दीपावली की शुभ कामना .....
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इस समय जो मैं लिख रहा हूँ, यह कोई लेख नहीं है| अभी कोई पोस्ट नहीं कर रहा हूँ, यह सिर्फ एक संवाद है जो मैं अपने फेसबुक व अन्य संपर्कों से करना चाहता हूँ| फेसबुक व सोशियल मीडिया पर सिर्फ राष्ट्रवादी और आध्यात्मिक व्यक्ति ही मेरे संपर्क में रहें| शेष मुझे छोड़ दीजिये क्योंकि मैं उन के किसी काम का नहीं हूँ|
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एक प्रश्न है जिस पर मनीषियों के विचार जानना चाहता हूँ| परमात्मा की उपासना मातृ रूप में क्यों व कैसे करें? जगन्माता तो असीम और अनंत है, दसों दिशाएँ उनके वस्त्र हैं, फिर उन्हें हम नामरूप में कैसे बांध सकते हैं?
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उन्हें हम सीमित नहीं कर सकते तो क्या परमात्मा की अनंतता, अनंत विस्तार की ही हम जगन्माता के रूप में आराधना नहीं कर सकते? मेरी चेतना में तो परमशिव और पराशक्ति में कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं| शिव और विष्णु भी वे ही है, उनमें भी कहीं कोई भेद नहीं है| वैसे ही महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती में भी कोई भेद नहीं है, ये और दसों महाविद्याएँ व परमशिव भी एक ही हैं|
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जहाँ तक मैं समझता हूँ परमात्मा की पूर्णता ही जगन्माता है और अपनी परिछिन्नता को त्याग कर, उस पूर्णता को हम उपलब्ध हों, यही जगन्माता की उपासना है| हमारे अंतर का अंधकार दूर हो, और ज्योतिर्मय कूटस्थ परमब्रह्म परमात्मा के साथ हम एक हों, यही दीपावली की शुभ कामना और अभिनंदन है|
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आप सब को नमन ! हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० अक्तूबर २०१९
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इस समय जो मैं लिख रहा हूँ, यह कोई लेख नहीं है| अभी कोई पोस्ट नहीं कर रहा हूँ, यह सिर्फ एक संवाद है जो मैं अपने फेसबुक व अन्य संपर्कों से करना चाहता हूँ| फेसबुक व सोशियल मीडिया पर सिर्फ राष्ट्रवादी और आध्यात्मिक व्यक्ति ही मेरे संपर्क में रहें| शेष मुझे छोड़ दीजिये क्योंकि मैं उन के किसी काम का नहीं हूँ|
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एक प्रश्न है जिस पर मनीषियों के विचार जानना चाहता हूँ| परमात्मा की उपासना मातृ रूप में क्यों व कैसे करें? जगन्माता तो असीम और अनंत है, दसों दिशाएँ उनके वस्त्र हैं, फिर उन्हें हम नामरूप में कैसे बांध सकते हैं?
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उन्हें हम सीमित नहीं कर सकते तो क्या परमात्मा की अनंतता, अनंत विस्तार की ही हम जगन्माता के रूप में आराधना नहीं कर सकते? मेरी चेतना में तो परमशिव और पराशक्ति में कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं| शिव और विष्णु भी वे ही है, उनमें भी कहीं कोई भेद नहीं है| वैसे ही महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती में भी कोई भेद नहीं है, ये और दसों महाविद्याएँ व परमशिव भी एक ही हैं|
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जहाँ तक मैं समझता हूँ परमात्मा की पूर्णता ही जगन्माता है और अपनी परिछिन्नता को त्याग कर, उस पूर्णता को हम उपलब्ध हों, यही जगन्माता की उपासना है| हमारे अंतर का अंधकार दूर हो, और ज्योतिर्मय कूटस्थ परमब्रह्म परमात्मा के साथ हम एक हों, यही दीपावली की शुभ कामना और अभिनंदन है|
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आप सब को नमन ! हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० अक्तूबर २०१९
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