Sunday, 13 April 2025

महावीर जयंती की शुभ कामनाएँ --- .

जैन धर्म के २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती पर मैं उनके सभी अनुयायियों का और जैन मतावलम्बी अपने सभी मित्रों का अभिनन्दन करता हूँ|

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जहाँ तक मैं समझा हूँ, "जैन" शब्द का अर्थ है .... जीतने वाला .... यानि जिसने अपने मन को, इन्द्रियों को, वाणी को और काया को जीत लिया है, वह जैन है|
जैन धर्म का उद्देश्य है ... "वीतरागता", यानि एक ऐसी अवस्था को प्राप्त करना जो राग, द्वेष और अहंकार से परे हो|
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भगवान महावीर के अनेकान्तवाद और स्यादवाद के दर्शन ने वर्षों पूर्व मुझे अपनी ओर आकर्षित किया था इस लिए मैंने उनका अध्ययन भी किया| भगवान महावीर ने "कैवल्य" शब्द का भी प्रयोग किया है| उन की "कैवल्य" की क्या अवधारणा थी, यह तो वे ही बता सकते हैं| जहाँ तक मैं समझता हूँ, "कैवल्य" .... निर्लिप्त, असम्बद्ध और निःसंग होने की अवस्था का नाम है| इसका अर्थ कई लोग मोक्ष या मुक्ति भी लगाते हैं, जिस से मैं सहमत नहीं हूँ| कैवल्य का अर्थ निःसंग, असम्बद्ध और निर्लिप्त ही हो सकता है| शायद "कैवल्य" और "वीतरागता" एक ही अवस्था का नाम हो, कुछ कह नहीं सकता|
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यह एक नास्तिक धर्म है जो वेदों को अपौरुषेय नहीं मानता| इसमें ईश्वर की परिकल्पना नहीं है, सिर्फ तीर्थंकर, मुनि, आचार्य और उपाध्याय ही हैं| भारत की नास्तिक परम्परा में दो मुख्य धर्म हैं ..... जैन धर्म और बौद्ध धर्म, जो दोनों ही नास्तिक हैं, जिन्होंने जीवन में ईश्वर की आवश्यकता नहीं मानी| आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म और कर्मफलों का सिद्धांत .... ये तो भारत में जन्में सभी आस्तिक व नास्तिक धर्मों में है|
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इस धर्म में अनेक बड़े बड़े विद्वान् और दार्शनिक हुए हैं| आधुनिक युग में भी हमारे ही झुंझुनू जिले के टमकोर गाँव में जन्में आचार्य महाप्रज्ञ थे, जो अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी, परम विद्वान् और बहुत प्रसिद्ध तपस्वी संत थे| उन्हीं के उत्तराधिकारी चुरू जिले के सरदारशहर गाँव में जन्में विद्वान् आचार्य महाश्रमण हैं जो वर्तमान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के आचार्य हैं|
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पुनश्चः सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
कृपा शंकर
२९ मार्च २०१८

हे गुरु रूप ब्रह्म !!

 हे गुरु रूप ब्रह्म !!

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लगता है -- अंधकारमय भव-सागर से तुमने मुझे पार करा ही दिया है। कहीं कोई अंधकार नहीं है। प्रकाश ही प्रकाश है। कुछ पता ही नहीं चला। अब सब कुछ तुम्हीं हो। तुम्हारी उपस्थिति से जीवन धन्य हुआ है। तुम्हारी मुस्कान से आत्मा तृप्त हुई है। तुम्हारे प्रेम से ह्रदय भर गया है। तुम्हारी करुणा से वेदना दूर हुई है। तुम्हारे प्रकाश से मार्ग प्रशस्त हुआ है। तुम्हारे शब्दों से शांति मिली है। तुम्हारे विचारों से विवेक जागृत हुआ है। तुम्हारी हँसी से आनंद मिला है। तुम्हारी अनंतता से आश्रय मिला है। तुम्हारी सर्व-व्यापकता से सब कुछ मिल गया है। जीवन का जो सर्वश्रेष्ठ है, वह तुम ही हो। जब मैं अंधकार में ठोकरें खाता हुआ आगे बढ़ रहा था तब जिसने मुझे मार्ग दिखाया, वह तुम ही थे। तुम्हारा साथ अनंत काल तक के लिए है। तुम्हारी जय हो।
ॐ -- गुरु ॐ -- गुरु ॐ -- गुरु ॐ -- जय गुरु !! १४ अप्रेल २०२१

मेरी उपासना और मेरा योग ----

 मेरी उपासना और मेरा योग ---

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जैसे सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देता है, वैसे ही मुझ अकिंचन को भी राम जी के सिवाय अब अन्य कुछ भी दिखाई नहीं देता। राम जी ही मेरा बल हैं, और वे ही मेरी संपत्ति हैं। वे रामजी ही यह "मैं" बन गए हैं। अब मैं स्वयं ही यह सृष्टि हूँ, और स्वयं ही इस सृष्टि का अनन्य चक्रवर्ती सम्राट हूँ।
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मैं ध्यान के जिस ऊनी आसन पर पद्मासन में बैठा हूँ, वह मेरी राजगद्दी यानि मेरा सिंहासन है। दूर से दूर सूक्ष्म जगत में जहाँ तक मेरी कल्पना जाती है, वह सब मेरा साम्राज्य है। मैं इस अखंड साम्राज्य का चक्रवर्ती सम्राट हूँ। ये सारी आकाशगंगाएँ, उनके नक्षत्र, और उनके ग्रह/उपग्रह, -- मैं स्वयं हूँ। इस सारी सृष्टि को घूर घूर कर बहुत अच्छी तरह से देख लिया है। पूरी सृष्टि में मेरे से अन्य कोई नहीं है। पूरी सृष्टि ही यह "मैं" बन गई है।
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इन सारी भौतिक, प्राणिक, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय सृष्टियों के सारे जड़-चेतन, सारे प्राणी, मेरे ही भाग हैं। मैं अनन्य हूँ। मेरा अनंत विस्तार ही मेरे साम्राज्य का जीवन है, और सीमितता मृत्यु है। अब मैं अपने आसन से लाखों किलोमीटर ऊपर उठ कर अंतरिक्ष के मध्य में पद्मासन लगाए बैठा हूँ। जिस पृथ्वी लोक से मैं आया था, वह पृथ्वी लोक तो कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा है। अपने आनंद के लिए मैं लाखों किलोमीटर आगे-पीछे, दायें-बाएं, अपनी स्वतंत्र इच्छा से घूम रहा हूँ। कोई बाधा मेरे समक्ष नहीं है।
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अनंतता में स्थिति परमानन्द है। अब मैं अनंतता से भी परे, स्वयं परमशिव होकर, परमशिव का ध्यान कर रहा हूँ। मैं ही विष्णु हूँ, मैं ही नारायण हूँ। स्वयं का ध्यान स्वयं कर रहा हूँ। कहीं कोई पृथकता नहीं है। गुरु भी मैं हूँ, और शिष्य भी मैं हूँ। स्वयं ही स्वयं का मार्गदर्शन कर रहा हूँ। मैं यह भौतिक देह नहीं, परमात्मा की पूर्णता हूँ। मेरे आराध्य और मैं एक हैं, वे ही यह मैं बन गए हैं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०२३

भक्तिपूर्वक गुरु-चरणों में मानसिक रूप से प्रणाम, आचमन और प्राणायाम ----

भक्तिपूर्वक गुरु-चरणों में मानसिक रूप से प्रणाम, आचमन और प्राणायाम ---- .

ये किसी भी पूजा-पाठ, उपासना/साधना से पूर्व करना अनिवार्य है। इनके बिना सफलता नहीं मिलती।
अपनी गुरु-परंपरा और सदगुरु को प्रणाम अवश्य करें। गुरु महाराज को ही कर्ता बनायें, इससे साधन में कोई भूल-चूक हो जाये तो गुरु महाराज उसका शोधन कर देते हैं।
प्राणायाम के बिना चेतना जागृत नहीं होती।
आचमन से भक्ति जागृत होती है।
आसन शुद्ध हो। आहार-शुद्धि के बिना विचार-शुद्धि नहीं होती। विचार-शुद्धि के बिना एकाग्रता नहीं होती। अपने विचारों का सदा अवलोकन करते रहें। जैसा हम सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं।
ॐतत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०२४ .
पुनश्च: --पिछले चार दिनों से मैं एक एकांत आश्रम में एक ब्रह्मज्ञ वेदांती दण्डी सन्यासी महाराज के साथ सत्संग कर रहा था। आज स्वास्थ्य संबंधी कारणों से बापस घर लौटना पड़ा। अनेक रहस्य अनावृत हुए हैं, और स्वयं के अज्ञान का बोध हुआ है।
संसार में छल-कपट और असत्य भरा पड़ा है, किसी से मिलने की इच्छा भी नहीं है। हर कदम पर विश्वासघात और धोखा ही धोखा है।
परमशिव भाव में स्थित होकर परमशिव की यथासंभव अधिकाधिक उपासना करेंगे। इस दीपक में अधिक तेल नहीं बचा है, अतः कुछ भी भरोसा नहीं है। असत्य का अंधकार निश्चित रूप से दूर होगा और धर्म व राष्ट्र की रक्षा होगी।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०२४

"मज़हब ही है सिखाता आपस में बैर रखना" ---

 "मज़हब ही है सिखाता आपस में बैर रखना" ---

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ईरान और इज़राइल के मध्य का युद्ध एक मज़हबी युद्ध है, और कुछ भी नहीं। यह यहूदियों और शियाओं के मध्य का एक युद्ध है। इसी तरह इज़राइल और हमास के मध्य का युद्ध भी सुन्नियों और यहूदियों के मध्य का एक युद्ध था।
ईरान और इज़राइल के मध्य तो कोई क्षेत्रीय सीमा भी नहीं मिलती। एक-दूसरे के हितों पर भी कोई अतिक्रमण नहीं है। लेकिन फिर भी एक-दूसरे का गला काटने को तैयार हैं।
यूरोप के लोगों ने उत्तरी और दक्षिण अमेरिकी महाद्वीपों, ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप, और न्यूज़ीलेंड के करोड़ों मूल निवासियों की हत्या क्यों की?
पुर्तगालियों और अरबों व तुर्कों ने अपने से विधर्मी करोड़ों लोगों की हत्या क्यों की?
क्या ये हत्यारे भटके हुए नौजवान थे? क्या ये हत्यारे अनपढ़, जाहिल और दरिद्र थे? नहीं ! ये सब मज़हबी उन्मादी थे। वर्तमान में जितने भी नर-संहार हो रहे हैं, वे सब मज़हबी उन्मादियों द्वारा हो रहे हैं।
"मज़हब ही है सिखाता आपस में बैर रखना।"
१४ अप्रेल २०२४

मनुष्य की प्रज्ञा ने ही इस पृथ्वी पर मनुष्यों की रक्षा की है, और प्रज्ञा-अपराध ही मनुष्य जाति का विनाश करेंगे ---

 मनुष्य की प्रज्ञा ने ही इस पृथ्वी पर मनुष्यों की रक्षा की है, और प्रज्ञा-अपराध ही मनुष्य जाति का विनाश करेंगे ---

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जो मैं लिखने जा रहा हूँ, वह सिर्फ पिछले दशक व वर्तमान के घटनाक्रमों व संभावित भावी घटनाक्रमों पर आधारित मेरे निजी विचार हैं, जिनका ज्योतिष-विद्या से कोई संबंध नहीं है। यह सिर्फ मेरा निजी आंकलन है, अतः किसी को ठेस पहुंचाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
इस समय दो अति कट्टर विचारधाराओं ने पूरे विश्व को त्रस्त कर रखा है, इन दोनों विचारधाराओं का विनाशकाल इसी वर्ष से आरंभ हो जायेगा। पहली विचारधारा का मैं नाम ही नहीं लेना चाहता, यूरोप और मध्य-पूर्व एशिया से उसका पतन आरंभ हो चुका है। उसका अंत समय अधिक दूर नहीं है।
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दूसरी विचारधारा चीनी मार्क्सवाद और विस्तारवाद है। मुझे लगता है कि अगले दो-तीन वर्षों में भारत, अमेरिका, विएतनाम, फिलिपाइन्स, मलयेशिया, ऑस्ट्रेलिया व जापान से -- चीन का युद्ध होगा, जिसमें चीन हारेगा, और चीन के छह टुकड़े हो जायेंगे।
सबसे पहले चीन से तिब्बत और क्विङ्ग्हाई प्रांत अलग होंगे जो मिलकर एक स्वतंत्र विशाल तिब्बत देश बना लेंगे। कैलाश और मानसरोवर को भारत अपने अधिकार में ले लेगा।
दूसरा भाग जो चीन से पृथक होगा, वह सिंजियांग प्रांत है। यह पूर्वी तुर्की कहलाता था। कभी भी चीन का भाग नहीं था।
तीसरा भाग जो चीन से पृथक होगा वह मंचूरिया होगा, जिसे चीन ने तीन प्रान्तों में बाँट रखा है।
चौथा भाग इन्नर मंगोलिया, जो चीन की दीवार के उत्तर में है।
पास में ही एक छोटा सा प्रांत और है, जिसका नाम निंगसिया है, उसके बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
पाँचवाँ भाग गुयाङ्गदोंग प्रांत व हैनान द्वीप होंगे। होङ्ग्कोंग व मकाऊ इसी का भाग हो जायेंगे।
छठा भाग ताइवान है जो इस समय भी चीन से पृथक है।
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भारत की सीमा चीन से कहीं पर भी नहीं लगेगी। चीन द्वारा कब्जाए गए सारे भारतीय क्षेत्रों को भारत छुड़ा लेगा। यह मेरा निजी आंकलन है, जिस पर कोई विवाद नहीं है। यह सत्य भी हो सकता है और असत्य भी। लेकिन सत्य होने की संभावना अधिक प्रबल है। तिब्बत एक स्वतंत्र देश होगा। नेपाल, भूटान और म्यांमार (बर्मा) अपनी स्वतंत्र इच्छा से भारत में मिल जायेंगे, यानि भारत का भाग हो जायेंगे। एक बात की संभावना और है कि भारत बांग्लादेश के चिट्टगोंग क्षेत्र को छीनकर त्रिपुरा में मिला सकता है।
आपने इस आलेख को पढ़ा, जिसके लिए धन्यवाद॥ इस लेख को शेयर या कॉपी/पेस्ट करने की पूरी छूट है, किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
१३ अप्रेल २०२५