Sunday, 7 September 2025

भारत क्या धर्मशाला या कूड़ेदान है ?

म्यांमा(र) यानि बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में बसाना एक आत्मघाती कृत्य यानि भारत के लिए आत्महत्या करने जैसा होगा| ये रोहिंग्या जाति बर्मा के अराकान क्षेत्र की रहने वाली विश्व की सर्वाधिक क्रूर और असहिष्णु जातियों में से एक है| ये अन्य किसी का अस्तित्व सहन नहीं कर सकतीं| ये अपनी जनसंख्या अति शीघ्रता से बढाते हैं और फिर दूसरों की बड़ी निर्दयता से हत्याएँ करना आरम्भ कर देते हैं| किसी भी अपने से विरोधी इंसान को जान से मार कर ये हाथ तक नहीं धोते| विधर्मी की ह्त्या को ये अपना धार्मिक दायित्व मानते हैं|
.
बर्मा के बौद्ध जो विश्व के सर्वाधिक शांतिप्रिय लोगों में आते हैं, कब तक अपने लोगों की क्रूरतम हत्याएँ सहन करते? उन्होंने आत्मरक्षा में प्रतिकार करना आरम्भ कर दिया| अब विश्व का कोई भी देश इन रोहिंग्यों को अपने यहाँ नहीं लेना चाहता, सिर्फ भारत के ही कुछ आत्मघाती लोग इन्हें भारत में बसाना चाहते हैं| यदि ये भारत में बस गए तो यह भारत का दुर्भाग्य होगा|

७ सितंबर २०१७

हम चाहते हैं कि भारत से असत्य का अंधकार दूर हो ---

 हम चाहते हैं कि भारत से असत्य का अंधकार दूर हो। यह काम बातों से नहीं होगा, इसके लिए तपस्या/साधना करनी होगी। परमात्मा के अनंत ज्योतिर्मय अखंड रूप का ध्यान करते हुए उनकी शक्तियों को इस धरा पर अवतरित करना होगा। हमें स्वयं में देवत्व जागृत करना पड़ेगा।

.
कीटक नाम का एक साधारण सा कीड़ा भँवरे से डर कर कमल के फूल में छिप जाता है, और भँवरे का ध्यान करते करते स्वयं भी भँवरा ही बन जाता है। वैसे ही हम भी निरंतर परमशिव का ध्यान करते-करते स्वयं परमशिव बन जाते हैं। परमात्मा के लिये एक बेचैनी, तड़प और घनीभूत प्यास बनाये रखें।
ॐ तत्सत् !!
७ सितंबर २०२२

गणेश-चतुर्थी मंगलमय हो ---

 गणेश-चतुर्थी मंगलमय हो।

.
मैंने आज तक गणेश जी बारे में जो कुछ भी लिखा है और जो कुछ भी कहा है वह उनकी प्रत्यक्ष अनुभूति के समक्ष सब महत्वहीन है। उनकी कृपा से मैं आज वह लिखने जा रहा हूँ जो आज तक मैंने कभी न तो लिखा है, और न कहा है। सारा परिदृश्य ही बदल गया है। गणेश जी के बारे में मेरे स्वयं के लिखे पुराने लेख सब महत्वहीन हो गये हैं।
.
ब्रह्ममुहूर्त में प्रातःकाल उठते ही मैं सर्वप्रथम सहस्त्रारचक्र में गुरुपादुका को नमन कर वहाँ दिखाई दे रही ज्योति के रूप में गुरु महाराज के पाद-पद्मों (गुरु-चरणों) का ध्यान करता हूँ। वहाँ बिखरे हुए प्रकाश-कण उनके चरणों की रज है। इस ध्यान से मुझे गुरु-चरणों में आश्रय मिल जाता है।
मैं जो लिखने जा रहा हूँ, उसे लिखने की मुझे एक आंतरिक अनुमति है। अन्यथा निषेधात्मक कारणों से इसे नहीं लिखा जाता।
.
कई बार सहस्त्रार से ऊपर का भाग खुल जाता है और चेतना इस देह से बाहर निकल कर अनंताकाश को भेदती हुई एक परम ज्योतिर्मय जगत में चली जाती है, जिसे मैं परमशिव की अनुभूति कहता हूँ।
आज मूलाधारचक्र में गणपती के एक मंत्र का जप कर रहा था, तो एक चमत्कार घटित हो गया। सब चक्रों के माध्यम से सारी चेतना ऊर्ध्वमुखी होकर सहस्त्रारचक्र में आ गयी। मेरी चेतना मे एक अति आनंददायक सर्वव्यापी श्वेत ज्योति व्याप्त हो गयी, जो सूर्य से भी अधिक चमकीली थी लेकिन उसमें शीतलता थी, कोई उष्णता नहीं। ओंकार की ध्वनि का श्रवण भी स्वतः ही होने लगा। उसी के ध्यान में कितना समय निकल गया, कुछ पता ही नहीं चला। जो कुछ भी समझ में आना चाहिए था वह सब समझ में आ गया। कई बाते ऐसी होती हैं कि उन्हें व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं होते। यह भी अनुभूतिजन्य ऐसी ही बात है जो शब्दों से परे है।
.
लौकिक रूप से घर पर जो गणेश जी की जो पूजा होती है वह परंपरागत रूप से सम्पन्न कर दी। मेरे आसपास किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। सबको आदत पड़ गई है मुझे एकांत में रहते देखने की। लेकिन इस तरह के अनुभव बहुत कुछ सिखा जाते हैं। सभी में परमात्मा को नमन॥ इस समय किसी भी तरह की चर्चा करने में असमर्थ हूँ। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ सितंबर २०२४