Saturday 30 September 2017

एक महान आदर्श गृहस्थ योगी .......

एक महान आदर्श गृहस्थ योगी .......
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पुराण पुरुष योगिराज श्री श्री पं.श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय का जन्म सन ३० सितम्बर १८२८ ई. को कृष्णनगर (बंगाल) के समीप धुरनी ग्राम में हुआ था| इनके परम शिवभक्त पिताजी वाराणसी में आकर बस गए थे| श्यामाचरण ने वाराणसी के सरकारी संस्कृत कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की| संस्कृत के अतिरिक्त अंग्रेजी, बंगला, उर्दू और फारसी भाषाएं सीखी| पं.नागभट्ट नाम के एक प्रसिद्ध शास्त्रज्ञ महाराष्ट्रीय पंडित से इन्होनें वेद, उपनिषद और अन्य शास्त्रों व धर्मग्रंथों का अध्ययन किया|
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पं.देवनारायण सान्याल वाचस्पति की पुत्री काशीमणी से इनका १८ वर्ष की उम्र में विवाह हुआ| २३ साल की उम्र में इन्होने सरकारी नौकरी कर ली| उस समय सरकारी वेतन अत्यल्प होता था अतः घर खर्च पूरा करने के लिये ये नेपाल नरेश के वाराणसी में अध्ययनरत पुत्र को गृहशिक्षा देने लगे| तत्पश्चात काशीनरेश के पुत्र और अन्य कई श्रीमंत लोगों के पुत्र भी इनसे गृहशिक्षा लेने लगे|
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हिमालय में रानीखेत के समीप द्रोणगिरी पर्वत की तलहटी में इनको गुरुलाभ हुआ| इनके गुरू हिमालय के अमर संत महावतार बाबाजी थे जो आज भी सशरीर जीवित हैं और अपने दर्शन उच्चतम विकसित आत्माओं को देते हैं| गुरू ने इनको आदर्श गृहस्थ के रूप में रहने का आदेश दिया और ये गृहस्थी में ही रहकर संसार का कार्य करते हुए कठोर साधना करने लगे|
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जैसे फूलों की सुगंध छिपी नहीं रह सकती वैसे ही इनकी प्रखर तेजस्विता छिपी नहीं रह सकी और अनेक मुमुक्षुगण इनके पास आने लगे| ये अपने गृहस्थ शिष्यों को गृहस्थाश्रम में ही रहकर साधना करने का आदेश देते थे क्योंकि गृहस्थाश्रम पर ही अन्य आश्रम निर्भर हैं| इनके शिष्यों में अनेक प्रसिद्ध सन्यासी भी थे जैसे स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरी, स्वामी केशवानंद ब्रह्मचारी, स्वामी प्रणवानंद गिरी, स्वामी केवलानंद, स्वामी विशुद्धानंद सरस्वती, स्वामी बालानंद ब्रह्मचारी आदि|
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कश्मीर नरेश, काशी नरेश और बर्दवान नरेश भी इनके शिष्य थे| इसके अतिरिक्त उस समय के अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति जो कालांतर में प्रसिद्ध योगी भी हुए इनके शिष्य थे जैसे पं.पंचानन भट्टाचार्य, पं.भूपेन्द्रनाथ सान्याल, पं.काशीनाथ शास्त्री, पं.नगेन्द्रनाथ भादुड़ी, पं.प्रसाद दास गोस्वामी, रामगोपाल मजूमदार आदि| सामान्य लोगों के लिये भी इनके द्वार खुले रहते थे| वाराणसी में वृंदाभगत नाम के इनके एक डाकिये शिष्य ने कठोर साधना द्वारा योग की परम सिद्धियाँ प्राप्त की थीं|
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लाहिड़ी महाशय ने न तो कभी किसी संस्था की स्थापना की, न कोई आश्रम बनवाया, न कभी कोई सार्वजनिक प्रवचन दिया और न कभी किसी से कुछ रुपया पैसा माँग कर लिया| अपने घर की बैठक में ही पद्मासन में बैठ कर शाम्भवी मुद्रा में साधनारत रहते थे और अपना सारा खर्च अपनी अत्यल्प पेंशन और बच्चों को गृहशिक्षा देकर पूरा करते थे|
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ये गुरूदक्षिणा में मिले सारे रुपयों को अपने किसी भी निजी काम में न लेकर हिमालय के साधुओं की सेवा में उनकी आवश्यकता पूर्ति हेतु भिजवा दिया करते थे| इनके घर में शिवपूजा और गीतापाठ नित्य होता था| शिष्यों के लिये नित्य गीतापाठ अनिवार्य था| अपना सारा रुपया पैसा ये अपनी पत्नी को दे दिया करते और अपने पास कुछ भी नहीं रखते थे| अपनी डायरी बंगला भाषा में नित्य लिखते थे| शिष्यों को दिए प्रवचनों को इनके एक शिष्य पं.भूपेन्द्रनाथ सान्याल बंगला भाषा में लिपिबद्ध कर लेते थे| उनका सिर्फ वह ही साहित्य उपलब्ध है|
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सन २६ सितम्बर १८९५ ई. को इन्होने कई घंटों तक अपने शिष्यों को गीता के कई गूढ़ श्लोकों की व्याख्या की और पद्मासन में ध्यानस्थ होकर सचेतन देहत्याग किया| इनका अंतिम संस्कार एक गृहस्थ का ही हुआ| शरीर छोड़ने के दूसरे दिन तीन विभिन्न स्थानों पर एक ही समय में इन्होने अपने तीन शिष्यों को सशरीर दर्शन दिए और अपने प्रयाण की सूचना दी| इनके देहावसान के ९० वर्ष बाद इनके पोते ने इनकी डायरियों के आधार पर इनकी जीवनी लिखी| इसके अतिरिक्त स्वामी सत्यानन्द गिरी ने भी बंगला भाषा में इनकी जीवनी लिखी थी| इनके कुछ साहित्य का तो हिंदी, अंग्रेजी और तेलुगु भाषाओँ में अनुवाद हुआ है, बाकी बंगला भाषा में ही है|
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अंग्रेजी तिथि के अनुसार आज उनकी १८९वीं जयंती पर ऐसे महान आदर्श गृहस्थ योगी को कोटि कोटि नमन !
ॐ ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं, द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् |
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं, भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ||
ॐ ॐ ॐ ||
 आश्विन शु.१०, वि.सं.२०७४
३० सितम्बर २०१७
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पुनश्चः :----
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हरेक गृहस्थ व्यक्ति का एक सामान्य प्रश्न कि घर-गृहस्थी का, कमाने खाने का झंझट ---- और इन सब के बाद कैसे साधना करें ? श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय ने अपने जीवन से इस प्रश्न का उत्तर दिया| एक अति अल्प वेतन वाली नौकरी करते हुए, घर पर बच्चों को गृह शिक्षा देते हुए प्राप्त हुए कुछ रुपयों से घर का खर्चा चलाया| कभी किसी से कुछ नहीं लिया| काशी, बर्दवान और कश्मीर नरेश उनके शिष्य थे जिनसे वे कुछ भी ले सकते थे, पर कभी कुछ नहीं लिया| गुरुदक्षिणा में प्राप्त रुपये भी हिमालय में तपस्यारत साधुओं की सेवा में भिजवा देते थे| सामाजिक कार्यों में संलग्न रहते थे पर एक क्षण भी नष्ट नहीं करते थे| समय मिलते ही पद्मासन में बैठकर ध्यानस्थ हो जाते थे| नींद की आवश्यकता उनकी देह को नहीं थी| पूरी रात उनकी बैठक में पूरे भारत से खिंचे चले आये साधक और भक्त भरे रहते थे| एक आदर्श गृहस्थ योगी का जीवन उन्होंने जीया जिसने हज़ारो लोगों को प्रेरणा दी|
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परमहंस योगानंद ने अपनी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक "योगी कथामृत" के एक पूरे अध्याय में उनका जीवन चरित्र लिखा है| श्री अशोक कुमार चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित "पूराण पुरुष" नामक पुस्तक में भी उनकी प्रामाणिक जीवनी और उपदेश उपलब्ध हैं| उनके श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम| उनकी कृपा सदा बनी रहे|
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मुकुंद लाल घोष का जन्म इनके आशीर्वाद से ही हुआ था| मुकुंद लाल घोष ही कालान्तर में परमहंस योगानंद के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुए |

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