Sunday, 15 January 2023

आध्यात्म में समस्त अनर्थों का मूल आसुरी भाव है; इस से कैसे बचें? ---

 आध्यात्म में समस्त अनर्थों का मूल आसुरी भाव है; इस से कैसे बचें? ---

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आज भगवान ने एक बहुत अधिक महत्वपूर्ण विचार सामने रखा है, इसलिए यह लेख लिखने को बाध्य हूँ। भगवान कहते हैं कि तुम्हारा यश, प्रसिद्धि, सम्मान पाने और कुछ होने या बनने की सूक्ष्मातिसूक्ष्म आकांक्षा एक आसुरी भाव है जो आध्यात्म में तुम्हारे समस्त अनर्थों का कारण है। इससे तुम्हें मुक्त होना पड़ेगा, तभी आगे की प्रगति तुम कर पाओगे।
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विहंगावलोकन करने पर यह बात मैं सत्य पाता हूँ। भगवान ने करुणावश अपनी परम कृपा कर के आगे का मार्ग भी बतला दिया है, जो व्यक्तिगत है। हम जब यह संकल्प या विचार करते हैं कि मैं यह साधना करता हूँ, यह साधना और करूंगा, ईश्वर को प्राप्त करूँगा आदि आदि, ये सब आसुरी भाव है।
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ईश्वर तो हमें सदा ही प्राप्त है, हम उन्हें क्या प्राप्त करेंगे? गीता के १६वें अध्याय में यह बात बहुत अच्छी तरह से समझाई गई है। साधना करने और साधक होने का भाव भ्रामक और मिथ्या है। एक नया आयाम खुल गया है।
हे प्रभु, अब यह मैं नहीं, तुम ही तुम हो। मैं आपकी शरणागत हूँ। मेरी रक्षा करो।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० जनवरी २०२३

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