Monday, 19 May 2025

एक स्मृति ..... कल अमेरिकन सन्यासी स्वामी क्रियानंद गिरी का जन्मदिवस था| (२० मई २०१९)

 

एक स्मृति .....
कल अमेरिकन सन्यासी स्वामी क्रियानंद गिरी का जन्मदिवस था| उनका जन्म १९ मई १९२६ को रोमानिया में एक अमेरिकन माता-पिता के यहाँ, और मृत्यु २१ अप्रेल २०१३ को ८७ वर्ष की आयु में इटली में हुई| मेरी उनसे भेंट सन २००४ में गुरुग्राम में हुई थी फिर २००५ में उनके साथ गुरुग्राम में ही दस दिन रहा| वे वास्तव में एक अति प्रतिभाशाली महान व्यक्ति थे| उन्होंने सनातन धर्म और आध्यात्म पर अंग्रेजी में १४० पुस्तकें और ४०० कविताएँ लिखी थीं| अंग्रेजी भाषा में अनेक भक्तिमय संगीत उन्होंने रचे| विश्व के ९० देशों में ३० लाख से भी अधिक उनकी पुस्तकें बिकीं| अपना अंतिम उपदेश उन्होंने चेन्नई में दो हज़ार श्रद्धालुओं की उपस्थिति में २० जनवरी २०१३ को दिया था| उनसे एक मामूली सी मानवी भूल एक बार हो गयी थी जिसका भूल सुधार भी उन्होंने तुरंत कर किया| उनकी विलक्षण प्रतिभा को कोई नकार नहीं सकता| अंग्रेजी तो उनकी मातृभाषा थी पर बांग्ला और हिंदी सहित नौ भाषाओं पर उनका अधिकार था| अपने जीवन के अंतिम काल में उन्होंने अपना एक नया सम्प्रदाय ही बना दिया था| वे मेरे गुरुभाई तो थे ही, मित्र भी थे| मैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ| ॐ नमो नारायण !
कृपा शंकर
२० मई २०१९

वह क्या है -- जिसे जानने के पश्चात अन्य कुछ भी जानने योग्य नहीं रहता?

 वह क्या है -- जिसे जानने के पश्चात अन्य कुछ भी जानने योग्य नहीं रहता? जिसे पाने के पश्चात अन्य कुछ भी पाने योग्य नहीं बचता? जिस से हमारा जीवन तृप्त और धन्य हो जाये!!

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जिसे प्यास लगी हो, वही पानी पीता है, अन्य कोई नहीं। जैसे चुंबक की सूई की नोक सदा उत्तर दिशा की ओर ही रहती है, वैसे ही हमारी चेतना निरंतर परमात्मा की ओर रहे। वह कहीं दूर नहीं, हमारे समक्ष है, जिसे देखने के लिए अंतर्दृष्टि, अतृप्त प्यास और घनी तड़प चाहिए।
🙏🌹🕉🕉🕉🌹🙏
२० मई २०२२

आज का दिन दुबारा बापस लौट कर नहीं आयेगा ---

 Celebrate each day as if it were once in a lifetime.

आज का दिन दुबारा बापस लौट कर नहीं आयेगा। हरेक दिन जीवन में एक ही बार मिलता है। यह बात मुझे बहुत देरी से समझ में आयी। जो हम आज अभी कर सकते हैं, वह कल नहीं कर पायेंगे। जो कार्य भविष्य में करना है, वह अभी करो। जो कार्य आज करना है वह इसी समय अभी करो। इस विषय पर मैं शास्त्रों में से प्रमाण दे सकता हूँ। यह हमारे शास्त्रों का आदेश है।

आज १९ मई २०२५ को मेरे विवाह की ५२ वीं वर्षगांठ है। अपना सम्पूर्ण अस्तित्व परमात्मा को समर्पित करता हूँ। ॐ ॐ ॐ !!

 आज १९ मई २०२५ को मेरे विवाह की ५२ वीं वर्षगांठ है। अपना सम्पूर्ण अस्तित्व परमात्मा को समर्पित करता हूँ। ॐ ॐ ॐ !!

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जैसे पृथ्वी चन्द्रमा को साथ लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है वैसे ही एक गृहस्थ व्यक्ति अपनी चेतना में अपने परिवार के साथ एकाकार होकर परमात्मा की उपासना करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से पूरी सृष्टि ही हमारा परिवार है, जिसके साथ एकाकार निमित्त मात्र होकर हम सब परमात्मा की उपासना करें। मैं आप सब के साथ एक हूँ। आपमें और मुझ में कोई अंतर नहीं है। ॐ ॐ ॐ !!
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"ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव॥"
"ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नोयथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥"
"ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥"
"ॐ सहनाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥"
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ ॐ ॐ ॐ !!
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
१९ मई २०२५ .
पुनश्च: --- मुझे अपने भौतिक जीवन की वैवाहिक वर्षगांठ पर की कई सौ मित्रों से शुभ संदेश प्राप्त हुए हैं। मैं परमात्मा का ऋणी हूँ कि उन्होंने मुझे इस योग्य बनाया। मेरे व्यक्तित्व में अनेक कमियाँ हैं जो परमात्मा ने मुझे दिखायी हैं। वे दूर तो मुझे स्वयं को ही करनी पड़ेंगी चाहे कितने भी जन्म और लेने पड़ें। मनुष्य जीवन एक सतत प्रक्रिया है जो चलती ही रहेगी। कर्म, भक्ति और ज्ञान -- इन तीनों में संतुलन भी रखना होगा। आप सभी में मैं अपने जीवन के केन्द्र बिन्दु भगवान वासुदेव को नमन करता हूँ --
ॐ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ मई २०२५

मोक्ष और मुक्ति के स्थान पर हमें "पूर्णता" का ही चिंतन, मनन और ध्यान करना चाहिये।

 मोक्ष और मुक्ति के स्थान पर हमें "पूर्णता" का ही चिंतन, मनन और ध्यान करना चाहिये।

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मोक्ष और मुक्ति -- पूर्णता का ही परिणाम है। केवल परमात्मा ही पूर्ण हैं। निज जीवन में परमात्मा की अभिव्यक्ति ही पूर्णता है। मेरे विचार से मोक्ष और मुक्ति का चिंतन हमारा अज्ञान है। केवल परमात्मा में ही मोक्ष, मुक्ति और स्वतन्त्रता है। एक क्षण के लिए भी परमात्मा को न भूलें, निरंतर उनका अनुस्मरण (Recollection) करते रहें।
गीता में भगवान कहते हैं ---
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
(तस्मात् सर्वेषु कालेषु माम् अनुस्मर युध्य च। मयि अर्पित मन बुद्धि: माम् एव एष्यसि असंशय॥)
अर्थात् -- इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
"ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहर्न्मानुस्मरण।
यः प्रयति त्यजन्देहं स याति परमं गतिम्॥८:१३॥"
(ॐ इत्येकक्षरं ब्रह्म व्याहारं मम अनुस्मरण। यः प्रयाति त्यजं देहं स याति परमं गतिम्॥)
अर्थात् -- जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है॥
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥
और कुछ भी अन्य इस समय लिखने योग्य नहीं है। भगवान का अनुस्मरण (Recollection) हर समय करते रहें। यही पूर्णता का द्वार है।
कृपा शंकर
१९ मई २०२३
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(Note : पूर्णता पर इस लेख के बाद मुझे कुछ भी अन्य लिखने की आवश्यकता नहीं है। यह लेख अपने आप में पूर्ण है। पूर्णता केवल परमात्मा में हैं, केवल परमात्मा ही पूर्ण हैं। जैसे मिठाई खाने से मुँह मीठा होता है वैसे ही परमात्मा का स्मरण करने से जीवन आनंदित रहता है| जीवन उद्देश्यहीन न हो। एकमात्र उद्देश्य है जीवन में परमात्मा का अवतरण। अन्य सब बातें व्यर्थ और समय की बर्बादी है।)

आजकल खूब भयानक गर्मी पड़ रही है, अपनी रक्षा स्वयं करें ---

 आजकल खूब भयानक गर्मी पड़ रही है, अपनी रक्षा स्वयं करें ---

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(१) जब तक कोई अति आवश्यक कार्य न हो तब तक बाहर धूप में न निकलें। धूप से और गरम हवा से बचें, कहीं लू न लग जाये। जब तापमान सामान्य से अधिक होता है तब उसके प्रभाव से जो गर्म हवा चलती है उसे लू कहते हैं। यह प्राण-घातक होती है। इससे बचें। घर से बाहर निकलते समय सिर को ढक कर रखें, पानी पी कर ही घर से निकलें, साथ में पीने का पानी अवश्य रखें। प्यास लगते ही खूब पानी पी लें। लू लगना (Sun Stroke) एक मेडिकल आपत्काल (Medical Emergency) है, जिसमें मृत्यु भी हो सकती है। शरीर के हर अंग को लू से बचाकर रखें, इसके लिए सफ़ेद सूती वस्त्र पहिनें और सिर गर्दन आदि को एक सूती वस्त्र से ढँक लें। ज़रा सी भी बेचैनी होने पर तुरंत चिकित्सक की सलाह लें।
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(२) राजस्थान का पेय "राबड़ी" गर्मियों में लू से रक्षा करता है। इसमें दो ही घटक होते हैं -- छाछ और बाजरे का आटा। कहीं कहीं मक्के या जौ के आटे का भी प्रयोग होता है। इसे बनाने की विधि गूगल पर उपलब्ध है। राजस्थान और हरियाणा की हरेक गृहिणी को राबड़ी बनानी आती है। हमारे घर पर गर्मियों में नित्य छाछ और जौ के आटे से बनाई राबड़ी का सेवन करते हैं।
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(३) बील का शरबत, नीबू की शिकंजी, कच्चे आम का पना, नारियल का पानी, और प्याज का सेवन (दवा के रूप में) इस मौसम में लाभदायक है। खूब पानी पीते रहें। भूल से भी कोकाकोला, पेप्सी, थम्सअप आदि न पीयें, इनको पीना अपनी मृत्यु को निमंत्रित करना है। इस मौसम में प्याज का सेवन अधिकांश लोग करते हैं, यह गर्मी से रक्षा करता है।
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(४) ज़रा सी भी बेचैनी होने पर चिकित्सक की सलाह लें। धन्यवाद !

आज १९ मई २०२३ को ग्रेगोरियन कलेंडर (अंग्रेजी तिथि) के अनुसार मेरे पाणिग्रहण संस्कार (परिणयोत्सव/विवाह) की ५०वीं वर्षगाँठ है।

आज १९ मई २०२३ को ग्रेगोरियन कलेंडर (अंग्रेजी तिथि) के अनुसार मेरे पाणिग्रहण संस्कार (परिणयोत्सव/विवाह) की ५०वीं वर्षगाँठ है। इस अवसर पर बधाई और अभिनंदन करने वाले सभी मित्रों व स्नेही जनों को मेरा सादर नमन, धन्यवाद और शुभ आशीर्वाद! आप सब का यश और कीर्ति अमर रहे। परमात्मा की महती कृपा आप सब पर सदा बनी रहे, और आप सब का जीवन परम मंगलमय हो।

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जैसे पृथ्वी चन्द्रमा को साथ लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है वैसे ही एक गृहस्थ व्यक्ति अपनी चेतना में अपने परिवार के साथ एकाकार होकर परमात्मा की उपासना करता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से पूरी सृष्टि ही मेरा परिवार है, जिसके साथ एकाकार होकर मैं परमात्मा के साथ एक हूँ।
लौकिक रूप से आप सब परमात्मा के साकार रूप हैं। आप सब में व्यक्त परमात्मा को नमन करता हुआ आप सब के आशीर्वाद की प्रार्थना करता हूँ।
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१९ मई १९७३ को मेरा पाणिग्रहण संस्कार / परिणय / विवाह जिन देवी-स्वरूपा से हुआ था, जीवन की हर परिस्थिति में उन्होंने मेरा साथ दिया, और उन्हीं की सेवा के फलस्वरूप आज मैं जीवित और स्वस्थ हूँ। ऐसा ही मधुर दाम्पत्य जीवन सभी का हो।
मंगलमय शुभ कामनाएँ!!
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ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नोयथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ सहनाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
१९ मई २०२३

आज हमारे विवाह की ४८वीं वर्षगाँठ है --- (१९ मई २०२१)

 आज हमारे विवाह की ४८वीं वर्षगाँठ है ---

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हमारे इष्टदेव, कुलदेवी, और पितृगणों के आशीर्वाद, गुरुकृपा, व आप सब की मंगलमय शुभ कामनाओं से आज हमारे वैवाहिक जीवन के ४८ वर्ष पूर्ण हो गए हैं। बिना किसी लड़ाई-झगड़े, वाद-विवाद और असंतोष के; "सुख-शांति और संतुष्टि" से ये ४८ वर्ष बीते हैं, और जब तक प्रारब्ध में साथ-साथ रहना लिखा है, सुख-शांति से ही रहेंगे। जिन देवी-स्वरूपा से मेरा परिणय हुआ था उन्होंने जीवन की हर सम-विषम परिस्थिति में अपने धर्म को निभाया, और सदा मेरा साथ दिया। उन्हीं की सेवा के फलस्वरूप आज मैं जीवित और स्वस्थ हूँ।
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ग्रेगोरियन कलेंडर (ईसाई पंचांग) के अनुसार १९ मई १९७३ को परिणय, पाणिग्रहण-संस्कार द्वारा एक गठबंधन में बंधकर मैंने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। पाश्चात्य दृष्टिकोण से तो यह एक आश्चर्य और उपलब्धि है कि कोई विवाह इतने लम्बे समय तक निभ जाए। भारतीय दृष्टिकोण से तो अब से बहुत पहिले ही वानप्रस्थ आश्रम का आरम्भ हो जाना चाहिए था जो नहीं हो पाया।
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सनातन धर्म के अनुसार विवाह का एक आदर्श आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी है, लेकिन उसके आसपास पहुँचना भी अति कठिन है। सारे आदर्श, आदर्श ही रह जाते हैं, कई बातें हृदय की हृदय में ही रह जाती हैं, कभी साकार नहीं हो पातीं। लेकिन उन्हें कहना चाहिये ---
🌹🙏🕉🙏🌹 "जैसे पृथ्वी -- चन्द्रमा को साथ लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है वैसे ही एक गृहस्थ अपनी चेतना में अपने लौकिक परिवार को भी अपने साथ लेकर परमात्मा की उपासना करता है।"
🌹🙏🕉🙏🌹आध्यात्मिक दृष्टिकोण से तो "सारी सृष्टि मेरा परिवार है, और सारा ब्रह्मांड मेरा घर। मैं सम्पूर्ण समष्टि हूँ, यह भौतिक देह नहीं। मेरे सिवाय अन्य कोई नहीं है। मेरा न जन्म है, और न मृत्यु। मैं शाश्वत परमशिव हूँ।"
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यह सृष्टि और उसका संचालन जगन्माता का कार्य है। हे भगवती, हे जगन्माता, परमात्मा के प्रति हमारा समर्पण पूर्ण हो, किसी प्रकार की कोई कामना, मोह और अहंकार का अवशेष ना रहे। हमारा अच्छा-बुरा जो भी है वह संपूर्ण आपको समर्पित है। हमारा समर्पण स्वीकार करो। जैसे मिठाई खाने से मुँह मीठा होता है वैसे ही परमात्मा का स्मरण करने से जीवन आनंदित रहता है। यह आनंद सदा बना रहे।
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विवाह-संस्कार -- पूर्व जन्मों के कर्म-फलों के आधार पर ही होता है। कोई माने या न माने पर यह शत-प्रतिशत सत्य है। कहने को तो हम लोग इसे 'संयोग' कह देते हैं, पर कुछ भी 'संयोग' नहीं है, सब कुछ प्रकृति के नियमों के अनुसार ही होता है। अपने नियमों का पालन प्रकृति बड़ी कठोरता और निष्ठुरता से करती है। प्रकृति के नियमों को भगवान ही बदल सकते हैं, यह मनुष्य के बूते से बाहर है।
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विवाह की वर्षगाँठ पर बधाई और अभिनंदन करने वाले सभी मित्रों व स्नेही जनों को मेरा सादर नमन, धन्यवाद और शुभाशीष !! परमात्मा की महती कृपा आप पर सदा बनी रहे, और आपका जीवन परम मंगलमय हो, आपका यश और कीर्ति अमर रहे।
"ऊँ सहनाववतु सहनौभुनक्तु सहवीर्यं करवावहै, तेजस्विनावधीतमस्तु मां विद्विषावहै। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
"स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्वेवेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥"
"ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव॥"
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
१९ मई २०२१

भगवान का शुक्र है कि हमारा जन्म भारत में नहीं हुआ ..... (एक पुरानी स्मृति)

भगवान का शुक्र है कि हमारा जन्म भारत में नहीं हुआ ..... (एक पुरानी स्मृति) -------------------------------------------------

लगभग ४० वर्ष पूर्व की बात है| मैं सर्दियों में नोर्वे के उत्तर में एक स्थान पर गया हुआ था| वहाँ की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वहाँ उस मौसम में पूरे दिन और रात धुंध रहती है व आधी रात को कुछ समय के लिए सूर्य हल्के से चमकता है| वह क्षेत्र 'अर्धरात्रि के सूर्य' का स्थान कहलाता है|
वहाँ एक पार्टी में एक महिला ने मुझसे पूछा की मैं अपनी पत्नी से कितने समय से दूर हूँ? मैंने उत्तर दिया -- पाँच महीनों से| उसने और पूछा कि कितने दिनों बाद घर जाओगे? मैंने कहा -- और दो माह बाद| मेरा उत्तर सुनकर वह महिला भड़क गयी और कहा कि ---- सात माह बाद! और आपकी पत्नी ने अभी तक आपको तलाक़ नहीं दिया ? फिर वह उस हॉल के दूसरे कोने से अपने आदमी का हाथ पकड़कर लाई और मुझसे कहा कि --- देखो, यह मेरा आदमी है, यह मुझसे अगर सात दिन के लिए भी दूर चला जाए तो मैं इसे छोड़कर दूसरा विवाह कर लूँगी| वहाँ उपस्थित अन्य महिलाओं के लिए भी यह आश्चर्य का विषय था कि भारत में कोई स्त्री अपने पति के बिना कैसे इतने दिनों तक रह सकती है| मुझे उन महिलाओं की बातें स्पष्ट सुनाई दी कि --- "भगवान का शुक्र है कि हमारा जन्म भारत में नहीं हुआ|"
कृपा शंकर
१९ मई २०१९

हमारे बच्चों को संस्कृत में गीता के श्लोकों का सही उच्चारण करना नहीं आता --

 आज मुझे यह देखकर बड़ी पीड़ा हुई कि हमारे बच्चों को संस्कृत में गीता के श्लोकों का सही उच्चारण करना नहीं आता| गीता का ज्ञान ब्रह्मज्ञान है, और हर वाक्य ब्रह्मवाक्य है| अतः ब्रह्मवाक्य का उच्चारण तो सही होना चाहिए| देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी का जिस तरह से हम उच्चारण करते हैं, वैसा संस्कृत में नहीं होता| संस्कृत में उच्चारण करने का तरीका कुछ अलग होता है|

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आजकल विद्यालयों की छुट्टियाँ चल रही हैं| मेरी सभी से प्रार्थना है कि इन छुट्टियों में बच्चों को सही और शुद्ध गीता का पाठ करना सिखाएँ| गीता का सही व शुद्ध उच्चारण कर के नियमित पढने से बच्चे कुशाग्र बुद्धि होंगे| हमें अपनी संस्कृति, धर्म और परम्पराओं का पूर्ण सम्मान करना चाहिए|
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किसी भी मन्त्र का लाभ उसके सही व शुद्ध उच्चारण से ही होता है| गायत्री मन्त्र का लाभ भी तभी होगा जब हम उसका शुद्ध व सही उच्चारण करेंगे| अतः सभी को संस्कृत भाषा का सही व शुद्ध उच्चारण करना सीखना चाहिए| सधन्यवाद !
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कृपा शंकर
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१९ मई २०१८

वैवाहिक जीवन के ४४ वर्ष --- (१९ मई २०१७)

 वैवाहिक जीवन के ४४ वर्ष --

ग्रेगोरियन पंचांगानुसार १९ मई १९७३ को एक गठबंधन में बंधकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था| आज परमेष्ठी गुरु रूप परम शिव परमात्मा की परम कृपा से पूरे ४४ वर्ष हो गए हैं| आप सब परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्तियाँ यानी परमात्मा के साकार रूप हैं| आप सब में व्यक्त परमात्मा को नमन करता हुआ आपके आशीर्वाद की प्रार्थना करता हूँ|
सांसारिक जीवन के बहुत सारे उतार-चढ़ाव और परस्पर विरोधी व अनुकूल विचारधाराओं के संघर्ष, तालमेल एवं समझौतों को ही वैवाहिक जीवन कह सकते हैं| दूसरे शब्दों में कभी शांति, कभी गोलीबारी, कभी युद्धविराम और फिर शांति .... यही वैवाहिक जीवन है|
पाश्चात्य दृष्टिकोण से यह एक आश्चर्य और उपलब्धि है कि कोई विवाह इतने लम्बे समय तक निभ जाए| भारतीय दृष्टिकोण से तो अब से बहुत पहिले ही वानप्रस्थ आश्रम का आरम्भ हो जाना चाहिए था जो नहीं हो पाया|
एक आदर्श आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी है पर उसके आसपास पहुँचना भी अति कठिन है| सारे आदर्श आदर्श ही रह जाते हैं| जिस तरह पृथ्वी चन्द्रमा को साथ लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है वैसा ही एक गृहस्थ का आदर्श है| वर्णाश्रम धर्म तो वर्तमान में एक आदर्श और अतीत का विषय ही होकर रह गया है| कई बाते हैं जो हृदय की हृदय में ही रह जाती हैं, कभी उन्हें अभिव्यक्ति नहीं मिलती|
यह सृष्टि और उसका संचालन जगन्माता का कार्य है| जैसी उनकी इच्छा हो वह पूर्ण हो|
हे प्रभु, हे जगन्माता, हमारा समर्पण पूर्ण हो, किसी प्रकार की कोई कामना, मोह और अहंकार का अवशेष ना रहे| हमारा अच्छा-बुरा जो भी है वह संपूर्ण आपको समर्पित है| हमारा समर्पण स्वीकार करो|
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरितासउद्भिदः।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे॥
दवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवाना ग्वँग् रातिरभि नो निवर्तताम्।
देवाना ग्वँग् सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तुजीवसे॥
तान् पूर्वया निविदाहूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम्।
अर्यमणं वरुण ग्वँग् सोममश्विना शृणुतंधिष्ण्या युवम्॥
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमसे हूसहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्वेवेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः।
अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह॥
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं फश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरै रङ्गैस्तुष्टुवा ग्वँग् सस्तनू भिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता म पिता स पुत्रः।
विश्वे देवा अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥
द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ग्वँग् शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ग्वँग् शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शन्नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥ सुशान्तिर्भवतु॥
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव॥
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
१९ मई २०१७

आज हमारे विवाह की ४१वीं वर्षगाँठ है ------- (Dated १९ मई २०१४)

 आज हमारे विवाह की ४१वीं वर्षगाँठ है -------

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हमारे इष्टदेव भगवान शिव, कुलदेवी माँ शाकम्भरी, और पितृगणों के आशीर्वाद, गुरुकृपा, व आप सब की शुभ कामनाओं से आज हमारे सुखी वैवाहिक जीवन के ४१ वर्ष पूर्ण हो गए हैं| बिना किसी लड़ाई-झगड़े वाद-विवाद और असंतोष के, सुख शांति और संतुष्टि से हमारे वैवाहिक जीवन के ये ४१ वर्ष व्यतीत हुए हैं, और जब तक प्रारब्ध में साथ साथ रहना लिखा है, सुख शांति से रहेंगे|
यहाँ मैं जीवन का एक अनुभव आप के साथ बाँटना चाहता हूँ| विवाह के बाद मुझे अपनी नौकरी और कार्य के क्रम में बहुत लम्बे लम्बे समय तक विदेशों में रहना पड़ता था| विवाह के साढ़े चार वर्ष बाद की एक घटना है| मैं सर्दियों में नोर्वे के उत्तर में एक स्थान पर गया हुआ था| वहाँ की भौगोलिक स्थिति ऐसी थी कि वहाँ उस मौसम में पूरे दिन और रात धुंध रहती व आधी रात को कुछ समय के लिए सूर्य हल्के से चमकता था और वह क्षेत्र 'अर्धरात्रि के सूर्य' का स्थान कहलाता था|
वहाँ एक पार्टी में एक महिला ने मुझसे पूछा की मैं अपनी पत्नी से कितने समय से दूर हूँ| मैंने उत्तर दिया -- पाँच महीनों से| उसने और पूछा कि कितने दिनों बाद घर जाओगे| मैंने कहा -- और दो माह बाद|
मेरा उत्तर सुनकर वह महिला भड़क गयी और कहा कि ---- सात माह ! और आपकी पत्नी ने अभी तक आपको तलाक़ नहीं दिया ? फिर वह उस हॉल के दूसरे कोने से अपने आदमी का हाथ पकड़कर लाई और मुझसे कहा कि --- देखो, यह मेरा आदमी है, यह मुझसे अगर सात दिन के लिए भी दूर चला जाए तो मैं इसे छोड़कर दूसरा विवाह कर लूँगी| वहाँ उपस्थित अन्य महिलाओं के लिए भी यह आश्चर्य का विषय था कि भारत में कोई स्त्री अपने पति के बिना कैसे इतने दिनों तक रह सकती है| मुझे उन महिलाओं की बातें स्पष्ट सुनाई दी कि --- भगवान का शुक्र है कि हमारा जन्म भारत में नहीं हुआ|
विवाह के सात वर्ष बाद मेरी पत्नी मेरे साथ सिर्फ एक बार श्रीलंका, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और जापान गयी थी| उसके बाद कभी विदेश नहीं गयी क्योंकि उसे वहाँ का जीवन अच्छा नहीं लगा|
हमारा अनुभव तो यही है है कि विश्व में भारतीय हिन्दू जीवन पद्धति और जीवन मूल्य ही सर्वश्रेष्ठ हैं|
भारत में जिस व्यक्ति को दो समय का भरपेट भोजन भी मिल जाता है वह भी चाहे तो सुखी है|
आप सब में अन्तस्थ प्रभु को प्रणाम ! आप सब हमें आशीर्वाद दें कि हमारा शेष जीवन समष्टि के कल्याण हेतु ईश्वर की आराधना में ही व्यतीत हो| ॐ नमः शिवाय ! ॐ शिव !
१९ मई २०१४