Friday 17 November 2017

सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा .....

सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा .....
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आज से २३७ वर्ष पूर्व १३ नवम्बर १७८० को गुजराँवाला पंजाब में एक महानतम हिन्दू वीर ने जन्म लिया जो बाद में महाराजा रणजीतसिंह जी (१३ नवम्बर १७८० ---- २७ जून १८३९) के नाम से प्रसिद्ध हुए| वे हिन्दू जाति के महानतम वीरों में से एक थे| उन को बारंबार नमन|
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महाराजा रणजीत सिंह जी सन १८१३ की एक रात्री में अपनी सेना के साथ अटक के किले पर अधिकार करने के लिए बढ़ रहे थे| मार्ग में एक बरसाती नदी थी जिसमें बाढ़ आई हुई थी| अटक के किले में पठान सिपाही निश्चिन्त होकर सो रहे थे | महाराजा रणजीतसिंह जी की सेना एक बार तो अटक गई| पर महाराजा रणजीत सिंह जी ने नदी के किनारे एक स्थान ढूँढा जहाँ पानी की गहराई कम थी, और ..... "सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा" ..... कहते हुए अपना घोड़ा नदी में उतार दिया और नदी के पार पहुँच गए| उनके पीछे पीछे उनकी सारी सेना भी नदी को पार कर गयी और अटक के किले को घेर लिया| पठान सिपाही महाराजा रणजीत सिंह जी की फौज को देखकर डर गए और किले को छोडकर भाग गए| बाद में उन्होंने वहाँ के प्रशासक जहाँदाद को एक लाख रुपये की क्षतिपूर्ति राशि देकर अटक के किले और उसके आधीन सारी भूमि को अपने राज्य में मिला लिया|
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वे एक कुशल शासक तो थे ही, साथ साथ एक महान भक्त और योगी भी थे| वाराणसी के वर्तमान विश्वनाथ मंदिर (भग्नावशेषों पर जिसका पुनर्निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने किया था) के शिखर पर चढा हुआ सारा सोना महाराजा रणजीत सिंह जी ने दान में दिया था| उनकी राज्यव्यवस्था आदर्श थी| भारत माँ के इस वीर पुत्र को कोटि कोटि नमन !
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१३ नवम्बर २०१७

5 comments:

  1. सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ....
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    १३ नवम्बर १७८० को गुजराँवाला पंजाब में एक महानतम हिन्दू वीर ने जन्म लिया था जो बाद में महाराजा रणजीतसिंह जी (१३ नवम्बर १७८० ---- २७ जून १८३९) के नाम से प्रसिद्ध हुए| वे हिन्दू जाति के महानतम वीरों में से एक थे| उन को बारंबार नमन|
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    महाराजा रणजीत सिंह जी सन १८१३ की एक रात्री में अपनी सेना के साथ अटक के किले पर अधिकार करने के लिए बढ़ रहे थे| मार्ग में एक बरसाती नदी थी जिसमें बाढ़ आई हुई थी| अटक के किले में पठान सिपाही निश्चिन्त होकर सो रहे थे | महाराजा रणजीतसिंह जी की सेना एक बार तो अटक गई| पर महाराजा रणजीत सिंह जी ने नदी के किनारे एक स्थान ढूँढा जहाँ पानी की गहराई कम थी, और ..... "सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा" ..... कहते हुए अपना घोड़ा नदी में उतार दिया और नदी के पार पहुँच गए| उनके पीछे पीछे उनकी सारी सेना भी नदी को पार कर गयी और अटक के किले को घेर लिया| पठान सिपाही महाराजा रणजीत सिंह जी की फौज को देखकर डर गए और किले को छोडकर भाग गए| बाद में उन्होंने वहाँ के प्रशासक जहाँदाद को एक लाख रुपये की क्षतिपूर्ति राशि देकर अटक के किले और उसके आधीन सारी भूमि को अपने राज्य में मिला लिया|
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    वे एक कुशल शासक तो थे ही, साथ साथ एक महान भक्त और योगी भी थे| वाराणसी के वर्तमान विश्वनाथ मंदिर (भग्नावशेषों पर जिसका पुनर्निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने किया था) के शिखर पर चढा हुआ सारा सोना महाराजा रणजीत सिंह जी ने दान में दिया था| उनकी राज्यव्यवस्था आदर्श थी| भारत माँ के इस वीर पुत्र को कोटि कोटि नमन !
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    ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
    कृपा शंकर
    १३ नवम्बर २०१७

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  4. सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा .....
    .this was said by Maharaja Man Singh of Jaipur while he was going to fight Yusufjai and other tribes in Afghanistan. Please don't circulate fake narratives

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