विश्व पर ये तीन राक्षसी शक्तियाँ इस समय राज्य कर रही हैं ---
Saturday, 14 June 2025
विश्व पर ये तीन राक्षसी शक्तियाँ इस समय राज्य कर रही हैं ---
.
अप्रत्यक्ष रूप से विश्व के प्रायः सारे संसाधन इन्हीं के अधिकार में हैं। अंततः ये विश्व की जनसंख्या को कम कर के उतने ही मनुष्यों को जीवित रखना चाहेंगी, जिन पर ये आसानी से राज्य कर सकें। इनकी आतंरिक व्यवस्था बड़ी गोपनीय है जहाँ का भेद पाना अति कठिन है। ये तीन राक्षसी शक्तियाँ हैं --
(१) सिटी ऑफ़ लन्दन, (२) वाशिंगटन डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ कोलंबिया, और (३) वेटिकेन सिटी.
.
१५ जून २०२२
कुछ जिज्ञासाएँ ..... कुछ प्रश्न ......
(१) चारों ओर इतना शोर है ........... क्या इस शोर में मौन संभव है ? .............
चारों ओर इतना ध्वनि प्रदूषण है .... जाएँ तो जाएँ कहाँ ?
इतने शोर में मौन कैसे रहें ? .......... क्या बाहर का शोर भी परमात्मा की ही अभिव्यक्ति हैं ?
बाहर का शोर बाधा है या परमात्मा की ही एक अभिव्यक्ति ?
बार बार मन में उठने वाले विचार भी भयंकर से भयंकर शोर से कम नहीं हैं| क्या यह भी परमात्मा का ही अनुग्रह है ?
>
(२) पतंग उड़ता है और चाहता है कि वह उड़ता ही रहे, व उड़ते उड़ते आसमान को छू ले| पर वह नहीं जानता कि वह एक डोर से बंधा हुआ है जो उसे खींच कर बापस भूमि पर ले आती है|
असहाय है बेचारा ! और कर भी क्या सकता है ?
वैसे ही जीव भी चाहता है शिवत्व को प्राप्त करना, यानि परमात्मा को समर्पित होना| उसके लिए शरणागत भी होता है और साधना भी करता है पर अवचेतन में छिपी कोई वासना अचानक प्रकट होती है और उसे चारों खाने चित गिरा देती है| पता ही नहीं चलता कि अवचेतन में क्या क्या कहाँ कहाँ छिपा है|
क्या कोई Short Cut यानि लघु मार्ग है जो इन वासनाओं से मुक्त कर दे ?
इस कर्मों कि डोर से इस अल्प काल में कैसे मुक्त हो सकते हैं ? वह भी किसी लघु मार्ग से ?
सभी प्रकार के विक्षेपों और मिथ्या आवरणों से कैसे तुरंत प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं ?
>
(३) हम विश्व यानि परमात्मा की सृष्टि के बारे में अनेक धारणाएँ बना लेते हैं .........
फलाँ गलत है और फलाँ अच्छा, क्या हमारी इन धारणाओं का कोई महत्व या औचित्य है ?
ईश्वर कि सृष्टि में अपूर्णता कैसे हो सकती है जबकि ईश्वर तो पूर्ण है ?
क्या हमारी सोच ही अपूर्ण है ?
>
(४) क्या यह संभव है कि पूरे मन को ही संसार के गुण-दोषों से हटा कर परमात्मा अर्थात प्रभु में लगा दिया जाए ? क्या इसका भी कोई लघुमार्ग यानि Short Cut है?
बार बार मन को प्रभु में लगाते हैं पर यह मानता ही नहीं है? भाग कर बापस आ जाता है |
अब इसका क्या करें ? क्या यह भूल भगवान की ही है कि उसने ऐसी चीज बनाई ही क्यों?
>
ये सब शाश्वत प्रश्न हैं, कोई खाली बैठे की बेगार नहीं|
>
हे प्रभु, तुम्हें इसी क्षण यहाँ आना ही पडेगा जहाँ तुमने मुझे रखा है| न तो तुम्हारी माया को और न तुम्हें ही जानने या समझने की कोई इच्छा है| अब तुम और छिप नहीं सकते| तुम्हें इसी क्षण यहाँ अनावृत होना ही पड़ेगा|
>
तुम निरंतर मेरे साथ भी हो पर फिर भी धुएँ की एक पतली सी दीवार मध्य में है जिसके कारण तुम्हारी विस्मृति कभी कभी हो जाती है| पूर्ण अभेदता हो| किसी भी तरह का कोई भेद ना हो|
मेरा समर्पण पूर्ण हो| आपकी जय हो|
>
ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
१५ जून २०१५
हमारा प्रेम सर्वव्यापी है .....
हमारा प्रेम सर्वव्यापी है .....
.
जैसे भगवान भुवन भास्कर अपना प्रकाश बिना किसी शर्त सब को देते हैं, वैसे ही हम अपना सम्पूर्ण प्रेम पूरी समष्टि को दें| फिर पूरी समष्टि ही हमसे प्रेम करेगी| वह समस्त प्रेम हम स्वयं हैं| हम ज्योतिषांज्योति, सारे सूर्यों के सूर्य, प्रकाशों के प्रकाश हैं| जैसे भगवान भुवन भास्कर के समक्ष अन्धकार टिक नहीं सकता वैसे ही हमारे परम प्रेम रूपी प्रकाश के समक्ष अज्ञान, असत्य और अन्धकार की शक्तियाँ नहीं टिक सकतीं|
.
हम अपनी पूर्णता को प्रकट करें| हमारा प्रेम ही परमात्मा की अभिव्यक्ति है| हमारी पूर्णता ही सच्चिदानंद है, हमारी पूर्णता ही परमेश्वर है और अपनी पूर्णता में हम स्वयं ही परमात्मा हैं| हम जीव नहीं, साक्षात शिव हैं|
ॐ शिव ! ॐ तत्सत् ! शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ जून २०१४
हरिः से सम्मुखता ही जीवन है, और विमुखता मृत्यु है ---
हरिः से सम्मुखता ही जीवन है, और विमुखता मृत्यु है ---
.
परमात्मा के बारे में कोई भी सार्वजनिक चर्चा केवल संत-महात्माओं को ही करनी चाहिए, क्योंकि उनके समक्ष वे ही श्रौता आएंगे जिनमें सतोगुण या रजोगुण प्रधान है। जिनमें तमोगुण प्रधान है उनके समक्ष ईश्वर की चर्चा का कोई लाभ नहीं है, अतः नहीं करनी चाहिए। तमोगुणी लोग आध्यात्म के बारे में कुछ समझ भी नहीं पाएंगे। उन्हें सिर्फ मारकाट या लड़ाई-झगड़े की बात ही समझ में आ सकती है।
.
एक बार मैं ब्रह्ममुहूर्त में सो कर उठा तब मुझे बुरा और डरावना अनुभव हुआ। मेरे चारों ओर अति घोर काले रंग का अंधकार ही अंधकार था। इतना भयंकर अंधकार कि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। मन में बहुत अधिक बुरे और डरावने विचार आ रहे थे। कुछ भी अच्छी बात दिमाग में नहीं आ रही थी। बड़ी कठिनाई से भगवान से प्रार्थना की कि मुझे इस अंधकार से बाहर निकालो।
उसी क्षण मैंने स्वयं को एक प्रकाशमय जगत में पाया, जहाँ किसी भी तरह का कोई अंधकार नहीं था। चारों ओर आनंद ही आनंद था। किसी ने मुझ से कहा कि भूल से भी पीछे मुड़कर मत देखना। पीछे प्रत्यक्ष मृत्यु है और सामने जीवन। पूरी बात मुझे समझ में आ गई जो किसी अन्य को समझाई नहीं जा सकती।
.
हमारी चेतना में परमात्मा सदा हर समय निरंतर बने रहें तो यह परमात्मा से सम्मुखता है। विपरीत दिशा में अंधकार की ओर देखना परमात्मा से विमुखता है।
रामचरितमानस में भगवान कहते हैं --
"सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं । जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥
निर्मल मन जन सो मोहि पावा । मोहि कपट छल छिद्र न भावा ॥"
.
भगवान का स्मरण पूरे दिन निरंतर होना चाहिए, रुक-रुक कर नहीं। गीता में भगवान कहते हैं --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैश्यसंशयम् ॥८:७॥"
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥८:१४॥"
.
पूरे विश्व में इस समय भारत के विरुद्ध सारे पश्चिमी देशों, चीन, पाकिस्तान और ईसाई क्रूसेडरों व इस्लामी जिहादियों द्वारा षड़यंत्र रचे जा रहे हैं। निशाने पर सनातन धर्म है। ये सब सनातन धर्म को नष्ट करना चाहते हैं। ईश्वर की चेतना ही हमें बचा सकती है। आने वाला समय अच्छा नहीं, बहुत अधिक खराब है। हम एक भयावह विनाश और विध्वंस के साक्षी बनने वाले हैं। भगवान के भक्तों की रक्षा होगी।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ जून २०२४
एक प्रश्न :-- पूरे विश्व में भारत को छोड़ कर क्या अन्य भी कोई देश धर्म-निरपेक्ष है?
एक प्रश्न :-- पूरे विश्व में भारत को छोड़ कर क्या अन्य भी कोई देश धर्म-निरपेक्ष है?
.
(उत्तर) :--- पूरे विश्व में केवल भारत ही एकमात्र "धर्म-निरपेक्ष" (सेकुलर) देश है। भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है -- हिन्दू विरोध| जो हिन्दुओं को जितना अधिक बुरा बताता है वह उतना ही बड़ा धर्मनिरपेक्ष है| जो हिंदुहित की बात करता है वह सांप्रदायिक है| भारत में जब तक हिन्दू बहुमत है तभी तक यह धर्म-निरपेक्षता रहेगी| जिस दिन देश में हिन्दू 50% से कम हो जाएगा, भारत भी एक मुस्लिम देश हो जाएगा और हिंदुओं की वही स्थिति होगी जो पाकिस्तान और बांग्लादेश में है| पाकिस्तान में विभाजन के समय 23% हिन्दू थे जो अब 1% से भी कम हैं| बाकी के कहाँ गए? आसमान खा गया या धरती निगल गई?
.
यूरोप व अमेरिका के सभी देशों में शासक वर्ग सर्वप्रथम चर्च के प्रति वफादार है| रूस में रसियन ऑर्थोडॉक्स चर्च का शासन पर पूरी तरह दखल है| पूर्वी योरोप के देशों ने ईसाई मत अपना लिया है| फिलीपींस ईसाई देश है| चीन के लोग फिर से बौद्ध धर्म को अपनाने लगे हैं पर कुंगफुत्सीवाद यानि कन्फ्यूशियस (कुन फु) का प्रभाव अभी भी जनमानस पर सर्वाधिक है| कोरिया, जापान, विएतनाम, थाइलेंड, कंबोडिया, म्यांमार व श्रीलंका बौद्ध देश हैं|
.
"बौद्ध सम्प्रदाय जबतक भारत में फला-फूला, धार्मिक बना रहा, विदेश गया तो गोमांस खाकर अहिंसा पर लम्बे प्रवचन देने वाला आसुरी सम्प्रदाय बन गया। विश्व के सारे बौद्ध गोमांस भक्षी हैं। सत्य अहिंसा की बात करने वाले तिब्बती वज्रयान बौद्ध मत के प्रमुख स्वयं बछड़े का मांस खाते हैं।"
.
विश्व में लगभग ५७ मुस्लिम देश हैं, पर कोई भी धर्मनिरपेक्ष नहीं है| मध्य एशिया के देशों ने फिर से इस्लाम को स्वीकार कर लिया है| अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मालदीव, बांग्लादेश, इन्डोनेशिया, मलयेशिया व ब्रुनेई मुस्लिम देश हैं| वहाँ किसी भी अन्य मत का प्रचार वर्जित है| कोई गैर-मुस्लिम किसी मुस्लिम लड़की से शादी नहीं कर सकता|
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
७ जून २०२०
.
पुनश्च: -- मेरी दृढ़ आस्था भगवान श्रीकृष्ण में है। गीता में जो वचन उन्होंने दिया है, उस पर मेरी पूर्ण आस्था है। सारी सृष्टि उन्हीं की ही नहीं, वे स्वयं ही यह सारा विश्व बन गए हैं। विष्णु सहस्त्रनाम का पहिला मंत्र ही मेरे लिए पर्याप्त है। उससे आगे बढ़ना मेरे लिए असंभव है।
यह संसार नष्ट भी हो जाये तो इसमें क्या गलत है? .
यह संसार नष्ट भी हो जाये तो इसमें क्या गलत है?
.
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह --- लगता है ये सब प्राचीन भारत की बातें हैं। आजकल तो जो दिखाई दे रहा है वह इनसे विपरीत ही है। सत्य तो नारायण (सत्यनारायण) यानि सिर्फ परमात्मा है। उसका यह संसार तो झूठ-कपट से चल रहा है। जो जितनी बड़ी सत्य की बात करता है, पाते हैं कि वह उतना ही बड़ा झूठा है। आजकल कोई भी मंत्र व साधना सिद्ध नहीं होती क्योंकि असत्य-वादन से हमारी वाणी दग्ध हो जाती है, और दग्ध-वाणी से जपा गया कोई भी मंत्र कभी फलीभूत नहीं होता। आजकल राजनीति में, न्यायालयों में, सरकारी कार्यालयों में, हर स्थानों पर असत्य ही असत्य का बोलबाला है।
इस बात की आंतरिक पीड़ा मुझे बहुत अधिक होती है, जिसे ही यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ।
७ जून २०२५
भारत का भविष्य "धर्म-सापेक्षता" में है, 'धर्म-निरपेक्षता" में नहीं।
भारत का भविष्य "धर्म-सापेक्षता" में है, 'धर्म-निरपेक्षता" में नहीं। धर्म-निरपेक्षता का अर्थ है -- अधर्म-सापेक्षता। भारत की अस्मिता "सनातन-धर्म" है। भारत कोई भूमि का टुकड़ा मात्र नहीं, एक जीवंत सूक्ष्म सत्ता है। वास्तव में सनातन धर्म ही भारत है, और भारत ही सनातन धर्म है। सनातन धर्म का उत्थान ही भारत का उत्थान है, और सनातन धर्म का पतन ही भारत का पतन है। धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा है।
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४:७॥"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥४:८॥"
"जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥४:९॥"
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥४:११॥"
९ जून २०२५
भगवान को हम कैसे जानें ?
भगवान "है". उस "है" में स्थित हो कर ही हम भगवान को जान सकते हैं....
.
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ....
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः|
अर्थात् मेरे प्रकट होनेको न देवता जानते हैं और न महर्षि क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियोंका आदि हूँ|
भगवान ही देवों, महर्षियों व हम सब के मूल कारण हैं| इसलिए हम भगवान के प्रभव को नहीं जानते|
.
हम भगवान को कैसे जानें ? क्योंकि उनको जानने की शक्ति किसी में भी नहीं है|
गीता में भगवान कहते हैं .....
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः| तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता||१४:४||
अर्थात् हे अर्जुन, नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी मूर्तियाँ अर्थात शरीरधारी प्राणी उत्पन्न होते हैं, प्रकृति तो उन सबकी गर्भधारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ|
.
अतः हम भगवान को कैसे जानें ? इसका उत्तर रामचरितमानस में है ....
"सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥"
भावार्थ:-वही आपको जानता है, जिसे आप जना देते हैं और जानते ही वह आपका ही स्वरूप बन जाता है। हे रघुनंदन! हे भक्तों के हृदय को शीतल करने वाले चंदन! आपकी ही कृपा से भक्त आपको जान पाते है||
सार की बात :-- भगवान की कृपा से ही हम भगवान को जान सकते हैं, अन्यथा नहीं| और कोई मार्ग नहीं है| भगवान की कृपा भी उनके प्रति परम प्रेम से होती है|
.
कल मैनें एक लेख में लिखा था .....
संसार में कोई भी चीज "है" के बिना नहीं मिलती| मिठाई है, फल है, खाना है, ठण्ड है, गर्मी है, सुख है, दुःख है, फलाँ फलाँ व्यक्ति है, ..... हर चीज में "है" है| वैसे ही भगवान भी "है", यहीं "है", इसी समय "है", सर्वदा "है", और सर्वत्र "है"| यही "ॐ तत्सत्" "है"| हमेशा याद रखो कि भगवान हर समय हमारे साथ "है"| मेरे पास इसका पक्का सबूत है .... वह मेरी आँखों से देख रहा है, मेरे पैरों से चल रहा है, मेरे हाथों से काम कर रहा है, मेरे हृदय में धड़क रहा है, और मेरे मन से सोच रहा है| मेरा अलग से कुछ होना एक भ्रम है| वास्तव में वह ही है| इस से बड़ा सबूत और दूसरा कोई नहीं हो सकता| हे प्रभु, आप ही आप रहो| यह मैं होने का भ्रम नष्ट हो जाए|
.
अजपा-जप में हम अन्दर जाती सांस के साथ "सो" और बाहर आती सांस के साथ "हं" का मानसिक जप करते हैं| और भाव करते हैं कि यह अनंत समष्टि हम ही हैं| वह यही "है" की साधना है| साथ साथ भीतर बज रही प्रणव की ध्वनि यानि अनाहत नाद को भी सुनते रहें|
.
आप सब को सादर सप्रेम नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जून २०१८
(प्रश्न) : साधक कौन है?
(प्रश्न) : साधक कौन है?
.
(उत्तर) : साधक, साध्य और साधना --- ये तीनों स्वयं परमात्मा हैं। एकमात्र कर्ता वे ही हैं। हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। स्वयं में कर्ताभाव एक राक्षसी भाव है, जिसका कभी उदय न हो।
.
एक अवस्था आती है जब साधक-भाव नष्ट हो जाता है। सब कुछ तो परमात्मा स्वयं हैं। अपनी साधना वे स्वयं कर रहे हैं। बस वे एक पल के लिए भी अंतर्दृष्टि से ओझल नहीं होते। अब कौन तो साधक है और कौन साध्य? कुछ समझ में नहीं आता। कुछ चाहिए भी नहीं।
.
आध्यात्म में परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है। संसार में लौकिक रूप से धर्म-अधर्म, शत्रु-मित्र, देवता और असुर हैं। संसार में हमारा व्यवहार शास्त्रों और विवेक से निर्देशित हो। हर समय परमात्मा के हृदय में रहो। सब सही होगा।
.
हे प्रभु आपकी जय हो। मुझ में किसी कामना का जन्म ही न हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जून २०२५
हे राम आप सदा मेरी स्मृति में हो। आप सदा मेरे साथ रहें। मैं आपकी शरण में हूँ ---
हे राम आप सदा मेरी स्मृति में हो। आप सदा मेरे साथ रहें। मैं आपकी शरण में हूँ।
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम ॥" (वाल्मिकी रामायण)
भावार्थ -- "जो कोई एक बार भी मेरी शरण में आकर 'मैं तुम्हारा हूँ' ऐसा कहकर रक्षा की याचना करता है, मैं उसे सभी प्राणियों से अभय कर देता हूं, यह मेरा व्रत है॥"
.
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥९:२६॥"
भावार्थ --"जो कोई भी भक्त मेरे लिए पत्र, पुष्प, फल, जल आदि भक्ति से अर्पण करता है, उस शुद्ध मन के भक्त का वह भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ (पत्र पुष्पादि) मैं भोगता हूँ अर्थात् स्वीकार करता हूँ॥
.
"यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्॥९:२७॥"
भावार्थ -- "हे कौन्तेय ! तुम जो कुछ कर्म करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ हवन करते हो, जो कुछ दान देते हो और जो कुछ तप करते हो, वह सब तुम मुझे अर्पण करो॥"
.
"समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्॥९:२९॥"
भावार्थ -- मैं समस्त भूतों में सम हूँ; न कोई मुझे अप्रिय है और न प्रिय; परन्तु जो मुझे भक्तिपूर्वक भजते हैं, वे मुझमें और मैं भी उनमें हूँ॥
.
"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥९:३०॥"
भावार्थ -- यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है, वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है॥
.
"क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति॥९:३१॥"
भावार्थ : -- हे कौन्तेय, वह शीघ्र ही धर्मात्मा बन जाता है और शाश्वत शान्ति को प्राप्त होता है। तुम निश्चयपूर्वक सत्य जानो कि मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता॥
.
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः॥९:३४॥"
भावार्थ -- (तुम) मुझमें स्थिर मन वाले बनो; मेरे भक्त और मेरे पूजन करने वाले बनो; मुझे नमस्कार करो; इस प्रकार मत्परायण (अर्थात् मैं ही जिसका परम लक्ष्य हूँ ऐसे) होकर आत्मा को मुझसे युक्त करके तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
.
आज उपरोक्त उपदेश मेरे ही स्मृति में मेरे ही माध्यम से व्यक्त होना चाहते थे।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१४ जून २०२५
भारत के बारे में भगवान से हमारी प्रार्थना है कि -- .
भारत के बारे में भगवान से हमारी प्रार्थना है कि --
.
(१) भारत के सभी नागरिक सत्यनिष्ठ, धर्मनिष्ठ, व उच्च चरित्रवान हों। दुष्ट प्रकृति के किसी आतताई का भारत में कोई अस्तित्व न हो।
(२) भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर विराजमान हो।
(३) भारत की जनसंख्या उतनी ही हो जितनी आवश्यक है। यहाँ का कोई भी नागरिक इस वसुंधरा पर भार न हो।
.
हर हर महादेव !! उपरोक्त कार्य मनुष्यों के बल के नहीं हैं। सूक्ष्म जगत की दैवीय शक्तियों की सहायता लेनी ही पड़ेगी, जो लेंगे। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
१४ जून २०२३
आप इसी जीवन में ईश्वर को प्राप्त करें ---





ॐ स्वस्ति ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जून २०२१
हम इसी जीवन में ईश्वर को उपलब्ध हों, इसके अतिरिक्त मेरी रुचि अन्य किसी भी विषय में नहीं है ---
हम इसी जीवन में ईश्वर को उपलब्ध हों, इसके अतिरिक्त मेरी रुचि अन्य किसी भी विषय में नहीं है ---
.
अंशुमाली मार्तंड भगवान भुवन-भास्कर अपना प्रकाश बिना शर्त हम सब को देते हैं, वैसे ही हम अपना सम्पूर्ण प्रेम पूरी समष्टि को दें। फिर पूरी समष्टि भी हमसे प्रेम करेगी। हमारा परमप्रेम ही परमात्मा की अभिव्यक्ति है।
हम साँस लेते हैं, तो परमात्मा सांस लेता है। हमारे माध्यम से परमात्मा ही यह जीवन जी रहे हैं। हम सबके साथ, यानि परमात्मा के साथ एक हैं, यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड हमारा घर है, और यह सम्पूर्ण सृष्टि हमारा परिवार।
.
परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी भी वस्तु या प्राणी से अनुराग आसक्ति है, प्रेम नहीं। आसक्ति में सिर्फ लेना ही लेना यानि निरंतर माँग और अपेक्षा ही रहती है। आसक्ति पतन करने वाली होती है। आसक्ति अपने सुख के लिए होती है, जब कि परमात्मा से प्रेम में कोई शर्त नहीं होती। परमात्मा से प्रेम में केवल समर्पण होता है।
.
हम सब की आध्यात्मिक प्रगति हो, हमारी उपस्थिती, परमात्मा की उपस्थिती हो। हम जहाँ भी जायें, वह भूमि पवित्र हो जाये, जिस पर भी हमारी दृष्टि पड़े, वह धन्य हो जाये।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जून २०२५
Subscribe to:
Posts (Atom)