मानसिक द्वंद्व : आध्यात्म मार्ग की एक बाधा .....
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जब चेतन और अचेतन मन में संघर्ष रहता है या उन में संतुलन नहीं रहता तो प्राण शक्ति अवरुद्ध हो जाती है| ऐसी अवस्था में व्यक्ति का तारतम्य बाहरी जगत से नहीं रहता, खंडित व्यक्तित्व की भूमिका बन जाती है और मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है|
ऐसी स्थिति में व्यक्ति विक्षिप्त यानि पागल भी हो सकता है|
यह बड़ी दु:खद परिस्थिति होती है जो आध्यात्म मार्ग के अनेक साधकों विशेषतः
योग मार्ग के पथिकों के समक्ष आती है| ऐसी परिस्थिति में साधक को सद्गुरु
का सहारा चाहिए|
ऐसी परिस्थिति का निर्माण तब होता है जब निम्न अधोगामी प्रकृति अवचेतन मन में निहित वासनाओं के प्रभाव से साधक को भोग विलास की ओर खींचती है; और उसकी उन्नत आत्मा अपने ऊर्ध्वगामी शुभ कर्मों के प्रभाव से उसे परमात्मा की ओर आकर्षित करती है| एक तरह की रस्साकशी चैतन्य में होने लगती है और द्वन्द्वात्मक स्थिति उत्पन्न हो जाती है|
एक शक्ति आपको ऊपर यानि ईश्वर की ओर खींचती है और दूसरी शक्ति विषय-वासनाओं व भोग विलास की ओर| ऐसी स्थिति में पागलपन से बचने का एक ही उपाय है कि उस समय जैसी और जिस परिस्थिति में आप हैं उस का तुरंत त्याग कर दें| अपने से अधिक उन्नत साधकों के साथ या किसी संत महापुरुष सद्गुरु के सान्निध्य में रहें| सात्विक भोजन लें और हर तरह के कुसंग का त्याग करें| ऐसे वातावरण में भूल से भी ना जाएँ जो आपको अपने लक्ष्य यानि परमात्मा से दूर ले जाता है|
वातावरण इच्छा शक्ति से अधिक प्रभावशाली होता है| अतः जो आप बनना चाहते हैं वैसे ही वातावरण और परिस्थिति का निर्माण करें और उसी में रहें| नियमित निरंतर साधना और किसी महापुरुष का आश्रय साधक की हर प्रकार के विक्षेप से रक्षा करता है|
ॐ गुरु| ॐ तत्सत्|
ऐसी परिस्थिति का निर्माण तब होता है जब निम्न अधोगामी प्रकृति अवचेतन मन में निहित वासनाओं के प्रभाव से साधक को भोग विलास की ओर खींचती है; और उसकी उन्नत आत्मा अपने ऊर्ध्वगामी शुभ कर्मों के प्रभाव से उसे परमात्मा की ओर आकर्षित करती है| एक तरह की रस्साकशी चैतन्य में होने लगती है और द्वन्द्वात्मक स्थिति उत्पन्न हो जाती है|
एक शक्ति आपको ऊपर यानि ईश्वर की ओर खींचती है और दूसरी शक्ति विषय-वासनाओं व भोग विलास की ओर| ऐसी स्थिति में पागलपन से बचने का एक ही उपाय है कि उस समय जैसी और जिस परिस्थिति में आप हैं उस का तुरंत त्याग कर दें| अपने से अधिक उन्नत साधकों के साथ या किसी संत महापुरुष सद्गुरु के सान्निध्य में रहें| सात्विक भोजन लें और हर तरह के कुसंग का त्याग करें| ऐसे वातावरण में भूल से भी ना जाएँ जो आपको अपने लक्ष्य यानि परमात्मा से दूर ले जाता है|
वातावरण इच्छा शक्ति से अधिक प्रभावशाली होता है| अतः जो आप बनना चाहते हैं वैसे ही वातावरण और परिस्थिति का निर्माण करें और उसी में रहें| नियमित निरंतर साधना और किसी महापुरुष का आश्रय साधक की हर प्रकार के विक्षेप से रक्षा करता है|
ॐ गुरु| ॐ तत्सत्|
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