिखरं सप्तपाताळपादम्
वेदं वक्त्रं षडङ्गं दशदिश वसनं दिव्यलिङ्गं नमामि॥"
अर्थात् - पृथ्वी जिन का आसन है, जल से भरे हुए मेघ जिन के कलश हैं, सारे नक्षत्र जिन की पुष्प माला है, ग्रह गण जिनके कुसुम हैं, चन्द्र सूर्य एवं अग्नि जिन के नेत्र हैं , सातों समुद्र जिन के पेट हैं , पर्वतों के शिखर जिन के हाथ हैं , सातों पाताल जिन के पैर हैं, वेद और षड़ङ्ग जिन के मुख हैं, तथा दशों दिशायें जिन के वस्त्र हैं -- ऐसे आकाश की तरह मूर्तिमान दिव्य लिङ्ग को में नमस्कार करता हूँ।
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शिवलिंग का अर्थ है वह परम मंगल और कल्याणकारी परम चैतन्य जिसमें सब का विलय हो जाता है। सारा अस्तित्व, सारा ब्रह्मांड ही शिव लिंग है। स्थूल जगत का सूक्ष्म जगत में, सूक्ष्म जगत का कारण जगत में और कारण जगत का सभी आयामों से परे -- तुरीय चेतना -- में विलय हो जाता है। उस तुरीय चेतना का प्रतीक है -- शिवलिंग, जो साधक के कूटस्थ यानि ब्रह्मयोनी में निरंतर जागृत रहता है. उस पर ध्यान से चेतना ऊर्ध्वमुखी होने लगती है. लिंग का शाब्दिक शास्त्रीय अर्थ है विलीन होना। शिवत्व में विलीन होने का प्रतीक है शिवलिंग।
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शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है। यही हमारा लक्ष्य है। शिव का अर्थ है -- कल्याणकारी।
शंभू का अर्थ है -- मंगलदायक।
शंकर का अर्थ है -- शमनकारी और आनंददायक।
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है। इनमें कोई भेद नहीं है।
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पञ्चमुखी महादेव -- योगियों को गहन ध्यान में कूटस्थ में एक स्वर्णिम आभा के मध्य एक नीला प्रकाश दिखाई देता है जिसके मध्य में एक श्वेत पञ्चकोणीय नक्षत्र दिखाई देता है। वह पञ्चकोणीय नक्षत्र पंचमुखी महादेव है। गहन ध्यान में योगीगण उसी का ध्यान करते हैं। ब्रह्मांड पाँच तत्वों से बना है -- जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश। भगवान शिव पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले है। शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं -- ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात।
भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व के अधिपति हैं। इसका अर्थ है सबके स्वामी|
पूर्वमुख का नाम 'तत्पुरुष' है, जो वायु तत्व के अधिपति हैं।
दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नितत्व के अधिपति हैं।
उत्तरी मुख का नाम वामदेव है, जो जल तत्व के अधिपति हैं।
पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं।
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भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं। भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है। तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण -- ये पाँचों मिल कर काल कहलाते हैं। ये काल के पाँच अंग हैं।
शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर| -- ये पाँचों मिलकर शिव-परिवार कहलाते हैं। नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं।
शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र -- 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है। साधना में प्रयुक्त रुद्राक्ष भी सामान्यत: पंचमुखी ही होता है।
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जो परम कल्याणकारक हैं वे परमशिव हैं। परमशिव एक अनुभूति है। ब्रह्मरंध्र से परे परमात्मा की विराट अनंतता का सचेतन बोध परमशिव की अनुभूति है। तब साधक स्वयं ही परमशिव हो जाता है। भगवान परमशिव दुःखतस्कर हैं। तस्कर का अर्थ होता है -- जो दूसरों की वस्तु का हरण कर लेता है। भगवान परमशिव अपने भक्तों के सारे दुःख और कष्ट हर लेते हैं। वे जीवात्मा को संसारजाल, कर्मजाल और मायाजाल से मुक्त कराते हैं। जीवों के स्थूल, सूक्ष्म और कारण देह के तीन पुरों को ध्वंश कर महाचैतन्य में प्रतिष्ठित कराते है अतः वे त्रिपुरारी हैं।
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परमात्मा के लिए ब्रह्म शब्द का प्रयोग किया जाता है। ब्रह्म शब्द का अर्थ है -- जिनका निरंतर विस्तार हो रहा है, जो सर्वत्र व्याप्त हैं, वे ब्रह्म हैं।
सूक्ष्म देह के भीतर सुषुम्ना नाड़ी के भीतर एक शिवलिंग तो मूलाधार चक्र के बिलकुल ऊपर है। मूलाधार से सहस्त्रार तक एक ओंकारमय दीर्घ शिवलिंग है। मेरुदंड में सुषुम्ना के सारे चक्र उसी में हैं।
एक शिवलिंग आज्ञाचक्र से ऊपर उत्तरा-सुषुम्ना में है। मानसिक रूप से उसी में रहते हुए परमशिव अर्थात ईश्वर की कल्याणकारी ज्योतिर्मय सर्वव्यापकता का ध्यान किया जाता है। ध्यान भ्रूमध्य से आरम्भ करते हुए सहस्त्रार पर ले जाएँ और श्रीगुरुचरणों में आश्रय लेते हुए वहीं से करें।
सम्पूर्ण अनंतता से परे मेरे उपास्य देव भगवान परमशिव हैं, जिनकी चेतना ही मेरा अस्तित्व है। ॐ शिव ! ॐ तत्सत् !
ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च॥ ॐ नमःशिवाय॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
१७ जून २०२१

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