Tuesday 4 June 2019

माता पिता दोनों ही प्रथम परमात्मा हैं .....

माता पिता दोनों ही प्रथम परमात्मा हैं .....
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पिता ही शिव हैं और माता पार्वती| किसी भी परिस्थिति में उनका अपमान नहीं होना चाहिए| उनका सम्मान परमात्मा का सम्मान है| यदि उनका आचरण धर्म-विरुद्ध और सन्मार्ग में बाधक है तो भी वे पूजनीय हैं| ऐसी परिस्थिति में हम उनकी बात मानने को बाध्य नहीं हैं पर उन्हें अपमानित करने का अधिकार हमें नहीं है| हम उनका भूल से भी अपमान नहीं करेंगे| उनका पूर्ण सम्मान करना हमारा परम धर्म है|
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श्रुति कहती है ..... मातृदेवो भव, पितृदेवो भव| माता पिता के समान गुरु नहीं होते| माता-पिता प्रत्यक्ष देवता हैं| यदि हम उन को अपमानित कर के अन्य किसी भी देवी देवता की उपासना करते हैं तो हमारी साधना सफल नहीं हो सकती|
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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, महातेजस्वी श्रीपरशुराम, महाराज पुरु, महारथी भीष्म पितामह आदि सब महान पितृभक्त थे| विनता-नंदन गरुड़, बालक लव-कुश, वभ्रूवाहन, दुर्योधन और सत्यकाम आदि महान मातृभक्त थे| कोई भी ऐसा महान व्यक्ति आज तक नहीं हुआ जिसने अपने माता-पिता की सेवा नहीं की हो| "पितरी प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्व देवता|" श्री और श्रीपति, शिव और शक्ति .... वे ही इस स्थूल जगत में माता-पिता के रूप में प्रकट होते हैं|
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उनके अपमान से भयंकर पितृदोष लगता है| पितृदोष जिन को होता है, या तो उनका वंश नहीं चलता या उनके वंश में अच्छी आत्माएं जन्म नहीं लेती| पितृदोष से घर में सुख शांति नहीं होती और कलह बनी रहती है| आज के समय अधिकांश परिवार पितृदोष से दु:खी हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जून २०१३

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