Sunday 23 January 2022

हमारा लक्ष्य आत्म-तत्व यानि परमात्मा की प्राप्ति है, न कि स्वर्ग आदि की कामना ---

हमारा लक्ष्य आत्म-तत्व यानि परमात्मा की प्राप्ति है, न कि कुछ अन्य आकर्षक सिद्धान्त, विभूति, या स्वर्ग आदि की कामना| सर्वप्रथम हम परमात्मा को प्राप्त करें, फिर उन की चेतना में रहते हुए, उन के उपकरण बन कर संसार के अन्य सारे कार्य करें| जब भी जीवन में परमात्मा को पाने की अभीप्सा जागृत हो, हमें उसी समय विरक्त होकर आत्मानुसंधान में लग जाना चाहिए| संसार में रहते हुए परमात्मा की खोज लगभग असंभव है| हमारे जैसे सामान्य मनुष्य, राजा जनक नहीं बन सकते|

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परमात्मा तो हमें सदा से ही प्राप्त है लेकिन माया के आवरण से हमें उनका बोध नहीं होता| जब हम उन की दिशा में अग्रसर होते हैं, तब माया का विक्षेप हमें भटका देता है| यह सृष्टि का खेल ऐसे ही चल रहा है, जैसे एक छायाचित्र चलता है| परमात्मा के अतिरिक्त अन्य आकर्षणों से मोहित हो कर जब हम संसार में सुख ढूंढते हैं तो हमें निराशा ही निराशा हाथ लगती है| सब तरह की निराशाओं से तंग आकर हम परमात्मा की ओर उन्मुख होते हैं| प्रेमपूर्वक जब हम परमात्मा से प्रार्थना करते हैं तब वे कल्याण का मार्ग दिखाते हैं|
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यहाँ मैं रामचरितमानस, श्रीमद्भगवद्गीता, और वेदान्त दर्शन से कुछ प्रामाणिक बातें लिखना चाहता था| पर उन्हें लिखने से कोई लाभ नहीं है, क्योंकि लंबे लेखों को फेसबुक पर कोई पढ़ता नहीं है| कोई असली मुमुक्षु होगा, तो उसे भगवान स्वयं मार्ग दिखाएंगे|
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आप सब को शुभ कामनाएँ और नमन !!
कृपा शंकर
२३ जनवरी २०२१

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