प्रत्यभिज्ञा ---
हम जीवन में कई बार न चाहते हुए भी अनेक क्षुद्रताओं से बंधे हुए एक पशु की तरह आचरण करने लगते हैं, और चाह कर भी बच नहीं पाते व गहरे से गहरे गड्ढों में गिरते रहते हैं| ऐसी परिस्थिति में हमें क्या करना चाहिए?
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वर्षों पहले युवावस्था में एक पुस्तक पढ़ी थी जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध के एक युद्धक वायुयान चालक (Pilot) के अनुभव थे| वह वायुयान अपने लक्ष्य की ओर जा रहा था कि पायलट ने देखा कि एक चूहा एक बिजली के तार को काट रहा था| यदि चूहा उस तार को काटने में सफल हो जाता तो यान की विद्युत प्रणाली बंद हो जाती और विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाता| पायलट उस चूहे को किसी भी तरह से भगाने में असमर्थ था| समय बहुत कम और कीमती था| चालक ने भगवान को स्मरण किया और विमान को उस अधिकतम ऊंचाई तक ले गया जहाँ तक जाना संभव था| वहाँ वायु का दबाव कम हो गया जिसे चूहा सहन नहीं कर पाया और बेहोश हो कर गिर गया| पायलट अपना कार्य पूरा कर सुरक्षित बापस आ गया| उस की रक्षा ऊँचाई के कारण हुई|
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बाज पक्षी कई बार ऐसे पशु का मांस खा जाते हैं जिसे कौवे खाना चाहते हैं| बाज के आगे कौवे असहाय होते हैं पर वे हिम्मत नहीं हारते| कौवा बाज़ की पीठ पर बैठ जाता है, और उसकी गर्दन पर अपनी चोंच से घातक प्रहार करता है और काटता है| बाज भी ऐसी स्थिति में कौवे के आगे असहाय हो जाते हैं| बाज अपना समय नष्ट नहीं करते, और अपने पंख खोलकर आकाश में बहुत अधिक ऊँचाई पर चले जाते हैं| ऊँचाई पर वायु का दबाव कम होने से कौवा बेहोश होकर नीचे गिर जाता है| यहाँ भी बाज की रक्षा ऊँचाई से होती है|
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लोभ, कामुकता, अहंकार, क्रोध, प्रमाद व दीर्घसूत्रता जैसी वासनायें हमें नीचे गड्ढों में गिराती हैं, जिन से बचने के किए हमें अपनी चेतना को अधिक से अधिक ऊँचाई पर रखनी चाहिए, यानि अपने विचारों व चिंतन का स्तर ऊँचे से ऊँचा रखना चाहिए| अपनी चेतना को उत्तरा-सुषुम्ना (आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य) में रखने का अभ्यास करना चाहिए| वासनायें ... चूहों व कौवों की तरह हैं, जिन पर अपना समय नष्ट न करें| स्वयं भाव जगत की ऊँचाइयों पर परमशिव की चेतना में रहें, ये क्षुद्रतायें अपने आप ही नष्ट हो जायेंगी|
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० अगस्त २०२०
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