Tuesday, 22 April 2025

साक्षीभाव में स्थित रहो। किसी भी संकल्प को लाओ भी मत और छोड़ो भी मत।

साक्षीभाव में स्थित रहो। किसी भी संकल्प को लाओ भी मत और छोड़ो भी मत।

  

संकल्प को सिनेमा समझकर सीट पर बैठे देखते रहो । सिनेमा देखने के लिये सौ - दो सौ रुपये का टिकट लेकर जाते हैं । देखा होगा सबने बड़े - बड़े हाल बने हुए हैं। वहाँ टिकट लेकर , कोई दही - बड़े थोड़े ही खाने को मिलते है , रबड़ी थोड़े ही खाने को मिलते हैं । क्या मिलता है ? कुर्सी मिलती है बैठने को । वहाँ चुपचाप बैठे रहो । बीच में खड़े हो गये तो पीछे वाला शोर और मचा देगा ! इसी प्रकार प्रारब्ध कर्म के पैसे देखकर हम - आप अन्तःकरण के सिनेमा का टिकट लेकर आये हो । जो हमें - आपको सुख - दुःख भोगना है , वह प्रारब्ध के टिकट के अनुसार । जब आकर इस देह , सिनेमाघर में बैठ गये तब मन के आगे जो आता चला जाये उसे देखते चले जायें । सीट पर बैठे रहें , शोर मत मचायें । यह संकल्प की साक्षीरूपता है।


नारायण ! यह जो ज्ञान है यही सारे लोकों का , जितने भी अनुभव है , इन सबका जीवन है । जो निश्चित रूप से उस साक्षी - स्वरूप में बैठ जाता है , वह संकल्प करने वाला " मैं " नहीं , अहंकार नहीं , आत्मा है । यह बात सुनते तो हैं , समझते हैं लेकिन भूल जाते हैं। कई लोग सिनेमा देखकर आते हैं तो आँखे लाल होती हैं । पूछें " आँखे लाल कैसे हो गई? " उत्तर देते हैं " जी ऐसा दृश्य था कि रोना रोक नहीं पाये । " वहाँ रोने वालों को देखने गये थे कि खुद रोने लग गये ! इसी प्रकार कोई दूसरा चित्र आता है , बड़ा अच्छा लगता है , कोई गाना सुना तो वहीं हाथ पैर मारने लगते हैं , दिवाने हो जाते हैं ! अरे , यह करने गये थे कि देखने गये थे।
यहाँ भी आकर आप - हम शरीर में बैठे हैं । प्रारब्ध का टिकट ले लिया । बीच - बीच में भुल जाते है कि दर्शक हूँ , समझ देते हैं कि खेल करने वाला ही मैं हूँ । बस , यह न करें । मैं केवल साक्षिरूप ज्ञान हूँ , उससे अतिरिक्त मैं कुछ नहीं । सिनेमा के नट - नटियों से मेरा कोई मतलब नहीं । इसको जो निश्चित रूप से याद रखते है वे ही मुक्त है। पूर्ण मुक्ति तो उसकी है जो सब काल में यह निश्चय रख सके । लेकिन मान लें आपको चार फुलकों की भूख है । पेट तो तभी भरेगा जब चार फुलके खाने को मिल जायें लेकिन यदि दो फुलके भी खाने को मिल गये तो कुछ तो संतोष हो ही जाता है । इसी तरह से नित्य निरन्तर साक्षिभाव में स्थित हो सकें इसके लिये प्रयास करें क्योंकि तभी पूर्ण रूप से आप मुक्त होंगे , लेकिन जिस - जिस क्षण इस साक्षिभाव में स्थित होते है उस - उस क्षण भी तो मुक्त ही हैं । प्रयास करते रहें लक्ष्य प्राप्त ही होगा । यह निश्चित है । निश्चित है । यही आचार्य का संदेश है ।
२३ अप्रेल २०१५ 

हम जो भी भोजन करते हैं वह हम स्वयं नहीं ग्रहण करते बल्कि अपनी देह में स्थित परमात्मा को अर्पित करते हैं, जिससे समस्त सृष्टि तृप्त होती है ---

 हम जो भी भोजन करते हैं वह हम स्वयं नहीं ग्रहण करते बल्कि अपनी देह में स्थित परमात्मा को अर्पित करते हैं, जिससे समस्त सृष्टि तृप्त होती है| भोजन इसी भाव से भोजन-मन्त्र बोलकर भगवान को अर्पित कर के करना चाहिए|

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१ पाँच अंगों ( दो हाथ, २ पैर, मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करें !
२. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !
३. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है !
४. पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके ही खाना चाहिए !
५. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
६ . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !
७. शैय्या पर, हाथ पर रख कर, टूटे फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !
८. मल मूत्र का वेग होने पर, कलह के माहौल में, अधिक शोर में, पीपल, वट वृक्ष के नीचे, भोजन नहीं करना चाहिए!
९ परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
१०. खाने से पूर्व अन्न देवता, अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के, उनका धन्यवाद देते हुए, तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो ईश्वर से ऐसी प्रार्थना करके भोजन करना चाहिए !
११. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर (गाय, कुत्ता, और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये !
१२. इर्षा, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीन भाव, द्वेष भाव, के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
१३. आधा खाया हुआ फल, मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
१४. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए !
१५. भोजन के समय मौन रहे !
१६. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
१७. रात्री में भरपेट न खाए !
१८. गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए !
१९. सबसे पहले मीठा, फिर नमकीन, अंत में कडुवा खाना चाहिए !
२०. सबसे पहले रस दार, बीच में गरिस्थ, अंत में द्रव्य पदार्थ ग्रहण करे !
२१. थोडा खाने वाले को --आरोग्य, आयु, बल,सुख, सुन्दर संतान और सौंदर्य प्राप्त होता है !
२२. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहाँ कभी न खाए !
२३. कुत्ते का छुवा, रजस्वला स्त्री का परोसा, श्राध का निकाला, बासी, मुहसे फूक मरकर ठंडा किया, बाल गिरा हुवा भोजन, अनादर युक्त, अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !
April 23, 2013.

किसी भी विषय की या किसी भी मत, पंथ या विचारधारा की आलोचना से पूर्व उस का गहन अध्ययन करना चाहिए|

 किसी भी विषय की या किसी भी मत, पंथ या विचारधारा की आलोचना से पूर्व उस का गहन अध्ययन करना चाहिए| सुनी-सुनाई बातों से किसी की मैं आलोचना नहीं करता| मैं मार्क्सवाद की आलोचना करता हूँ क्योंकि मुझे इसका प्रत्यक्ष अनुभव है| जब मार्क्सवाद अपने चरम पर था ऐसे समय भगवान ने मुझे पूर्व सोवियत संघ में रूस और लातविया में रहने का अवसर प्रदान किया है| फिर मार्क्सवादी देशों .... यूक्रेन, रोमानिया, चीन और उत्तरी कोरिया की यात्राएं भी भगवान ने करवाई हैं| विश्व के ग्यारह मुस्लिम देशों .... मोरक्को, मिश्र, तुर्की, सऊदी अरब, मलयेशिया, इन्डोनेशिया, बांग्लादेश, यमन, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, और कुवैत की यात्राएं भी भगवान ने करवाई हैं| अतः उनके भी मत के किसी विषय की मैं समालोचना करता हूँ तो अपने अध्ययन से करता हूँ| विश्व के अनेक ईसाई देशों में गया हुआ हूँ, अनेक विदेशी ईसाई पादरी मेरे अच्छे मित्र थे| उनके मत की समालोचना मैं उनके समक्ष ही किया करता था जिसे वे बड़े ध्यान से सुनते भी थे और सहमत भी होते थे| अब भी कई बाते मुझे अच्छी नहीं लगती जिनकी आलोचना मैं सोच-समझ कर अपनी मर्यादा में रहते हुए ही करता हूँ| मेरी शुभ कामनाएँ सभी के प्रति हैं| सभी का कल्याण हो| ॐ नमः शिवाय !!

२३ अप्रैल २०२०

दान-पुण्य करने से पहिले ---

 दान-पुण्य करने से पहिले ---

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कृपा कर के अपने आसपास भी देख लें कि -- आपके परिवार का कोई सदस्य, संबंधी, मित्र या सेवक, -- दुर्भाग्य से, कहीं आर्थिक रूप से संकट में तो नहीं पड़ गया है। पहले उनको आर्थिक रूप से सशक्त बनने में सहायता करें, फिर दान-पुण्य करें।
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उन तक आप ही पहुँच सकते हैं, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या अन्य कोई नहीं। ये आपके ही वे लोग हैं, जो आपसे माँगने से हिचकिचायेंगे व माँगने नहीं आयेंगे। सरकार या अन्य कोई इन्हें कुछ भी नहीं देगा।
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आप स्वयं ही हाथ बढायें। कृपया ढूँढ़ कर उनकी सहायता करें। भगवान आपका भला करेगा।
२३ अप्रेल २०२१

हे परमशिव, अब आपके बिना, एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते! इसी क्षण स्वयं को पूर्णतः व्यक्त करो ---

 हे परमशिव, अब आपके बिना, एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते! इसी क्षण स्वयं को पूर्णतः व्यक्त करो ---

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यह कोई माँग नहीं, हृदय की अभीप्सा है, जिसे परमात्मा का विरह एक क्षण के लिए भी स्वीकार्य नहीं है। परमात्मा हमें प्राप्त नहीं होते, बल्कि समर्पण द्वारा हम स्वयं ही परमात्मा को प्राप्त होते हैं। कुछ पाने का लालच -- माया का एक बहुत बड़ा अस्त्र है। जीवन का सार कुछ होने में है, न कि कुछ पाने में। जब सब कुछ हम ही हैं, तो प्राप्त करने को बचा ही क्या है? . ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०२१ . पुनश्च: --- किसी भी शिवालय में भगवान शिव के वाहन नंदी का मुंह सदा शिवलिंग की ओर ही होता है। अतः हमारी दृष्टी भी निज-आत्मा यानी आत्म-तत्व की ओर ही हर समय होनी चाहिए क्योंकि हमारी यह देह भी हमारी आत्मा का वाहन है।

आध्यात्म में प्राप्त करने को कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी तुम्हारे पास है, वह तुमसे छीन लिया जाएगा।

अप्राप्त को प्राप्त करने का लोभ नर्क का द्वार है। भगवान कोई प्राप्त करने का विषय नहीं है। जैसे सिनेमा में देखते हैं वैसे भगवान ऊपर आसमान से उतर कर नहीं आते। हमें स्वयं को भगवान बनना पड़ता है। यही आत्म-साक्षात्कार है, यही ईश्वर को उपलब्ध होना है। अपने अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, व अहंकार) को शरणागति द्वारा पूर्णतः समर्पित करना पड़ता है। भगवान की कृपा हम पर उसी अनुपात में होती है जिस अनुपात में हमारे हृदय में उनके प्रति परमप्रेम होता है।
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जिसका हम ध्यान करते हैं, वही हम बन जाते हैं। परमात्मा हमें प्राप्त नहीं होते, बल्कि समर्पण के द्वारा हम स्वयं ही परमात्मा को प्राप्त होते हैं। कुछ पाने का लालच -- माया का एक बहुत बड़ा अस्त्र है। जीवन का सार कुछ होने में है, न कि कुछ पाने में। जब सब कुछ परमात्मा ही हैं, तो प्राप्त करने को बचा ही क्या है? आत्मा की एक अभीप्सा होती है, उसे परमात्मा का विरह एक क्षण के लिए भी स्वीकार्य नहीं है। इसी को परमप्रेम या भक्ति कहते हैं। जीवन का सार कुछ होने में है, न कि कुछ प्राप्त करने में। हम यह देह नहीं, परमात्मा की सर्वव्यापकता हैं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०२३