Thursday, 2 January 2025

हमारी एकमात्र कमी ---

जब कमियों की ओर देखता हूँ तो मुझे स्वयं में एक ही कमी दिखाई देती है, वह कमी यह है कि हम स्वयं के प्रति ईमानदार नहीं हैं| हम कहते कुछ और हैं व करते कुछ और हैं| हम चाहते हैं मुझ स्वयं को छोड़कर बाकी सारी दुनियाँ सुधर जाए| हम अपेक्षा करते हैं कि दुनियाँ में सब ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ यानि धर्मनिष्ठ हों, पर स्वयं नहीं| दुनिया को सुधारने का काम हम एक ही व्यक्ति के साथ कर सकते हैं, वह व्यक्ति हम स्वयं हैं, और कोई नहीं| इस कमी को दूर करने पर बाकी सब कमियाँ अपने आप ही दूर हो जाएँगी|

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अब प्रश्न उठता है कि हम स्वयं को कैसे सुधारें?
इसका उत्तर मैं मेरे जीवन के पूरे अनुभव से देना चाहूँगा| मैंने खूब दुनियाँ देखी है, विश्व के अनेक देशों में गया हूँ, साम्यवाद को भी बहुत समीप से देखा है और पूँजीवाद को भी, दरिद्रता को भी निकट से देखा है और सम्पन्नता को भी, जीवन में अन्याय भी बहुत देखा है और न्याय भी, जीवन में अच्छे से अच्छे लोग भी मिले हैं और बुरे से बुरे भी| इस जीवन में स्वयं को सुधारने का एकमात्र उपाय है ... "परमात्मा को पूर्ण समर्पण", अन्य कोई उपाय नहीं है| इस बात को कौन कैसे समझता है यह उसके विवेक पर निर्भर है|
मेरा पूरा अस्तित्व परमात्मा को समर्पित हो, कुछ भी पृथकता कहीं पर भी शेष ना हो| बस यही प्रभु से प्रार्थना है| निश्चित रूप से उनकी कृपा अवश्य ही होगी और वे अवश्य ही यह समर्पण स्वीकार करेंगे| पूर्णता सिर्फ परमात्मा में ही है| जहां पूर्णता है, वहां कोई कमी नहीं हो सकती|
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ॐ पूर्णमदः पूणमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
कृपा शंकर
२ जनवरी २०१८

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