अपने दिन का आरंभ और समापन ऊनी आसन पर बैठकर भगवान श्रीकृष्ण के साकार ध्यान से करें। कमर सीधी हो, ठुड्डी भूमि के समानान्तर हो, क्षमतानुसार पूर्ण-खेचरी या अर्ध-खेचरी मुद्रा हो, और दृष्टिपथ भ्रू-मध्य में हो। भगवान श्रीकृष्ण का साकार ध्यान आपको निराकार (सारे आकार जिसके हों) की भी अनुभूति करा देगा, अनंताकाश की व उससे परे की भी अनुभूतियाँ करा देगा, भगवान के पुरुषोत्तम, परमशिव व जगन्माता रूप की भी अनुभूतियाँ करा देगा। पूरे दिन उन्हें अपनी स्मृति में रखो, व अपने हर कार्य का कर्ता बनाओ। आचार्य मधुसूदन सरस्वती ने उन्हें "परम-तत्व" कहा है। ध्यान का आरंभ प्राणायाम, प्रत्याहार और धारणा से होता है। एक ब्रह्मनिष्ठ सदगुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है।
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आजकल के योग-गुरु ध्यान साधना का आरंभ साधक की पात्रता देखकर अजपा-जप और नादानुसंधान से करवाते हैं। फिर अनेक मुद्राओं व क्रियाओं का ज्ञान देते हैं। ये सारी साधनायें वैदिक हैं, और इन का आरंभ कृष्ण-यजुर्वेद से है।
हठयोग और तंत्र, पूर्णतः नाथ-संप्रदाय के सिद्ध योगियों की खोज है। ये विद्याएँ लुप्त हो गयी थीं, जिन्हें नाथ संप्रदाय के सिद्ध योगियों ने फिर से खोजा।
भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान, एक साधक का पूरा मार्ग-दर्शन करता है। उन की कृपा से ही एक ब्रह्मज्योति ध्यान में प्रकट होकर अंतस का सारा अंधकार दूर करती है।
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मैंने कल जो विश्व के वर्तमान घटनाक्रम पर प्रश्न पूछे थे, उनका उत्तर भी दूंगा, और ताईवान की समस्या का कारण भी बताऊंगा।
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मैं हृदय-रोगी होने के कारण तनाव नहीं ले सकता। मुझे चार बार दिल के दौरे पड़ चुके हैं। अभी १६ दिन पहिले १८ अक्तूबर २०२४ को ही मेरे हृदय का एक ऑपरेशन हुआ था। जब तक मैं तनाव-मुक्त हूँ, तब तक ही इस शरीर में जीवित हूँ। अभी इन दिनों आराम कर रहा हूँ। जिस दिन तनाव हो जाएगा, वह इस जीवन का अंतिम दिन होगा। धीरे-धीरे हर प्रश्न का उत्तर अपने समय में आराम से दूंगा। मंगलमय शुभ कामनाएँ।
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"वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात् , पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात्।
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात् , कृष्णात परम किमपि तत्व अहं न जानि॥"
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने,
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥"
ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ नवंबर २०२४
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