Saturday, 9 November 2024

जब तक मैं जीवित हूँ, अपनी अंतिम साँस तक परमात्मा के प्रकाश और परमात्मा के परमप्रेम में वृद्धि ही करूँगा ---

जब तक मैं जीवित हूँ, अपनी अंतिम साँस तक परमात्मा के प्रकाश और परमात्मा के परमप्रेम में वृद्धि ही करूँगा। जब यह भौतिक शरीर छोड़ने का समय आयेगा, तब परमात्मा की पूर्ण चेतना में श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताई हुई विधि से ही इस देह का त्याग करूँगा। इस समय संसार में आसुरी भाव बढ़ रहा है, जो मुझे पर भी हावी होने का प्रयास कर रहा है। ऐसे इस संसार में मैं जीवित रहूँ या मृत, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। लेकिन नहीं, भगवान के आदेश का पालन जीवन के अंतिक क्षण तक करूंगा। स्वधर्म (परमात्मा की चेतना) में ही जीऊँगा, और स्वधर्म में ही इस संसार को छोडूंगा।

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श्रीराधाकृष्ण मुझ में हैं, या मैं श्रीराधाकृष्ण में हूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा। प्रकृति और पुरुष दोनों ही साथ साथ नृत्य कर रहे हैं। श्रीकृष्ण पुरुष हैं जो यह समस्त विश्व बन कर आकाश रूप में सर्वत्र समान रूप से व्याप्त हैं। श्रीराधा प्रकृति हैं, जिन्होंने प्राण रूप में समस्त सृष्टि को धारण कर रखा है। उनकी लीलाभूमि सर्वत्र है। वे ही मेरे प्राण हैं। मैं उनके साथ एक हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० नवंबर २०२२