Wednesday, 26 March 2025

मेरा कर्मयोग परमात्मा में पूर्ण समर्पण है।

 मेरा कर्मयोग परमात्मा में पूर्ण समर्पण है। यह शरीर रहे या न रहे, इसका कोई महत्व नहीं है। महत्व इसी बात का है कि निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो। जहाँ तक मेरी कल्पना जाती है, भगवान के सिवाय कोई अन्य नहीं है। केवल वे ही हैं। सारे दुःख-सुख, अभाव और भाव -- सब कुछ वे ही हैं। .

भक्ति और सेवा के मार्ग में श्रीहनुमान जी से बड़ा अन्य कोई भक्त या सेवक, भगवान का नहीं है। वे स्वयं प्रत्यक्ष देवता हैं। सफलता उनके पीछे पीछे चलती है। उन्होंने कभी कोई विफलता नहीं देखी। असत्य और अंधकार की कोई आसुरी शक्ति उनके समक्ष नहीं टिक सकती। उनसे अधिक शक्तिशाली और ज्ञानी अन्य कोई नहीं है।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।। .
"आपदां पहर्तारं दातारं सर्व सम्पदां, लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।
श्रीरामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे, रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः॥"
"॥ रां रामाय नमः॥ ॥ रां रामाय नमः॥ ॥ रां रामाय नमः॥"
(तारक मंत्र "रां" के निरंतर मानसिक जप [दिन में चौबीस घंटे, सप्ताह में सातों दिन] से हमारी चेतना राममय हो जाती है। जिनको शक्ति चाहिए, वे इसके साथ शक्ति बीज का प्रयोग भी कर सकते हैं।) .
आध्यात्मिक उन्नति के लिए हमारी दृष्टि समष्टि-दृष्टि हो, न कि व्यक्तिगत। परमात्मा की सर्वव्यापकता और पूर्णता पर हमारा ध्यान और समर्पण होगा तभी हमारी आध्यात्मिक उन्नति होगी। एक साधक के लिए उन्नति का आधार और मापदंड उसका ब्रह्मज्ञान हो, न कि कुछ अन्य।
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पुनश्च: --- जो बीत गया सो बीत गया, जो हो गया सो हो गया। भूतकाल को तो बदल नहीं सकते, अभी जब से होश आया है, तब इसी समय से परमात्मा की चेतना में रहें। हमारा कार्य परमात्मा में पूर्ण समर्पण है। यह शरीर रहे या न रहे, इसका कोई महत्व नहीं है। महत्व इसी बात का है कि निज जीवन में परमात्मा का अवतरण हो।
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा॥
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया॥
तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं। राम बसहु तिन्ह के मन माहीं॥
जननी सम जानहिं परनारी। धनु पराव बिष तें बिष भारी॥
जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई। प्रिय परिवार सदन सुखदाई॥
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई॥
ॐ तत्सत् !! कृपा शंकर
२७ मार्च २०२२