Friday, 13 June 2025

भारत की एकमात्र समस्या और उसका समाधान क्या है? हमें भगवान की प्राप्ति क्यों नहीं होती?

 भारत की एकमात्र समस्या और उसका समाधान क्या है? हमें भगवान की प्राप्ति क्यों नहीं होती?

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मेरी दृष्टि में भारत की एकमात्र और वास्तविक समस्या -- "राष्ट्रीय चरित्र" का अभाव है। अन्य सारी समस्याएँ सतही हैं, उनमें गहराई नहीं है। "राष्ट्रीय चरित्र" तभी आयेगा जब हमारे में सत्य के प्रति निष्ठा और समर्पण होगा। तभी हम चरित्रवान होंगे। इस के लिये दोष किसको दें? -- इसके लिए "धर्म-निरपेक्षता" की आड़ में बनाई हुई हमारी गलत शिक्षा-पद्धति और संस्कारहीन परिवारों से मिले गलत संस्कार ही उत्तरदायी हैं। देश की असली संपत्ति और गौरव उसके चरित्रवान सत्यनिष्ठ नागरिक हैं, जिनका निर्माण नहीं हो पा रहा है। कठोर प्रयासपूर्वक हमें भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था पुनर्स्थापित करनी होगी। यही एकमात्र उपाय है। मेरी दृष्टि में अन्य कोई उपाय नहीं है।
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हमें भगवान की प्राप्ति नहीं होती, और आध्यात्मिक मार्ग पर हम सफल नहीं होते। इसका एकमात्र कारण --- "सत्यनिष्ठा का अभाव" (Lack of Integrity and Sincerity) है। अन्य कोई कारण नहीं है। बाकी सब झूठे बहाने हैं। हम झूठ बोल कर स्वयं को ही धोखा देते हैं। परमात्मा "सत्य" यानि सत्यनारायण हैं। असत्य बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है, और दग्ध वाणी से किये हुए मंत्रजाप व प्रार्थनाएँ निष्फल होती हैं। वास्तव में हमने भगवान को कभी चाहा ही नहीं। चाहते तो "मन्त्र वा साधयामि शरीरं वा पातयामि" यानि या तो मुझे भगवान ही मिलेंगे या प्राण ही जाएँगे; इस भाव से साधना करके अब तक भगवान को पा लिया होता। हमने कभी सत्यनिष्ठा से प्रयास ही नहीं किया। ज्ञान और अनन्य भक्ति की बातें वे ही समझ सकते हैं, जिनमें सतोगुण प्रधान है। जिनमें रजोगुण प्रधान है, उन्हें कर्मयोग ही समझ में आ सकता है, उस से अधिक कुछ नहीं। जिनमें तमोगुण प्रधान है, वे सकाम भक्ति से अधिक और कुछ नहीं समझ सकते। उनके लिये भगवान एक साधन, और संसार साध्य है। इन तीनों गुणों से परे तो दो लाख में कोई एक महान आत्मा होती है। हमें सदा निरंतर इस तरह के प्रयास करते रहने चाहियें कि हम तमोगुण से ऊपर उठ कर रजोगुण को प्राप्त हों, और रजोगुण से भी ऊपर उठकर सतोगुण को प्राप्त हों। दीर्घ साधना के पश्चात हम गुणातीत होने में भी सफल होंगे।
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अब और कुछ लिखने को रहा ही नहीं है। आप सब बुद्धिमान हैं। मेरे जैसे अनाड़ी की बातों को पढ़ा, इसके लिए मैं आप सब का आभारी हूँ।
आप सब को सादर नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१४ जून २०२१

अपने दिन का आरम्भ भगवान के गहनतम ध्यान से करें ---

अपने दिन का आरम्भ भगवान के गहनतम ध्यान से करें| पूरे दिन भगवान को अपनी स्मृति में रखें और रात्री को सोने से पूर्व पुनश्चः गहनतम ध्यान कर के ही सोयें| भगवान ने हमें एक दिन में २४ घंटे दिए हैं, उसका दस प्रतिशत भाग यानि लगभग २.५ घंटे तो एक दिन में भगवान को समर्पित होने ही चाहियें, जिनमें सिर्फ भगवान का ही ध्यान हो| जब तक भगवान हमारे हृदय में धड़क रहे हैं तभी तक बाहर का विश्व है| जिस क्षण भगवान हमारे हृदय में धड़कना बंद कर देंगे उसी क्षण हमारा सब कुछ छिन जाएगा, धन, संपत्ति, घर, परिवार मित्र, सगे-सम्बन्धी यहाँ तक कि यह पृथ्वी भी|

भगवान ही हमारे शाश्वत मित्र हैं, जन्म से पूर्व भी वे ही थे और मृत्यु के पश्चात भी वे ही रहेंगे| वे ही माता-पिता, भाई-बहिनों और सम्बन्धियों-मित्रों के रूप में आये और वे ही सदा साथ रहेंगे| हमें जो भी प्यार मिला है वह सब भगवान का ही प्यार था जो उन्होंने विभिन्न रूपों में दिया| अतः ऐसे शाश्वत प्रेमी से मित्रता और सम्बन्ध बनाए रखना सर्वोत्तम है|
यह संसार एक पाठशाला है जहाँ यह पाठ हमें निरंतर पढ़ाया जा रहा है| वह पाठ सबको एक न एक दिन तो सीखना ही पड़ेगा| यह हमारी मर्जी है कि हम उसे देरी से सीखें या शीघ्र| पर जो नहीं सीखेंगे, उन्हें प्रकृति ही सीखने को बाध्य कर देगी| अतः भगवान से प्रेम करो, यही इस जीवन का सार है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
१४ जून २०१९

(प्रश्न) सनातन हिन्दू धर्म की रक्षा कैसे करें ?

 (प्रश्न) सनातन हिन्दू धर्म की रक्षा कैसे करें ?

(उत्तर) सनातन हिन्दू धर्म का मूलभूत ज्ञान सब को होना चाहिए। जितना संभव हो उतना धर्म का पालन कीजिये। धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा है।
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हिन्दू कौन है? --- जो भी व्यक्ति (१) आत्मा की शाश्वतता, (२) कर्मफलों का सिद्धान्त, (३) पुनर्जन्म, (४) ईश्वर के अवतारों में आस्था, और (५) लोभ व अहंकार रूपी हिंसा से दूर है; -- वह हिन्दू है, चाहे वह पृथ्वी के किसी भी भाग पर रहता हो।
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एक षड़यंत्र के अंतर्गत हिंदुओं को धर्म शिक्षा से वंचित रखा गया। उन्हें अपने धर्म का ज्ञान नहीं है। धर्म के ज्ञान के लिए -- "महाभारत" और "रामायण" का स्वाध्याय अति अति अति आवश्यक है। बच्चों को बाल-महाभारत, बाल-रामायण, पंचतन्त्र, और अन्य सुलभ धार्मिक बाल साहित्य उपलब्ध करवाना चाहिए। यह माँ-बाप का दायित्व है। घर का वातावरण धार्मिक हो। हर घर में एक छोटा सा देवालय हो जहां दिन में कम से कम एक बार परिवार के सब सदस्य मिलकर भगवान की आराधना करें।
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अंतिम बात कहना चाहूँगा कि गाँव हो या शहर हो, हमें कर्मकांडी ब्राह्मणों का सम्मान करना चाहिए। वे सनातन धर्म की अग्रिम सेना के सिपाही हैं। और जो भी धर्मरक्षा के लिए आवश्यक हो वह करें। भगवान आपकी रक्षा करेंगे। धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी आपकी रक्षा करेगा। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१४ जून २०२४

आध्यात्म की उच्चतम अनुभूति :---

 आध्यात्म की उच्चतम अनुभूति :---

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इस विषय पर मुझे लिखना तो नहीं चाहिये, लेकिन फिर भी लिख रहा हूँ, जिसका परिणाम जो भी हो, मुझे स्वीकार्य है। अनेक वर्षों से आध्यात्मिक क्षेत्र में हूँ। अब तक के जीवन की एकमात्र उपलब्धि यही है कि अब कोई कामना शेष नहीं रही है। सब आकांक्षाएँ व अभिलाषाएँ -- परमात्मा में विलीन हो गयी हैं। केवल एक अति अति गहन स्थायी अभीप्सा और तड़प है पूरी तरह समर्पित होने की, जो हर समय बनी रहती है।
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जहां तक आध्यात्मिक साधना की बात है, यह बताने में मुझे कोई झिझक नहीं है कि श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय में बताई हुई "पुरुषोत्तम योग" की साधना ही योगमार्ग की "उच्चतम साधना" है, जिससे ऊंची कोई अन्य साधना नहीं है। यह भगवान पुरुषोत्तम की परम कृपा से ही समझ में आ सकती है। यह बुद्धि का नहीं अनुभूतियों का विषय है। एक बार कूटस्थ सूर्यमण्डल में भगवान पुरुषोत्तम की अनुभूति हो जाये फिर साधक को इधर-उधर कहीं भी देखने या भटकने की आवश्यकता नहीं है। दिन-रात सोते-जागते हर समय चेतना उन्हीं में बनी रहे। इससे अधिक लिखने की मुझे और अनुमति नहीं है।
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मुझे किसी अन्य से कोई परामर्श या कोई सत्संग भी नहीं चाहिये, क्योंकि परमात्मा से निरंतर सत्संग में ही आनंद है। उनसे अन्य कोई है भी नहीं । पूर्व जन्म के व इस जन्म के कुछ संस्कार बचे हैं इसीलिए इन शरीर महाराज का साथ है। वे संस्कार नहीं रहेंगे तो ये शरीर महाराज भी साथ छोड़ देंगे। आप सब में मैं स्वयं को नमन करता हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ जून २०२५

परमात्मा से हमारा परमप्रेम अपनी पूर्णता के लिए होता है। यही हमारा स्वभाविक और वास्तविक स्वधर्म है।

परमात्मा से हमारा परमप्रेम अपनी पूर्णता के लिए होता है। यही हमारा स्वभाविक और वास्तविक स्वधर्म है।
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आध्यात्मिक उपलब्धियाँ परमात्मा की कृपा से ही प्राप्त होती हैं, अन्यथा नहीं। परमात्मा की कृपा हमारे प्रेम पर निर्भर है। परमात्मा से प्रेम करो। भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है कि उनका विश्वरूप केवल उनकी कृपा से ही देखा जा सकता है। यह किसी भी तप, ध्यान, वेदाध्ययन आदि द्वारा सम्भव नहीं है।
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अपने स्व+भाव में रहना ही हमारी सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है। आत्मस्वरूप में स्थिति समग्र शास्त्रों का सार है ।
आज के युवावर्ग की कुंठा का कारण उनकी आकांक्षाओं का अपनी क्षमता से बहुत अधिक होना है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जून २०२५