Sunday, 30 March 2025

आत्म-साक्षात्कार (Self-Realization) ---

आत्म-साक्षात्कार (Self-Realization) ---
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भगवत्-प्राप्ति, भगवान का साक्षात्कार, आत्म-साक्षात्कार, व ईश्वर की प्राप्ति किसे कहते हैं? क्या भगवान आकाश से उतर कर आने वाले कोई हैं? क्या वे हमारे से पृथक हैं? किसी ने ईश्वर की प्रत्यक्ष अनुभूति की हो, वे ही उत्तर दें।
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मेरी अनुभूति तो यही है कि भगवान हम से पृथक नहीं हैं। हमें स्वयं को ही ईश्वर बनना पड़ता है। भगवान हामारे ही माध्यम से स्वयं को व्यक्त करते हैं। यही आत्म-साक्षात्कार है। यह एक ऐसी अनुभूति है जिसमें हम सब तरह की सीमितताओं से मुक्त होकर, असीम आनंद और असीम प्रेम (भक्ति) से भर जाते हैं। यह असीम प्रेम (भक्ति) और असीम आनंद ही आत्म-साक्षात्कार है, यही भगवत्-प्राप्ति है। यही हमारे जीवन का उद्देश्य है।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मार्च २०२४

भारत कभी पराधीन नहीं था ---

 भारत कभी पराधीन नहीं था। भारत क्यों पराजित हुआ? इस विषय पर मैनें खूब चिंतन किया है और जिन निष्कर्षों पर पहुँचा हूँ, उनका अति संक्षेप में यहाँ वर्णन कर रहा हूँ|

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वह समय ही खराब था| समाज में कई सद्गुण विकृतियाँ आ गयी थीं| समाज व राष्ट्र की अवधारणा व चेतना ही प्रायः लुप्त हो गयी थी| यह मान लिया गया कि राष्ट्ररक्षा का कार्य सिर्फ क्षत्रियों का ही है| जो भी विजेता होता उसी की आधीनता आँख मीच कर स्वीकार कर ली जाती| क्षत्रिय राजा भी निजी स्वार्थों के कारण संगठित न होकर बिखरे बिखरे ही रहे और कुछ ने तो आतताइयों का साथ भी दिया| क्षत्रिय राजाओं में भी समाज-हित और राष्ट्र-हित की चेतना धीरे धीरे लुप्त हो गयी| जिनमें यह चेतना थी वे असहाय हो गए| यदि सारा समाज और राष्ट्र एकजुट होकर आतताइयों का प्रतिकार करता तो भारत कभी भी पराजित नहीं होता, और भारत की ओर आँख उठाकर देखने का भी किसी में साहस नहीं होता|
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अब बीता हुआ समय तो बापस आ नहीं सकता, जो हो गया सो हो गया| अब इसी क्षण से हम इस दिशा में अपना सर्वश्रेष्ठ क्या कर सकते हैं, इस पर ही विचार करना चाहिए| हमारा राष्ट्र एक है| राष्ट्र की एकता कैसे बनी रहे, व राष्ट्र कैसे शक्तिशाली और सुरक्षित रहे, सिर्फ इस पर ही विचार करना चाहिए|
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जय जननी, जय भारत ! वन्दे मातरं ! भारत माता की जय !
३० मार्च २०१९
पुनश्चः :--- उपरोक्त विषय पर मैंने इतिहास और तत्कालीन परिस्थितियों का खूब अध्ययन भी किया है, विश्व के अनेक देशों का भ्रमण भी किया है, और खूब स्वतंत्र चिंतन भी किया है| जो भी लिखा है वह मेरे अपने निजी अनुभवजन्य विचार हैं|