Sunday 18 March 2018

दूसरों के घर के दीपक बुझाकर कोई स्वयं के घर में प्रकाश नहीं कर सकता .....

दूसरों के घर के दीपक बुझाकर कोई स्वयं के घर में प्रकाश नहीं कर सकता .....
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शान्ति का एक मार्ग भगवान ने इस तरह भी दिखाया है .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||"
श्रुति भगवती भी कहती है ..... "एकम् सत् विप्राः बहुधा वदन्ति |"
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मैं आज के शुभ दिन ये पंक्तियाँ लिखने को बाध्य हूँ, क्योंकि विश्व में जो घटित हो रहा है उसका प्रभाव मुझ पर पड़े बिना नहीं रह सकता| विश्व के अनेक लोग जो स्वयं तो शान्ति से रहना नहीं जानते, पर अपनी शान्ति की खोज धर्म के नाम पर दूसरों के प्रति घृणा, दूसरों की सभ्यताओं के विनाश, और दूसरों के नरसंहार में ही ढूँढते रहे हैं| ऐसे ही नरसंहारों का शिकार भारत बहुत लम्बे समय तक रहा है; अब मध्यपूर्व और पश्चिम एशिया के देश हैं जहाँ के लोग अपनी अपनी विचारधाराओं की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए आपस में ही एक-दूसरे का गला काट रहे हैं| वह विनाश की विभीषिका धीरे धीरे सारे विश्व पर छाती जा रही है| उसका प्रभाव हम सब पर इसलिए भी पड़ता है क्योंकि सभी जीवात्माएँ अंततः परमात्मा में एक ही हैं|
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अपने स्वयं के विचारों को बलात् दूसरों पर थोपने का दुष्परिणाम और उससे होने वाला विनाश अब स्पष्ट दिखाई दे रहा है जिसे छिपाने के भी पूरे प्रयास हो रहे हैं| हमारे मन में दूसरों के प्रति छिपी घृणा को हम झूठे प्रेम और मित्रता का दिखावा कर के छिपा रहे हैं| हम सोचते हैं कि यदि सभी हमारे ही विचार मानने लगेंगे तो हम सुखी हो जायेंगे| यह बहुत बड़ा छलावा रहा है|
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दूसरों के घर के दीपक बुझाकर हम स्वयं के घर में प्रकाश नहीं कर सकते| क्या भेड़- बकरी की तरह ही हम अपने स्वतंत्र विवेक का प्रयोग किये बिना दूसरों का अन्धानुकरण ही करते रहेंगे? सभी में परमात्मा व्यक्त है| दूसरों से घृणा कर के या दूसरों का गला काट कर हम परमात्मा को प्रसन्न नहीं कर सकते| सभी में हम परमात्मा का दर्शन करें| साथ साथ आतताइयों से स्वयं की रक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए एकजुट होकर प्रतिरोध और युद्ध करने के धर्म का पालन भी करें|
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अपना हर कार्य और अपनी हर सोच निज विवेक के प्रकाश में हो| जिस भी परिस्थिति में हम हैं, उस परिस्थिति में सर्वश्रेष्ठ कार्य हम क्या कर सकते हैं, वह हम ईश्वर प्रदत्त निज विवेक से निर्णय लेकर ही करें| जहाँ संशय हो वहाँ भगवान से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें|
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पुनश्चः सभी को नवसंवत्सर की शुभ कामनाएँ और नमन| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ मार्च २०१८
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पुनश्चः :-- हम मिल जुल कर प्रेम से रहेंगे तो सुखी रहेंगे | श्रुति भगवती कहती है ....

"संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् | देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ||"
अर्थात् हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोले , हमारे मन एक हो |
प्रााचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय हैं |

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