Friday 11 June 2021

परमशिवावस्था ही आत्मा की परावस्था होती है ---

 परमशिवावस्था ही आत्मा की परावस्था होती है ......

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मैंने अपने जीवन में अब तक जो कुछ भी साधना, स्वाध्याय व सत्संग से सीखा है, उसका सार है कि ....
"परमशिवावस्था ही आत्मा की परावस्था है|"
मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य इस परमशिवावस्था को उपलब्ध होना है| इस से पृथक जो कुछ भी है वह भटकाव है, जिस से हम बचें| हम जीव नहीं, परमशिव हैं| जिसे हम "ईश्वर को प्राप्त करना या होना" कहते हैं ..... वह परमशिवावस्था ही है| शिवत्व का ध्यान करते करते एक अवर्णनीय स्थिति आती है जहाँ हमारी चेतना विस्तृत होकर समष्टि के साथ एक हो जाती है, हम जड़-चेतन सर्वस्व के साथ एक हो जाते हैं, और पाते हैं कि हमारे से अन्य तो कोई है ही नहीं| हम स्वयं को ज्योतिषांज्योति प्रकाशमय पाते हैं, जहाँ कोई अज्ञान और अंधकार नहीं है, जिसके बारे में श्रुति भगवती कहती है ....
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः|
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति||"
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गीता में जिस ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त करने की बात भगवान श्रीकृष्ण ने कही है, वह भी यही है|
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति|
स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति||"
वही भगवान का परमधाम है जहाँ पहुँच कर फिर कोई बापस नहीं आता|
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः|
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम||"
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इससे अतिरिक्त अन्य जो कुछ भी है वह भटकाव है| सारे शैव व शाक्त आगमों व योगदर्शन का भी यही उपदेश है| बड़ी विचित्र लीला है जिसे बुद्धि से समझना असंभव है.....
"शिव शक्ति की उपासना करते हैं और शक्ति शिव की|"
यह साधकों को संकेत है कि "परमशिवावस्था ही आत्मा की परावस्था है|"
ये सारे रहस्य भगवान स्वयं समझा देते हैं जब हमारे हृदय में उनके लिए परमप्रेम और अभीप्सा जागृत होती है| उन्हें अन्य कोई समझा भी नहीं सकता| तब तक ये रहस्य, रहस्य ही रहेंगे| इति||
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ॐ तत्सत् || ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१२ जून २०२०
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पुनश्च:
शिव और शक्ति में कोई भेद नहीं है| दोनों एक हैं, उनकी अभिव्यक्ति ही पृथक-पृथक हैं|
योग साधना का उद्देश्य है महाशक्ति कुंडलिनी का परमशिव से मिलन|
सारे शैव साधक शक्ति की साधना करते हैं, और शाक्त साधक शिव की|
महात्माओं से सुना है कि ....
शैवागमों के आचार्य दुर्वासा ऋषि, षड़ाक्षरी बीज द्वारा श्रीविद्या की साधना करते थे|
परम सिद्ध अगस्त्य ऋषि, हयग्रीव से प्राप्त पञ्चदशाक्षरी बीज द्वारा श्री विद्या की साधना करते थे|
आचार्य शंकर, श्रीविद्या की साधना करते थे|
गुरु गौरक्षनाथ, माँ छिन्नमस्ता के साधक थे|
हमारा लक्ष्य है शिवत्व की प्राप्ति, इसमें कोई संशय न रखें|
जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिर्न संशयः|

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