अगले पचास वर्षों बाद सम्पूर्ण विश्व में केवल सनातन धर्म ही होगा। पूरा विश्व ही एक राष्ट्र होगा।
Sunday, 10 November 2024
अगले पचास वर्षों बाद सम्पूर्ण विश्व में केवल सनातन धर्म ही होगा। पूरा विश्व ही एक राष्ट्र होगा ---
ब्रह्ममुहूर्त में उठते ही दिवस का आरम्भ प्रभु श्रीराम के स्मरण और ध्यान से कीजिए। कुछ देर कीर्तन करें - -
हम स्वयं परमात्मा के पुष्प हैं ---
हम स्वयं परमात्मा के पुष्प हैं ---
आत्मानुसंधान ---
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ---
यह संसार महामाया का ही खेल है। बड़े बड़े ज्ञानियों को भी यह महामाया बलात् मोह में पटक देती है। आजकल संसार के सारे लड़ाई, झगड़े और विवाद यह महामाया ही करवा रही है। संसारी व्यक्ति तो असहाय हैं।
हमारा आध्यात्मिक पतन कब होता है? ---
आध्यात्मिकता और लौकिकता में बहुत बड़ा अंतर है। आध्यात्म में जिस क्षण भी कुछ पाने की कामना या आकांक्षा हमारे अन्तःकरण में उत्पन्न होती है, उसी क्षण हमारा पतन होने लगता है। परमात्मा की अभीप्सा यानि पूर्ण समर्पण के अतिरिक्त अन्य कुछ भी भाव हमारे अन्तःकरण में न हों। कैसी भी कामना हो, वह हमें पतन के गड्ढे में डालती है। भक्ति में कामना का होना एक व्यभिचार है। कामनायुक्त भक्ति व्यभिचारिणी भक्ति होती है। भगवान की प्राप्ति हमें अव्यभिचारिणी भक्ति द्वारा ही हो सकती है। हम आत्माराम होकर निरंतर आत्मा में रमण करें।
मेरा अस्तित्व परमात्मा के मन का एक स्वप्न मात्र है, उससे अधिक कुछ भी नहीं ---
महाभारत में नहुषपुत्र ययाति कि कथा आती है जो कुरुवंश में कौरव-पांडवों के पूर्वज थे| उस समय सृष्टि में वे सबसे बड़े तपस्वी थे| सारे देवता भी उनके समक्ष नतमस्तक रहते थे| पर एक दिन उन्हें अपनी साधना का अभिमान हो गया जिससे उनके सारे पुण्य क्षीण हो गए और देवताओं ने उन्हें स्वर्ग से नीचे गिरा दिया|
अपने दिन का आरंभ और समापन ऊनी आसन पर बैठकर भगवान श्रीकृष्ण के साकार ध्यान से करें ---
अपने दिन का आरंभ और समापन ऊनी आसन पर बैठकर भगवान श्रीकृष्ण के साकार ध्यान से करें। कमर सीधी हो, ठुड्डी भूमि के समानान्तर हो, क्षमतानुसार पूर्ण-खेचरी या अर्ध-खेचरी मुद्रा हो, और दृष्टिपथ भ्रू-मध्य में हो। भगवान श्रीकृष्ण का साकार ध्यान आपको निराकार (सारे आकार जिसके हों) की भी अनुभूति करा देगा, अनंताकाश की व उससे परे की भी अनुभूतियाँ करा देगा, भगवान के पुरुषोत्तम, परमशिव व जगन्माता रूप की भी अनुभूतियाँ करा देगा। पूरे दिन उन्हें अपनी स्मृति में रखो, व अपने हर कार्य का कर्ता बनाओ। आचार्य मधुसूदन सरस्वती ने उन्हें "परम-तत्व" कहा है। ध्यान का आरंभ प्राणायाम, प्रत्याहार और धारणा से होता है। एक ब्रह्मनिष्ठ सदगुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है।
(प्रश्न १) ईरान और इज़राइल में शत्रुता क्यों है? (प्रश्न २) रूस और यूक्रेन में युद्ध का क्या कारण है?
(उत्तर १) वैसे तो यहूदियत, ईसाईयत और इस्लाम -- इन तीनों ही मज़हबों का आरंभ पैग़ंबर इब्राहिम अलैहिसलाम (Prophet Abraham) से होता है। ये तीनों ही इब्राहिमी मज़हब यानि Abrahamic Religions कहलाते हैं। इनके एक बेटे इस्माइल की नस्ल में इस्लाम का जन्म हुआ। दूसरे बेटे इसाक की नस्ल में यहूदियत और ईसाईयत का जन्म हुआ। इन तीनों मज़हबों का आदि पुरुष पैग़ंबर इब्राहिम अलैहिसलाम (Prophet Abraham) है। इनका आपसी हिंसक झगड़ा पारिवारिक है।
रूस व यूक्रेन के बीच का युद्ध और क्रीमिया
आत्मा में अथाह शक्ति है ---
आत्मा में अथाह शक्ति है। अपने शिवस्वरूप में प्रतिष्ठित होइये, फिर सृष्टि में ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो हमें दबा सके। परमशिव हमारा आत्मस्वरूप है, जिस में हम प्रतिष्ठित हों। आत्मा को कोई दबा नहीं सकता।