माता और पिता दोनों ही प्रथम पूज्य और प्रत्यक्ष परमात्मा हैं| किसी भी परिस्थिति में संतान द्वारा उनका अपमान नहीं होना चाहिए| उनके अपमान से भयंकर पितृदोष लगता है| पितृदोष जिन को होता है, या तो उनका वंशनाश हो जाता है या उनके वंश में अच्छी आत्मायें जन्म नहीं लेतीं| पितृदोष से घर में सुख-शांति नहीं होती और कलह बनी रहती है| आज के समय अधिकांश परिवार पितृदोष से दु:खी हैं| विवाहिता स्त्री के लिए उसके सास-ससुर भी माता-पिता हैं| उनका सम्मान परमात्मा का सम्मान है| यदि माता-पिता का आचरण धर्म-विरुद्ध और सन्मार्ग में बाधक है तो भी वे पूजनीय हैं| ऐसी परिस्थिति में हम उनकी बात मानने को बाध्य नहीं हैं, पर उन्हें अपमानित करने का अधिकार किसी को भी नहीं है| उनका भूल से भी अपमान न हो| उनका पूर्ण सम्मान करना हमारा परम-धर्म है| वे प्रत्यक्ष रूप से हमारे सम्मुख हैं तो प्रत्यक्ष रूप से, अन्यथा मानसिक रूप से उन के श्री-चरणों में प्रणाम करना हमारा धर्म है| कोई भी ऐसा महान व्यक्ति आज तक नहीं हुआ जिसने अपने माता-पिता की सेवा नहीं की हो| यदि उनकी उपेक्षा करके अन्य किसी भी देवी-देवता की उपासना करते हैं तो हमारी साधना सफल नहीं हो सकती| उपनिषदों में 'मातृ देवो भव, पितृ देवो भव' कहा गया है| उन की सेवा से पित्तरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है| पितरों का आशीर्वाद जिसे प्राप्त हो जाता है उसके लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं होता| माता-पिता की सेवा के कारण ही गणेश प्रथम पूजनीय बन गए| गणेश पूजन का संदेश ही माता-पिता की सेवा भक्ति का संदेश है|
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माता और पिता को प्रणाम करने के मंत्र भी हैं| ये मंत्र स्वतः चिन्मय हैं जिनके प्रयोग हेतु अन्य किसी विधि को अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं है|
(१) पिता को प्रणाम करने का मंत्र :---
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"ॐ ऐं" .... इस मंत्र को मानसिक रूप से जपते हुए अपने पिता के श्रीचरणों में प्रणाम निवेदित करें| यदि वे नहीं हैं तो मानसिक रूप से करें| "ऐं" पूर्ण ब्रह्मविद्या स्वरुप है| यह बीज मन्त्र है महासरस्वती और गुरु को प्रणाम करने का| गुरु रूप में पिता को प्रणाम करने से इसका अर्थ होता है ... "हे पितृदेव मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|" इसके जप से मूलाधारस्थ ब्रहमग्रन्थि का भेदन होता है|
(२) माता को प्रणाम करने का मंत्र :---
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"ॐ ह्रीं" .... इस मंत्र को मानसिक रूप से जपते हुए अपनी माता के श्रीचरणों में प्रणाम निवेदित करें| यदि वे नहीं हैं तो मानसिक रूप से करें| "ह्रीं" यह महालक्ष्मी व श्रीविद्या और माँ भुवनेश्वरी का बीजमंत्र भी है, जिनका पूर्ण प्रकाश स्नेहमयी माता के चरणों में प्रकट होता है| इसके जप से अनाहतचक्रस्थ विष्णुग्रंथि का भेदन होता है|
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माता और पिता को प्रणाम करने के मंत्र भी हैं| ये मंत्र स्वतः चिन्मय हैं जिनके प्रयोग हेतु अन्य किसी विधि को अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं है|
(१) पिता को प्रणाम करने का मंत्र :---
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"ॐ ऐं" .... इस मंत्र को मानसिक रूप से जपते हुए अपने पिता के श्रीचरणों में प्रणाम निवेदित करें| यदि वे नहीं हैं तो मानसिक रूप से करें| "ऐं" पूर्ण ब्रह्मविद्या स्वरुप है| यह बीज मन्त्र है महासरस्वती और गुरु को प्रणाम करने का| गुरु रूप में पिता को प्रणाम करने से इसका अर्थ होता है ... "हे पितृदेव मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|" इसके जप से मूलाधारस्थ ब्रहमग्रन्थि का भेदन होता है|
(२) माता को प्रणाम करने का मंत्र :---
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"ॐ ह्रीं" .... इस मंत्र को मानसिक रूप से जपते हुए अपनी माता के श्रीचरणों में प्रणाम निवेदित करें| यदि वे नहीं हैं तो मानसिक रूप से करें| "ह्रीं" यह महालक्ष्मी व श्रीविद्या और माँ भुवनेश्वरी का बीजमंत्र भी है, जिनका पूर्ण प्रकाश स्नेहमयी माता के चरणों में प्रकट होता है| इसके जप से अनाहतचक्रस्थ विष्णुग्रंथि का भेदन होता है|
"ॐ" तो प्रत्यक्ष परमात्मा का वाचक है|
जैसी भी आपकी श्रद्धा है वैसे ही आप कीजिये| आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं जिनको मैं प्रणाम करता हूँ|
ॐ तत्सत् | मातृ देवो भव: पितृ देवो भव: | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१५ फरवरी २०२०
जैसी भी आपकी श्रद्धा है वैसे ही आप कीजिये| आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं जिनको मैं प्रणाम करता हूँ|
ॐ तत्सत् | मातृ देवो भव: पितृ देवो भव: | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१५ फरवरी २०२०