तपोभूमि भारत ---
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ऋषि-मुनियों, संत-महात्माओं, धर्म-आध्यात्म, भक्ति-शौर्य, वेद-पुराण, योग-वेदांत, विभिन्न दर्शन शास्त्रों, त्याग-तपस्या व साधना-उपासना की पुण्यभूमि भारत पर अब भी चोर-उचक्कों, व्यभिचारी-भ्रष्टाचारियों, अधर्मी-दुष्टों का वर्चस्व है| शासक वर्ग तो विधान से ऊपर होकर जी रहा है| भूमिचोर शासक बन गए हैं| देश को बेचते जा रहे हैं| बाजारों पर विदेशियों का अधिकार हो रहा है| देश का धन विदेशों में जा रहा है| देश का विधान भारतीय लगता ही नहीं है| अल्पसंख्यकवाद, आरक्षण, धर्मनिरपेक्षतावाद आदि से देश की अखण्डता इतिहास के पन्नों में खो रही है| भारतीय संस्कृति लुप्तप्राय होती जा रही है|
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व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन कुंठा, असंतोष और तनाव से भर गया है| बिलकुल वैसी ही स्थिति बन गयी है जो महाविनाश से पूर्व होती है| देश की शिक्षा पद्धति व्यक्ति को कर्महीन व लोभी-लालची बनाती जा रही है| सारे नैतिक मूल्य लुप्त होते जा रहे हैं|
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ऐसे में क्या हम तटस्थ रह सकते हैं? हम मातृभूमि के अभ्युत्थान और नि:श्रेयस के लिए क्या कर सकते हैं? हम हमारी पुण्यभूमि को कैसे परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बैठा सकते हैं? क्या हम सब इन बिन्दुओं पर विचार करेंगे? यदि कुछ नहीं कर सकते तो हमारा जीवन व्यर्थ है|
जय जननी, जय भारत||
१७ जून २०१३