गायत्री मन्त्र :
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(1) क्या इस मन्त्र के अन्य भी प्राचीन रूप हैं ?
(2) क्या ऋषि विश्वामित्र से पूर्व भी इस मन्त्र का ज्ञान वैदिक ऋषियों को था ?
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एक संत का कथन हैं कि सर्वश्रेष्ठ पावक और तारक गायत्री मन्त्र को ऋषि विश्वामित्र ने देखा था अवश्य, पर महर्षि अगस्त्य ने भी ऋग्वेद के प्रथम मंडल के अंतर्गत पड़ने वाले १८८वें सूक्त में अपने द्वारा देखे गए मन्त्र के बारे में कहा है ------
"पुरोगा अग्निर्देवानाम् गायत्रेण समज्यते| स्वाहाकृतीषु रोचते||११
अर्थात, देवताओं में मुख्य अग्निदेवता गायत्री छंद में परिलक्षित होते हैं एवं अग्निरूप स्वाहा प्रदान के समय वह दीप्त होते हैं|
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विश्वामित्र से बहुत पूर्व हुए थे अगस्त्य ऋषि| ऋग्वेद के सूत्र १६५ से १८१ तक के दृष्टा अगस्त्य मुनि थे| यहाँ यह सिद्ध होता है कि गायत्री मन्त्र का एक दूसरे स्वरुप में प्राचीन ऋषियों को ज्ञान था| इस मन्त्र के देवता है --- सविता|
इसका तात्पर्य यह निकलता है कि विश्वामित्र से पूर्व अगस्त्य ऋषि को इसका ज्ञान था|
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जिन श्रद्धेय संत ने उपरोक्त ज्ञान दिया उन्हीं के अनुसार सबसे पहिले शव्यावाश्व ऋषि ने प्राचीन ऋषियों की परमपूज्या गायत्री देवी के मन्त्र का दर्शन किया था|
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"ॐ तत्सवितुर्वृणीमहे वयं देवस्य भोजनं| श्रेष्ठम् सर्वधातमम् तुरं भगस्य धीमहि||"
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उपरोक्त मन्त्र में ऋषि कहते हैं ---- सबके सम्भजनीय (भग), द्द्योतनशील (देव), श्रुति प्रसिद्ध (तत् ) सविता के सर्वभोगप्रद (सर्वधातम) उत्कृष्ट (श्रेष्ठ) अज्ञानरूप शत्रुनाशक (तुर) और स्वकीय ज्ञानात्मक धन (भोजन) को पाने के लिए हम प्रार्थना करते हैं|
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यास्क रचित निरुक्त के अनुसार 'भोजन' शब्द 'धन' के अर्थ में कहा गया है, क्योंकि जगत में विद्या या वाग्देवी व्यतीत कोई और ऐसा धन नहीं होता है जिसे 'तुर' , 'श्रेष्ठ', एवम् 'सर्वधातम' कहा जा सकता हो| यह 'वाक्' प्रणवरूपी शब्दब्रह्म है|
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प्राचीन ऋषि लोग गायत्री मन्त्र को जपने से पूर्व --- भू र्भुवः स्वः , इन तीन व्याहृतियों को उच्चारित कर लेते थे| इन्हें महाव्याहृति भी कहा जाता है| ऋषिगण ॐ कार का उच्चारण कर उसी में समाहित (ध्यानमग्न) हो जाते थे|
इसलिए भगवान मनु ने 'स प्रणव व्याहृति' के संग गायत्री पाठ का परामर्श दिया है जिसका अन्य भी शास्त्रकारों ने समर्थन किया है|
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ॐ ॐ ॐ |
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(1) क्या इस मन्त्र के अन्य भी प्राचीन रूप हैं ?
(2) क्या ऋषि विश्वामित्र से पूर्व भी इस मन्त्र का ज्ञान वैदिक ऋषियों को था ?
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एक संत का कथन हैं कि सर्वश्रेष्ठ पावक और तारक गायत्री मन्त्र को ऋषि विश्वामित्र ने देखा था अवश्य, पर महर्षि अगस्त्य ने भी ऋग्वेद के प्रथम मंडल के अंतर्गत पड़ने वाले १८८वें सूक्त में अपने द्वारा देखे गए मन्त्र के बारे में कहा है ------
"पुरोगा अग्निर्देवानाम् गायत्रेण समज्यते| स्वाहाकृतीषु रोचते||११
अर्थात, देवताओं में मुख्य अग्निदेवता गायत्री छंद में परिलक्षित होते हैं एवं अग्निरूप स्वाहा प्रदान के समय वह दीप्त होते हैं|
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विश्वामित्र से बहुत पूर्व हुए थे अगस्त्य ऋषि| ऋग्वेद के सूत्र १६५ से १८१ तक के दृष्टा अगस्त्य मुनि थे| यहाँ यह सिद्ध होता है कि गायत्री मन्त्र का एक दूसरे स्वरुप में प्राचीन ऋषियों को ज्ञान था| इस मन्त्र के देवता है --- सविता|
इसका तात्पर्य यह निकलता है कि विश्वामित्र से पूर्व अगस्त्य ऋषि को इसका ज्ञान था|
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जिन श्रद्धेय संत ने उपरोक्त ज्ञान दिया उन्हीं के अनुसार सबसे पहिले शव्यावाश्व ऋषि ने प्राचीन ऋषियों की परमपूज्या गायत्री देवी के मन्त्र का दर्शन किया था|
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"ॐ तत्सवितुर्वृणीमहे वयं देवस्य भोजनं| श्रेष्ठम् सर्वधातमम् तुरं भगस्य धीमहि||"
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उपरोक्त मन्त्र में ऋषि कहते हैं ---- सबके सम्भजनीय (भग), द्द्योतनशील (देव), श्रुति प्रसिद्ध (तत् ) सविता के सर्वभोगप्रद (सर्वधातम) उत्कृष्ट (श्रेष्ठ) अज्ञानरूप शत्रुनाशक (तुर) और स्वकीय ज्ञानात्मक धन (भोजन) को पाने के लिए हम प्रार्थना करते हैं|
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यास्क रचित निरुक्त के अनुसार 'भोजन' शब्द 'धन' के अर्थ में कहा गया है, क्योंकि जगत में विद्या या वाग्देवी व्यतीत कोई और ऐसा धन नहीं होता है जिसे 'तुर' , 'श्रेष्ठ', एवम् 'सर्वधातम' कहा जा सकता हो| यह 'वाक्' प्रणवरूपी शब्दब्रह्म है|
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प्राचीन ऋषि लोग गायत्री मन्त्र को जपने से पूर्व --- भू र्भुवः स्वः , इन तीन व्याहृतियों को उच्चारित कर लेते थे| इन्हें महाव्याहृति भी कहा जाता है| ऋषिगण ॐ कार का उच्चारण कर उसी में समाहित (ध्यानमग्न) हो जाते थे|
इसलिए भगवान मनु ने 'स प्रणव व्याहृति' के संग गायत्री पाठ का परामर्श दिया है जिसका अन्य भी शास्त्रकारों ने समर्थन किया है|
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क्या- क्या दिया विश्व को भारतवासियों ने? शिक्षा दी, संस्कृति दी, स्वास्थ्य दिया, चिकित्सा दी, समाज विज्ञान दिया, कृषि दी, पशुपालन दिया। जो कुछ भी भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान हो सकता था, मानवीय वे सारी की सारी चीजें न केवल हिन्दुस्तान ने हिन्दुस्तानियों को दीं, बल्कि सारे विश्व को दीं। इसलिए ये देवता कहलाते थे। जगद्गुरु कहलाते थे? ये सारी की सारी विशेषताएँ जो भारतीय गरिमा के साथ जुड़ी हुई हैं, असल में अगर हम इनका प्राण ढूँढ़ना चाहें तो बात घूम- फिर करके भारतीय संस्कृति पर आ जाएगी। और एक शब्द में अगर आप यह जानना चाहें कि भारतीय संस्कृति क्या हो सकती है तो मैं गायत्री मंत्र का नाम लूँगा। आप गायत्री को समझ लीजिए तो फिर आप भारतीय संस्कृति के सारे के सारे आधार समझ जायेंगे। ज्ञान को भी समझ जायेंगे और विज्ञान को भी समझ जायेंगे। ऐसी है गायत्री जिसको कि हम और आप अपने जीवन में धारण करने की कोशिश करते हैं। जिसकी हम उपासना करते हैं, जिसका हम ब्रह्मविद्या के रूप में तत्त्वज्ञान जानने की कोशिश करते हैं।
ReplyDeleteगायत्री, सावित्री और सरस्वती एक ही ब्रह्मशक्ति के नाम हैं। इस संसार में सत-असत जो कुछ हैं, वह सब ब्रह्मस्वरूपा गायत्री ही हैं। भगवान व्यास कहते हैं- 'जिस प्रकार पुष्पों का सार मधु, दूध का सार घृत और रसों का सार पय है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है। गायत्री वेदों की जननी और पाप-विनाशिनी हैं, गायत्री-मन्त्र से बढ़कर अन्य कोई पवित्र मन्त्र पृथ्वी पर नहीं है। गायत्री-मन्त्र ऋक्, यजु, साम, काण्व, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैत्तिरीय आदि सभी वैदिक संहिताओं में प्राप्त होता है, किन्तु सर्वत्र एक ही मिलता है। इसमें चौबीस अक्षर हैं। मन्त्र का मूल स्वरूप इस प्रकार है-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई थी। ऋग्वेद में ही गायत्री मन्त्र है जो सवित्री को समर्पित है। ब्रह्मवैर्वत पुराण में भी प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक है।
ऋग्वेद भारत की ही नहीं सम्पूर्ण विश्व की प्राचीनतम रचना है। ऋग्वेद को दुनिया के सभी इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की सबसे पहली रचना मानते हैं। ये दुनिया के सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है।इसकी तिथि 1500 से 1000 ई.पू. मानी जाती है। सम्भवतः ऋग्वेद और ईरानी ग्रन्थ 'जेंद अवेस्ता' में समानता पाई जाती है। इसके अनुसार गायत्री यह सत्य हैसनातन एवं अनादि मंत्र है। सृष्टिकत्र्ता ब्रह्मा को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मंत्र प्राप्त हुआ था, इसी गायत्री मंत्र की साधना करके उन्हें सृष्टि निर्माण की शक्ति प्राप्त हुई। गायत्री के चार चरणों की व्याख्या स्वरूप ही ब्रह्मा जी ने चार मुखों से चार वेदों का वर्णन किया। ऋग्वेद के सूक्त विविध देवताओं की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्रोतों की प्रधानता है। ऋग्वेद के अधिकांश भाग में देवताओं की स्तुतिपरक ऋचाएं हैं, ऋग्वेद की संदर्भित ऋचाओं में भी इसी की प्रधानता है, किन्तु कहीं भी किसी मन्त्र का उल्लेख गायत्री मन्त्र के रूप में स्पष्ट रूप से नहीं पाया जाता है। हो सकता है कि गायत्री आराधना के क्रम में इन ऋषियों ने प्राचीन गायत्री मन्त्र कहे जाने वाले इन मन्त्रों के दर्शन किये हों, किन्तु मूल मन्त्र इसी को माना हो। अंतिम रूप से कुछ भी कहने के लिए गहन शोध की जरुरत है।
ReplyDeleteआचार्य सायन के मतानुसार उदय होने से पहिले भर्गो देवता का जो प्रकाश होता है वह 'सविता' है| उदय से अस्त तक उनका जो प्रकाश है वह 'सूर्य' कहलाता है|
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