Thursday, 5 June 2025

हमारी निष्ठा पूर्णतः आत्मा में ही हो, अनात्मा की ओर तो कदापि नहीं ---

 हमारी निष्ठा पूर्णतः आत्मा में ही हो, अनात्मा की ओर तो कदापि नहीं ---

.
मन में अच्छे विचार रखें, और भगवान का खूब ध्यान करें। हमारे चिंतन, विचार, और आचरण का प्रभाव हमारी चारों ओर की प्रकृति पर पड़े बिना नहीं रहता। हमारे प्रदूषित विचार और गलत आचरण ही हमारे विनाश का कारण होंगे।
.
जिस तीब्र गति से बुरे लोगों की जनसंख्या बढ़ रही है उसके अनुपात में भूमि और संसाधन नहीं बढ़ रहे हैं। प्रकृति या तो अपने स्तर पर भूकंप, बाढ़, अकाल आदि के रूप में बदला लेगी, या मनुष्य की बुद्धि का नाश कर युद्ध आदि छिड़वा कर विनाश करवायेगी।
.
निरीह मूक पशु-पक्षियों की रक्षा करें, अन्यथा मनुष्य जीवन भी नहीं बचेगा। देसी नस्ल की गायों का संवर्धन करें, और उन्हें अच्छी खुराक दें। उपयोगी छायादार वृक्ष खूब लगायें। गोहत्या के कलंक से मुक्त हो हमारी संस्कृति।
आने वाला समय अच्छा नहीं है। सत्यनिष्ठ धर्मावलम्बियों की रक्षा महादेव स्वयं करेंगे।
.
हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जून २०२२

चारों ओर का संसार और यह सृष्टि कैसी भी हो ---

 

चारों ओर का संसार और यह सृष्टि कैसी भी हो, क्या सही है और क्या गलत, इसका बोध शास्त्रों के स्वाध्याय और परमात्मा की कृपा से ही होता है| परमात्मा की कृपा ही हमारी रक्षा भी करती है| कुछ बातें यदि ध्यान में रहे तो हम विचलित नहीं हो सकते .....
.
पहली बात तो यह है कि यह सृष्टि परमात्मा की है, हमारी नहीं| परमात्मा अपनी सृष्टि को कैसे भी चलाएँ, वे स्वयं ही इसके लिए जिम्मेदार हैं, हम नहीं| उनकी प्रकृति अपने नियमों के अनुसार सृष्टि का संचालन कर रही है| नियमों को न समझना हमारी अज्ञानता है जिसका दंड हमें भुगतना पड़ता है|
दूसरी बात यह है कि वासनाओं से मुक्त होकर हम नित्यमुक्त और परमात्मा के साथ एक हैं, हम यह देह नहीं हैं| हमारी वासनायें .... राग-द्वेष और अहंकार हमें बारंबार पुनर्जन्म लेने को बाध्य करती हैं| इनसे मुक्त होते ही हम वास्तब में मुक्त हैं| सारी उपासनाओं का यही ध्येय है|
.
गीता के निम्न श्लोकों का स्वाध्याय इस विषय को समझने में लाभदायक होगा ....
"अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप| अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि||९:३||"
"मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना| मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः||९:४||"
"न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्| भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः||९:५||"
"यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्| तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय||९:६||"
"सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्| कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्||९:७||"
"प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः| भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्||९:८||"
"न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय| उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु||९:९||"
"मयाऽध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्| हेतुनाऽनेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते||९:१०||"
.
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जून २०२०

साकार रूप में परमात्मा मेरे समक्ष सर्वप्रथम माता-पिता के रूप में आये ---

 परमात्मा .......

.
साकार रूप में परमात्मा मेरे समक्ष सर्वप्रथम माता-पिता के रूप में आये| मेरे माता और पिता दोनों साक्षात् परमात्मा थे| कोई कुछ भी कहे पर मेरे लिए वे साक्षात् उमा-महेश्वर थे|
.
फिर वे सभी सम्बन्धियों के रूप में, सभी मित्रों और परिचितों के रूप में आये| सारे तथाकथित शत्रु-मित्र, परिचित और अपरिचित सभी उसी परमात्मा के रूप हैं| सारी सृष्टि, सम्पूर्ण अस्तित्व परमात्मा का ही रूप है| मेरा होना या न होना भी परमात्मा का ही रूप है| परमात्मा से पृथक कुछ भी नहीं है| परमात्मा को निराकार या साकार किसी भी रूप में सीमित नहीं किया जा सकता|
.
वर्तमान चेतना में अब यदि कुछ भी साध्य है तो वह है उनकी सर्वव्यापकता, परम प्रेम, और आनंद |
ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ शिव !

बलहीन को परमात्मा कभी भी नहीं मिल सकते ......

 बलहीन को परमात्मा कभी भी नहीं मिल सकते ......

.
श्रुति भगवती स्पष्ट कहती है .... नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात् तपसो वाप्यलिङ्गात्| एतैरुपायैर्यतते यस्तु विद्वां-स्तस्यैष आत्मा विशते ब्रह्मधाम || मुण्डक ३:२:४ ||
.
बलहीन, आलसी व तपहीन व्यक्ति कभी भी परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते| ऐसे व्यक्ति संसार में भी किसी काम के नहीं होते| भारत में आसुरी शक्तियों को पराभूत करने के लिए हमें साधना द्वारा दैवीय शक्तियों को जागृत कर उनकी सहायता लेनी ही होगी| आज हमें एक ब्रह्मशक्ति की आवश्यकता है, जिसके लिए साधना करनी होगी| सिर्फ बातों से या शोर मचाने से यह कार्य नहीं हो सकता| जब ब्रह्मत्व जागृत होगा तो क्षातृत्व भी जागृत होगा| अनेक लोगों को इसके लिए साधना करनी होगी, अन्यथा हम लुप्त हो जायेंगे|
.
युवा वर्ग को चाहिए कि वे अपनी देह को तो शक्तिशाली बनाए ही, बुद्धिबल और विवेक को भी बढ़ाएँ| उपनिषदों का ही उपदेश है ... "अश्मा भव, पर्शुर्भव, हिरण्यमस्तृताम् भव|"
यानी तूँ पहिले तो चट्टान की तरह बन, चाहे कितने भी प्रवाह और प्रहार हों पर अडिग रह| फिर तूँ परशु की तरह तीक्ष्ण हो, कोई तुझ पर गिरे वह भी कटे और तूँ जिस पर गिरे वह भी कटे| पर तेरे में स्वर्ण की पवित्रता भी हो, तेरे में कोई खोट न हो|
.
हमारे शास्त्रों में कहीं भी कमजोरी का उपदेश नहीं है| हमारे तो आदर्श हनुमानजी हैं जिनमें अतुलित बल भी हैं और ज्ञानियों में अग्रगण्य भी हैं|
धनुर्धारी भगवान श्रीराम और सुदर्शनचक्रधारी भगवन श्रीकृष्ण हमारे आराध्य देव हैं| हम शक्ति के उपासक हैं, हमारे हर देवी/देवता के हाथ में अस्त्र शस्त्र हैं|
.
भारत का उत्थान होगा तो एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति से ही होगा जो हमें ही जागृत करनी होगी| सिर्फ बातों से कुछ नहीं होगा| हमें ब्रह्मचारी तपस्वी साधक बनना होगा, तभी हम धर्म की रक्षा कर पायेंगे| हर हर महादेव !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जून २०१५

जनरक्षा के लिए जल, जंगल, जमीन और जानवरों की भी रक्षा करनी होगी...

 जनरक्षा के लिए जल, जंगल, जमीन और जानवरों की भी रक्षा करनी होगी...

.
सारे ही देश में शुद्ध पेय जल का बड़ा अभाव है| यदि जीवन बचाना है तो जल बचाना ही पड़ेगा| अन्यथा बड़ी भयंकर जनहानि होगी और लोग बीमार पड़ेंगे| जनहानि से बचने के लिए जल, जंगल, जमीन और जानवरों की भी रक्षा करनी होगी| इसके लिए जन चेतना जगानी होगी| कुछ लोग जानबूझ कर दुर्भावनावश पानी को बर्बाद करते हैं, उन्हें दण्डित करना होगा|
.
वर्षा के जल को संग्रहित करने के लिए प्राचीन जलाशयों (तालाबों, झीलों, बावड़ियों) आदि की सफाई करनी होगी| उनमें आने वाले स्वाभाविक वर्षा के जलप्रवाह मार्ग में किये गए सभी अतिक्रमणों को ध्वस्त करना होगा|
वर्षा के जल को संग्रहित करने की लिए नए तालाबों का निर्माण भी करना होगा| पक्की सडकों के किनारे किनारे सघन वृक्षावली और जलाशयों का निर्माण करना पड़ेगा ताकि वर्षा का जल व्यर्थ ना जाए|
.
भूमि में जल की कमी दूर करने के लिए वर्षा के पानी को साफ़ कर के भूमि के भीतर फिर से भरा जाना पडेगा| हर नागरिक को चाहिए की बरसात से पहिले अपने घर की छत को साफ़ कर लें और वर्षा के जल को भूमिगत टाँकों में साल भर पीने के लिए भर ले, या सोखते खड्डों में डाल दे ताकि वह भूमि में चला जाए| सरकारी स्तर पर भी पानी के पुनर्भरण की व्यवस्था हो|
.
गोचर भूमियों को पुनर्जीवित किया जाए और अतिक्रमण हटाये जाएँ| गाय के गोबर से भूमि उपजाऊ और पवित्र होती है| इससे हरियाली भी बढ़ेगी| गौ ह्त्या पर प्रतिबन्ध लगाकर गौ संवर्धन का कार्य प्रारम्भ हो|
जलाशयों में मूर्तियों के प्रवाहित करने पर प्रतिबन्ध लगाया जाए| इससे बहुत अधिक प्रदूषण होता है| यह एक कुप्रथा है|
.
वर्षाऋतू में हिमाचल, पंजाब आदि में बहुत वर्षा होती है| वह वर्षाजल बह कर व्यर्थ में पाकिस्तान चला जाता है| उस जल को पाइपों से राजस्थान के उन भागों में जहाँ जलस्तर बहुत नीचे है लाया जाए और साफ़ कर के वहाँ की भूमि में भरा जाए|
.
उपरोक्त बिन्दुओं पर विचार किया जाए और जनचेतना जागृत हो|
ॐ तत्सत्व ! वन्दे मातरं ! जय भारत !
कृपा शंकर
६ जून २०१४

सभी निराशाओं, विपत्तियों, व समस्याओं का एकमात्र समाधान ---

 सभी निराशाओं, विपत्तियों, व समस्याओं का एकमात्र समाधान -- अपने अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) का परमात्मा में समर्पण है। बाकी काम भगवान स्वयं करेंगे। भगवान में दृढ़ श्रद्धा और विश्वास -- उनका सबसे बड़ा अनुग्रह है। जीवन का हर क्षण उनकी स्मृति में व्यतीत हो।

.
भारत का उत्थान कोई शक्ति नहीं रोक सकती। सत्य के साथ चलो, असत्य का अंधकार दूर होगा। हमारा कार्य -- परमात्मा के प्रकाश की निरंतर वृद्धि करना है। हम स्वयं उनका प्रकाश, और उनके साथ एक हैं।
.
भारत की वर्तमान राजनीति में माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी का कोई विकल्प नहीं है। हमारी सारी अपेक्षा, आशा और विश्वास सिर्फ भाजपा से ही है, अन्य किसी राजनीतिक दल से नहीं। भारत विजयी होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जून २०२४